महाकुंभ वायरल गर्ल मोनालिसा के समुदाय के बारे में जानते हैं आप? पढ़ेंगे तो आंखें हो जाएगी नम

महाकुंभ की वायरल गर्ल मोनालिसा जिस समुदाय से आती है, उसकी स्थिति बहुत ही खराब रही है. एक समय तक तो इस समुदाय के लोग बिल्कुल ही पढ़े लिखे नहीं होते थे. जीविका के लिए इन्हें वो सब कुछ करना होता था जिसे किसी भी तरह से सम्मानजनक नहीं कहा जा सकता. पुलिस रिकॉर्ड में जरायमपेशा के तौर पर दर्ज किया गया था. मशहूर दलित लेखक लक्ष्मण गायकवाड़ ने अपनी किताब में ऐसे समुदाय के बारे में बहुत ही मार्मिक लिखा है.
- घूमंतू जनजाति की मार्मिक कहानी है ‘उचक्का’
- लक्ष्मण गायकवाड़ ने आत्मकथा शैली में लिखी है कहानी
- गुर्बत में जीते बंजारों को शोषण का भी शिकार होना पड़ता रहा
इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें फिल्मकार सनोज मिश्रा मोनालिसा को कखगघ… पढ़ाते नजर आ रहे हैं. मोनालिसा को लिखना और पढ़ना बिल्कुल नहीं आता. वही मोनालिसा जिसे महाकुंभ-मंथन के दौरान सोशल मीडिया ने ‘रतन’ की तरह निकाला. अपनी गहरी नीली आंखों की वजह से मोनालिसा मेले में मालाएं भी नहीं बेंच पा रही थी, लेकिन फिल्मकार सनोज मिश्रा ने उसे अपनी फिल्म में रोल देने के लिए चुन लिया. अब वे घुमंतू जनजाति की इस युवती को पढ़ना लिखना सिखा रहे हैं. हर जगह वक्त की तरह मौजूद सोशल मीडिया ने इसे भी वायरल कर दिया. खैर, विषय ये नहीं है. विषय है मोनालिसा का अपना समुदाय. उसका जन्म पारधी नाम के जनजाति में हुआ है. ये बंजारों की ही तरह घुमंतू होते हैं.
लक्ष्मण गायकवाड़ का ‘उचक्का’
ऐसे ही एक समुदाय के एक बडे़ नामचीन लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हुए हैं – लक्ष्मण गायकवाड़. उन्होंने उचाल्या या उकल्या नाम का एक उपन्यास लिखा है. मराठी में लिखे गए इस उपन्यास का तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है. हिंदी में ये पुस्तक उचक्का नाम से है. इस किताब को हर भाषा में हाथों हाथ लिया गया. इस किताब के लिए उन्हें साहित्य एकेडेमी सम्मान भी दिया गया. लक्ष्मण ने किताब में लिखा है कि वे अपने पूरे समुदाय के पहले व्यक्ति हैं जिसने स्कूल जा कर पढ़ाई की. उनके पहले किसी ने स्कूल की देहरी में कदम नहीं रखा था. आत्मकथा जैसे इस उपन्यास में उन्होंने लिखा है कि जब उनको स्कूल में दाखिल करा दिया गया तो उसी समय हैजा जैसी किसी बीमारी का प्रकोप हुआ. इस पर पूरा समाज खड़ा हो कर कहने लगा -“बेटे को स्कूल भेज दिया इसी से ये आपदा आई है.”
पढ़ाई की जगह ठगी चोरी के गुर सीखने होते थे
अपने समुदाय का जिक्र करते हुए लक्ष्मण ने बिना किसी लाग लपेट के लिखा है कि वे जिस समुदाय में पैदा हुए थे, वहां खाने के लिए कुछ भी करना पड़ता था. चोरी और ठगी ही उनका ऐसा पेशा था जो स्थाई तौर पर वे लोग किया करते. बाकी रोजी के लिए अगर कुछ काम मिल गया तो वो भी कर लेते थे. उन्होंने लिखा है कि बच्चों की शिक्षा यही थी कि उनकी पिटाई की जाती थी. यही पिटाई उनके काम आती थी. पुलिस पकड़ कर पीटती रह जाए लेकिन मुंह न खुले बस यही तालीम दी जाती थी. इसके लिए जब बच्चों की मसें भीगने लगती तो आने जाने वाला कोई भी रिश्तेदार आते ही घर के बच्चों को खूब पीटता. या फिर किसी ऐसा उस्ताद टाइप के रिश्तेदार को बच्चे को सौंप दिया जाता जो उसे पीट पीट कर पिटाई के लिए रजिस्टेंट बना दे.