दिल्ली

2024 से पहले 2022 में ही भाजपा का ट्रेलर, द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के क्या हैं मायने

द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के पीछे भाजपा ने विपक्ष को किस सियासी बाजीगरी में उलझा दिया, इसके अलावा मुर्मू के महामहिम बनने के राजनीतिक मायने क्या हैं? जानिए…

नई दिल्ली

द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। इसी के साथ वे पहली आदिवासी नेता हैं, जो संविधान में सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के पीछे भाजपा ने विपक्षी दलों को 2024 से पहले 2022 में ही ट्रेलर दिखा दिया है। द्रौपदी मुर्मू आगामी 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी। यहां तारीख दिलचस्प इसलिए भी है क्योंकि, इसी दिन देश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी को नेशनल हेराल्ड केस में ईडी के समक्ष पेश होना है। मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के पीछे भाजपा ने विपक्ष को सियासी बाजीगरी में उलझा दिया है। आइए जानते हैं मुर्मू के महामहिम बनने के राजनीतिक मायने क्या हैं?

आजादी के बाद यह मौका है जब देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिला है। इसका श्रेय भाजपा को जाता है, जिसने आदिवासी नेता को देश के संविधान में सर्वोच्च पद पर पहुंचा दिया। मुर्मू की ताजपोशी के साथ ही विपक्षी एकता के साथ खेला भी हुआ है। विपक्षी नेताओं में एकता के लाख दिखावे के बावजूद क्रास वोटिंग हुई। सूत्रों के अनुसार विपक्ष के 17 सांसदों और 126 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की।

2024 से पहले का ट्रेलर
द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाकर भाजपा ने साल 2024 के लिए बड़ी तैयारी का आगाज कर दिया है। इसे भाजपा के ट्रेलर के रूप में देखा जा सकता है। आदिवासी समाज का नेतृत्व करने वालीं मुर्मू को सर्वोच्च पद पर बैठाकर भाजपा ने विपक्ष को चारों खाने चित कर दिया है।

विपक्ष की एकता में खेला
राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को उतारते ही भाजपा ने चुनाव परिणाम से पहले ही आधी जंग जीत ली थी। मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं। ऐसे में विपक्ष लाख कोशिश के बावजूद भी अपनी एकता को बरकरार नहीं रख पाया। झारखंड में मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस से गठबंधन है। लेकिन फिर भी जेएमएम ने मुर्मू को अपना समर्थन देने का ऐलान किया था। इसके अतिरिक्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि 17 सांसदों और 126 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके मुर्मू के पक्ष में मतदान किया।

ममता ने भी दिए थे संकेत
राष्ट्रपति चुनाव से पहले टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के बयान से ही विपक्षी एकता के दावों की पोल खुल गई थी। ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर भाजपा उनसे द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के लिए कहती तो वो मान जाती। यहां ये गौर करने वाली बात है कि ममता बनर्जी ने ही विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए यशवंत सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा था।

उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी
टीएमसी ने उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग से दूरी बनाने का फैसला लिया है। टीएमसी ने आरोप लगाया कि विपक्ष ने मारर्गेट अल्वा के नाम के लिए ममता बनर्जी से चर्चा नहीं की थी। यहां भी विपक्ष की एकता की पोल खुल गई है।

बताते चलें कि द्रौपदी मुर्मू के नाम का ऐलान भाजपा की ओर से विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की घोषणा के बाद किया गया था। इसके बाद भी विपक्षी दलों में से कई पार्टियों ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन किया। बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, अकाली दल, शिवसेना, तेलगु देशम पार्टी समेत कई ऐसे दलों ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन किया, जो एनडीए का हिस्सा नहीं हैं।

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