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देश के किसानों पर बेखौब होकर जुल्म बरसाती मोदी सरकार की पुलिस !

कुरुक्षेत्र में बुधवार की सुबह पुलिस द्वारा किये गये लाठी चार्ज और कुछ आंदोलनकारियों को हिरासत में लेने से साफ हो जाता है कि किसानों को उनकी फसलों के उचित दामों के जरिये राहत देने की बजाय केन्द्र सरकार उन पर जुल्म ढाने पर आमादा है

कुरुक्षेत्र में बुधवार की सुबह पुलिस द्वारा किये गये लाठी चार्ज और कुछ आंदोलनकारियों को हिरासत में लेने से साफ हो जाता है कि किसानों को उनकी फसलों के उचित दामों के जरिये राहत देने की बजाय केन्द्र सरकार उन पर जुल्म ढाने पर आमादा है। उसका यह रवैया एक बार फिर से किसानों को आंदोलन की राह पर ढकेल रहा है। करीब तीन साल पहले केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये तीन कानूनों के खिलाफ सितम्बर, 2020 से 13 माह तक आंदोलन चलाकर किसानों ने ये कानून वापस लेने के लिये नरेद्र मोदी को मजबूर तो कर दिया था परन्तु अब तक सरकार उन्हें दिये गये अपने वादों को पूरा नहीं कर पाई है। भारतीय जनता पार्टी प्रणीत केन्द्र सरकार से क्षुब्ध किसान नेता अगर आज चेतावनी दे रहे हैं कि ‘किसानों को फिर से आंदोलन करना पड़ सकता है’, तो वह गैरवाजिब नहीं है। केन्द्र सरकार को चाहिये कि वह किसानों से बातचीत कर उनकी फसलों का उचित दाम दिलाये और वे तमाम वादे पूरे करे जो उसने कानून वापस लेने के वक्त किये थे।

सूरजमुखी की फसल सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की मांग पर बड़ी संख्या में किसान बुधवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में आंदोलन कर रहे थे। किसानों का कहना है कि सरकार इससे बच रही है जिसके कारण किसानों को सूरजमुखी 6400 रुपये प्रति क्विंटल की बजाय 4000 रुपए प्रति क्विंटल में बेचना पड़ रहा है। नाराज किसानों ने जब महामार्ग को जाम कर दिया तो पुलिस ने लाठियां भांजी और किसान यूनियन के एक प्रमुख नेता गुरनाम चढूनी समेत कई लोगों को हिरासत में ले लिया। जब यह जानकारी प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर पहुंची तो कई स्थानों पर किसान सड़कों पर उतर आये। इसके कारण जगह-जगह रास्ते जाम हो गये। एकाध स्थान पर पानी की बौछारों द्वारा भी उन्हें तितर-बितर करने की कोशिश की गयी। आंदोलन के प्रमुख नेता राकेश टिकैत ने सरकार को चेतावनी दी कि ‘किसानों को पहले के मुकाबले अब और भी बड़ा आंदोलन करना पड़ेगा।’

उल्लेखनीय है कि अगस्त 2020 में केन्द्र ने किसानों से सलाह-मशविरा किये बगैर तीन कानून लागू कर दिये थे जिसके अंतर्गत अपनी फसलों को खुले बाजारों में बेचने का प्रलोभन देकर कृषि उत्पादों को उद्योगपति मित्रों के हाथों में देने की पूरी तैयारी कर ली गयी थी। यह अप्रत्यक्ष तौर पर मंडी व्यवस्था को तबाह करने की मोदी सरकार की योजना थी ताकि कृषि उत्पाद मनमर्जी कीमतों पर उनके कार्पोरेट मित्र खरीद सकें जो रिटेल फूड प्रोडक्ट्स के व्यवसाय में बड़ी पूंजी लेकर उतरने को तैयार बैठे थे।

किसानों के उत्पादों को खरीद कर भंडारण हेतु हरियाणा में ही बड़े गोदाम भी बना लिये गये थे। अपने अधिकारों के प्रति सतर्क किसानों ने मोदी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए देश भर में बड़ा आंदोलन छेड़ दिया था जो लगभग 13 माह चला था। विश्व भर में उसकी चर्चा हुई थी। पूरे देश से आये लाखों किसानों ने दिल्ली को उसकी तीनों सीमाओं- सिंधू, गाजीपुर और टिकरी की तरफ से घेर लिया था। शांतिपूर्ण आंदोलन को तोड़ने के लिये मोदी सरकार ने हरसम्भव उपाय किये थे। कभी किसानों पर ठंड में पानी की बौछारें की गयीं तो कभी रास्तों पर कीलें ठोकी गयीं या गड्ढे खोदे गये जिससे किसान अपने ट्रैक्टर व वाहन लेकर दिल्ली न आ सकें। यहां तक उन्हें ‘खालिस्तानी’ कहकर बदनाम किया तो कभी ‘विदेशी शक्तियों’ के इशारों पर खेलने का उन पर आरोप लगाकर आम जनता की नज़रों में उन्हें बदनाम करने के भरपूर प्रयास हुए। डेढ़ सौ से ज्यादा किसानों की मौत भी हुई थी। अंतत: मोदी ने यह कहकर उन काले कानूनों को वापस ले लिये कि ‘उनकी तपस्या में कुछ कमी रह गयी जिसके कारण वे किसानों को समझा नहीं सके।’

ये कानून वापस लेते समय मोदी सरकार ने आश्वासन दिया था कि किसानों की समस्याओं के स्थायी हल निकाले जाएंगे और उनकी मांगों को पूरा किया जायेगा। इसके लिये एक समिति गठित करने का भी आश्वासन दिया गया था जिसका आज तक कुछ अता-पता नहीं है। सभी कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की बात भी केन्द्र सरकार द्वारा कही जाती रही है लेकिन उन पर अमल के चिन्ह कहीं दिखाई नहीं देते। जिस फार्मूले पर किसान यूनियन एमएसपी चाहते हैं वह देने में सरकार हमेशा आनाकानी करती है जिसके कारण उत्पादन की लगातार बढ़ती लागत के बीच किसान घाटे में कृषि कार्य कर रहा है। वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के भाजपा के चुनावी वादे की धज्जियां उड़ चुकी हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले किसानों की निराशा दूर करने की बजाय मोदी सरकार उनकी परेशानियों को बढ़ा रही है जिससे एक और आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। किसान संगठनों की मांगों को अविलम्ब पूरा कर सरकार को इसे टालना चाहिये।

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