ब्लॉग

मणिपुर में मोदीजी की भाजपा सरकार पूरी तरह नाकाम का ये नतीजा तो नहीं !

पिछले करीब ढाई महीनों से उत्तर पूर्व के एक राज्य मणिपुर में लगी हुई साम्प्रदायिक हिंसा की आग ने जहां एक ओर राज्य सरकार को पूरी तरह से नाकारा साबित कर दिया है

पिछले करीब ढाई महीनों से उत्तर पूर्व के एक राज्य मणिपुर में लगी हुई साम्प्रदायिक हिंसा की आग ने जहां एक ओर राज्य सरकार को पूरी तरह से नाकारा साबित कर दिया है वहीं दूसरी तरफ उस झुलसते प्रदेश से जो एक वीडियो सामने आया है वह सम्पूर्ण मानवता को शर्मसार कर देने के लिये काफी है। वीडियो यह भी बतलाता है कि वहां स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी है। इस वीडियो में 10-12 लोगों की भीड़ दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रही है।

बताया जा रहा है कि उनमें से एक के साथ सामूहिक बलात्कार भी हुआ है। एक की उम्र 21 वर्ष बताई गई है। कुछ और महिलाओं का भी उत्पीड़न हुआ परन्तु वे अपनी पहचान बचाये रखने के लिये वारदात वाले गांव से भागने में सफल रहीं। पीड़ित महिलाओं के साथ मारपीट भी की गयी। यह घटना कांगपोकपी जिले के बी फैलोम गांव की बतलाई जाती है जो 4 मई को हुई थी। वीडियो सामने आने के बाद राज्य के 5 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।

पीड़ित महिलाएं कुकी जबकि आरोपी मैतेई बतलाये जाते हैं। उल्लेखनीय है कि कुकी वह आदिवासी समुदाय है जिसने ईसाई धर्म को अपना लिया है परन्तु वहां उनमें से कुछ को अनुसूचित जनजाति में तो कुछ को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल किया गया है। मैतेई समुदाय भी, जो कि हिन्दू है, खुद को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की मांग को लेकर लम्बे समय से आंदोलनरत है। मई से ही दोनों समुदायों के बीच हो रही हिंसक भिड़ंतों में डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका है और तकरीबन 500 लोग घायल हुए हैं। इन दंगों में बड़े पैमाने पर संपत्तियां भी जलाई या नष्ट की हुई हैं जो ज्यादातर कुकी लोगों की हैं।

मणिपुर को इस हालत में पहुंचाने के लिये वहां की सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है। भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह न तो वहां हिंसा को काबू में कर पा रहे हैं और न ही केन्द्र सरकार वहां को लेकर चिंतित दिखती है। बीरेन सिंह एकाध बार जनता के सामने अपना इस्तीफा भी दे चुके हैं लेकिन जिस नाटकीयता के साथ उन्होंने ऐसा किया उतनी ही ड्रामेबाजी दिखाते हुए उनके समर्थकों द्वारा वह त्यागपत्र फाड़ भी दिया जाता है। एक ओर जनता के सामने वे व्यथित होने तथा खुद को संवेदनशील जतलाने की कोशिश करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनकी सरकार पर यह भी आरोप लगता है कि वह खुद मैतेई समुदाय को संरक्षण व अप्रत्यक्ष मदद दे रही है क्योंकि मैतेई प्रदेश में 52 फीसदी हैं जबकि कुकी अल्पसंख्यक (16 प्रतिशत) है। जाहिर है कि चुनाव जीतने के लिये बहुसंख्यकों का समर्थन चाहिये। इसे भाजपा के साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के प्रयासों के रूप में भी देखा जाता है।

अनेक विपक्षी नेताओं ने महिलाओं के साथ हुए इस अत्याचार पर दुख जताया है और प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर गंभीर सवाल उठाए। शायद विपक्ष का दबाव काम कर गया या श्री मोदी को अपनी छवि की फिक्र हुई, उन्होंने मानसून सत्र शुरु होने से पहले आखिरकार मणिपुर पर टिप्पणी कर ही दी। उन्होंने इस घटना को 140 करोड़ देशवासियों के लिए शर्म की बात बताई, लेकिन इसके साथ ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ का जिक्र भी कर गए। श्री मोदी मणिपुर के इस गंभीर संकट पर भी खुद को चुनावी राजनीति करने से रोक नहीं पाए। यह बेहद दुखद है कि यहां हिंसा फैलने से लेकर 75 दिनों तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस विषय पर पूरी चुप्पी धारण किये रहे।

24 घंटे पूरी तरह से चुनावी मोड और बचे समय में विदेशी दौरों में रहने वाले श्री मोदी के पास कभी इतना समय नहीं हुआ कि वे मणिपुर जाकर लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगा सकें। सच तो यह है कि उन्होंने इस विषय पर न तो कोई बैठक की, न विपक्षी दलों के साथ विचार-विमर्श किया और न ही हिंसारत समुदायों से शांति की अपील की है। मणिपुर में जो स्थिति है उसके बारे में अब दुनिया भर में बात फैल चुकी है। हाल ही में जब मोदी विदेश यात्राओं पर गये थे तो कई सिविल सोसायटियों व यूरोपीय यूनियन के सांसदों ने भारत में फैल रही साम्प्रदायिक वैमनस्यता व परस्पर हिंसा के जो उदाहरण दिये थे उनमें मणिपुर का भी जिक्र हुआ।

भाजपा के कानों पर इसके बाद भी जूं तक नहीं रेंगी जो इस बात की आशंका को बल देती है कि क्या भाजपा इस हिंसा को मौन समर्थन दे रही है और इसका उपयोग हिन्दू वोटों के धु्रवीकरण के लिये किया जा रहा है ताकि उत्तर पूर्वी राज्यों समेत देश भर में हिन्दू बनाम ईसाई का वैसा ही माहौल बनाया जा सके जैसा कि वह हिन्दू बनाम मुसलमान करती आई है।

वैसे भी देश भर के ईसाइयों पर भाजपा व उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हमेशा से वक्र दृष्टि रही है। अनेक राज्यों के जंगलों में शांतिपूर्ण जीवन गुजार रहे आदिवासी व उनमें भी खासकर धर्मांतरण कर चुके लोगों के साथ भाजपा के मनमुटाव व टकराव होते रहते हैं। विभिन्न सम्प्रदायों को आपस में लड़वाना सम्भवत: भाजपा के राजनैतिक हित में तो हो सकता है लेकिन देश की अखंडता व एकता के लिये अत्यंत घातक है।

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button
Crime Cap News
Close