देश की अर्थव्यवस्था में मोदी के नेताओ द्वारा गोलमोल बात !

भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने यूपीए सरकार के वक्त आरबीआई गर्वनर रहे रघुराम राजन की काबिलियत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हम सभी जानते हैं कि जब वे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर थे तो उन्होंने पूरे बैंकिंग सिस्टम और फाइनैंशियल सेक्टर को बर्बाद कर के रख दिया था
भाजपा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने यूपीए सरकार के वक्त आरबीआई गर्वनर रहे रघुराम राजन की काबिलियत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हम सभी जानते हैं कि जब वे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर थे तो उन्होंने पूरे बैंकिंग सिस्टम और फाइनैंशियल सेक्टर को बर्बाद कर के रख दिया था। राजीव चंद्रशेखर केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री हैं, लेकिन वे अर्थव्यवस्था को लेकर पूर्व आरबीआई गर्वनर की आलोचना कर रहे हैं। लोकतंत्र में तो हरेक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
लेकिन बेहतर होता, अगर श्री चंद्रशेखर अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित कोई सार्थक टिप्पणी करते। रघुराम राजन को लेकर उनकी तल्खी शायद इस वजह से है कि श्री राजन मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते रहे हैं और भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ चलकर उन्होंने कांग्रेस के लिए अपने झुकाव को जाहिर कर दिया था। रघुराम राजन को भी लोकतंत्र यह हक देता है कि वे अपनी मर्जी से किसी राजनैतिक दल को समर्थन दें। इस वजह से उनकी योग्यता पर शक करना या उन पर समूचे आर्थिक क्षेत्र को बर्बाद करने का आरोप लगाना सही नहीं है। लेकिन फिलहाल मोदी सरकार में ऐसा ही चल रहा है। अपने कार्यक्षेत्र के बाहर जाकर मंत्री टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं और अपने मंत्रालय के कामकाज पर चुप्पी साध लेते हैं। कमोबेश यही स्थिति सरकार को सलाह देने वाले अर्थशास्त्रियों की भी है। एक के बयान, दूसरे के बयान से मेल नहीं खा रहे हैं।
2022-23 में भारत की जीडीपी 7.2 प्रतिशत रही है और मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि जब तीन साल बाद फाइनल आंकड़े आएंगे तो वो 7.2 प्रतिशत से ज्यादा रहेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने दिसंबर 2022 में जी-20 की बैठक में कहा था कि भारत कई वर्षों तक 9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने में सक्षम है। अगस्त 2022 में आरबीआई डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने कहा था कि अगले एक दशक तक अगर भारत 11 प्रतिशत की विकासदर बनाए रखता है तो 2031 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसी तरह जनवरी 2021 में तत्कालीन मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा था कि आने वाले साल में जीडीपी में 11 प्रतिशत की वृद्धि आएगी। तीन सालों में जीडीपी के आंकड़े सरकार को सलाह देने वाले अलग-अलग अर्थशास्त्रियों ने बदल दिए हैं।
11 प्रतिशत से लेकर 9 प्रतिशत से होते हुए बात 7.2 प्रतिशत तक आ गई। क्यों आ गई, कैसे आ गई, इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिलेगा। क्योंकि जवाब देने की जगह पिछली सरकार को कोसना आसान होता है। जैसे अभी रघुराम राजन पर उंगली उठाई जा रही है, क्योंकि उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जीडीपी के 5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। जीडीपी इससे बढ़कर आई है, ये खुशी की बात है। लेकिन सवाल ये भी है कि ये खुशी किस कीमत पर मिल रही है।
नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आने पर हरेक के खाते में 15-15 लाख देने का दावा किया था। इतनी रकम वे देश में कालेधन को वापस लाकर देने की योजना बना रहे थे। फिर कालेधन को खत्म करने के लिए नोटबंदी की गई। पांच सौ और हजार के नोट बंद करके नए पांच सौ के नोट और 2 हजार के नोट लाए गए। अब 2 हजार के नोट भी बंद हो गए हैं। और 15 लाख खाते में देने का वादा जुमला करार दिया गया है। इस बीच इस साल फरवरी में बजट के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री ने बताया कि सरकार की एक रुपये की कमाई में अभी सबसे ज्यादा 34 पैसे कर्ज से आते हैं।
शनिवार को कांग्रेस ने मोदी सरकार से अर्थव्यवस्था की स्थिति पर श्वेत पत्र लाने की मांग करते हुए आऱोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का कर्ज करीब तीन गुना बढ़कर 155 लाख करोड़ रुपये हो गया है। एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस ने बताया कि 2014 में भारत का कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये था, जो अब 155 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। यानी 9 सालों की उपलब्धियों में देश पर सौ करोड़ रुपए कर्ज की बढ़ोतरी भी शुमार की जा सकती है। 155 लाख करोड़ रुपये के कर्ज का मतलब है कि हर भारतीय पर 1.20 लाख रुपये का कर्ज। कहां तो 15 लाख आने थे, कहां अब लाखों का कर्ज चढ़ गया। कांग्रेस का दावा है कि सरकार को इस कर्ज पर 11 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक ब्याज चुकाना है।
कांग्रेस के आरोप गंभीर हैं और देश की भावी आर्थिक स्थिति के लिए चिंताजनक भी। सवा सौ करोड़ लोगों के देश में हर साल करीब ढाई लाख लोग विदेशी नागरिकता ले रहे हैं, लेकिन हरेक के लिए विदेश में जाकर बसना या झोला उठाकर चले जाना संभव नहीं है। देश में निम्न और मध्यमवर्ग के करोड़ों लोग अच्छे दिनों की आस में ही जी रहे हैं। सरकार को इन लोगों की उम्मीद पूरा करने की कोशिश करना चाहिए और जो आरोप उस पर लगे हैं, उनका जवाब देना चाहिए। कर्ज में डूबे पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और श्रीलंका की हालत हम देख चुके हैं। दोनों देशों में जातीय और धार्मिक उन्माद अर्थव्यवस्था को लील गया। सरकार को बताना चाहिए कि वह भारत को किस दिशा में ले जाना चाहती है। अर्थव्यवस्था में गोलमोल बातें सब कुछ उलझा कर रख देंगी।