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नोटबंदी का मोदीजी के राज में एक और चाबुक !

2016 में 8 नवंबर को रात आठ बजे टीवी पर आकर जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक को हटाने के लिए नोटबंदी की घोषणा की थी और ये बताया था कि आज रात 12 बजे से पांच सौ और एक हजार के नोट के लीगल टेंडर नहीं माने जाएंगे

2016 में 8 नवंबर को रात आठ बजे टीवी पर आकर जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक को हटाने के लिए नोटबंदी की घोषणा की थी और ये बताया था कि आज रात 12 बजे से पांच सौ और एक हजार के नोट के लीगल टेंडर नहीं माने जाएंगे, उस ऐलान से भारत में भारी उथल-पुथल मच गई थी। आम जनता को जिस तरह बैंकों के आगे लंबी-लंबी लाइनों में दिन-रात खड़े रहना पड़ा था, और अपने ही कमाए पैसे हाथ से चले जाने की जो पीड़ा जनता ने सही थी, उसका कोई सटीक वर्णन कर ही नहीं सकता। नोटबंदी से कितने घर बर्बाद हो गए, पटरी पर चल रहा जीवन एकदम से पथरीले रास्तों पर आ गया। तब मोदीजी ने देशवासियों से 50 दिन का वक्त मांगा था कि सब कुछ ठीक नहीं रहा, तो जिस चौराहे पर बुलाओगे आ जाऊंगा।

हालांकि किसी प्रधानमंत्री के मुख से ऐसी भाषा शोभा नहीं देती, मगर राष्ट्रभक्ति में लोगों ने चौराहे वाली भाषा को भी स्वीकार कर लिया। 50 दिन तो लाइनों में ही गुजर गए और उसके बाद रोजगार चले जाने, व्यापार ठप्प हो जाने, जमा-पूंजी के रद्दी हो जाने के गम से उबरने की प्रक्रिया अभी चल ही रही है कि सात साल बाद नोटबंदी का एक और बम सरकार ने फोड़ा है। इस बार पर्दे पर मोदीजी नहीं आए, वे विदेश यात्रा पर हैं। उनकी जगह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने फैसला सुनाया है कि अब 2 हजार के नोट भी बैंकों में वापस जमा करने होंगे, वो भी 30 सितंबर तक। इसके बाद इन नोटों का क्या होगा, पता नहीं।

गौरतलब है कि भारत में 2016 नवंबर से पहले बड़े नोटों में 5 सौ और हजार के नोट प्रचलन में थे। मोदीजी ने हजार के नोट तो पूरी तरह बंद कर दिए और पांच सौ के नोट की शक्ल बदल दी। हजार के बदले 2 हजार के नोट आए और नए पांच सौ के नोट के साथ 2 सौ रुपए का नोट भी लाया गया। मोदीजी ने कालेधन के खात्मे के लिए नोटबंदी को जरूरी बताया था। उनके प्रवक्ताओं ने आतंकवाद, नशीली दवाओं, नक्सलवाद आदि पर रोकथाम के लिए और देश को कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने के लिए नोटबंदी को सही ठहराया था। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, जिन नोटों को अमान्य करार दिया गया था, उनका 99 प्रतिशत से अधिक यानी क़रीब पूरा पैसा बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गया था।

15.41 लाख करोड़ रुपये के जो नोट अमान्य हो गए, उनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट वापस आ गए थे। तो फिर किस काले धन को पकड़ने की तरकीब नोटबंदी से निकाली गई थी, यह अब तक समझ से परे है। नोटबंदी की कवायद के बाद से कितना कालाधन बरामद हुआ, इस पर अब तक कोई आंकड़ा सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है। हालांकि फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि नोटबंदी सहित विभिन्न काला धन विरोधी उपायों के माध्यम से 1.3 लाख करोड़ रुपये के कालेधन की वसूली की गई है। नोटबंदी का एक उद्देश्य नकली नोटों के प्रसार पर प्रतिबंध लगाना भी बताया गया था। लेकिन हकीकत ये है कि 2016 के बाद नकली नोटों की बरामदगी बढ़ गई। पिछले साल आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में बताया गया कि मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में जाली नोटों में 10.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जिसमें 500 रुपये के नकली नोटों में 101.93 प्रतिशत और 2,000 रुपये के नकली नोटों में 54 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि नोटबंदी के उद्देश्यों पर नकली नोटों का पानी फिर चुका है।

हजार के बदले 2 हजार के नोट लाने का क्या औचित्य, यह सवाल भी तब खूब उठा था। क्योंकि बड़े नोट के तौर पर अधिक धन जमा करने में आसानी ही होगी। तब तर्क दिया गया था कि पांच सौ और हजार के नोट खत्म हो जाने की भरपाई के लिए 2 हजार के नोट चलाए जा रहे हैं। तब भी आम आदमी के नजरिए से विचार नहीं किया गया था कि रोज कमाने-खाने वाले लोगों के पास 2 हजार का नोट कैसे आएगा और अगर आ भी गया तो वह उसे किस तरह बाजार में तुड़ा पाएगा। अगर कभी नोट गिर जाए या चोरी हो जाए तो एक साथ 2 हजार का नुकसान होगा, जो गरीबों के लिए बहुत बड़ा है।

जो गृहणियां रोज की सब्जी या अनाज खरीदने में थोड़ी बहुत बचत कर लेती हैं, उनके लिए भी 2 हजार के नोट का इस्तेमाल व्यावहारिक तौर पर कठिन था। इतनी बड़ी रकम के नोट की उपयोगिता केवल धनाढ्य तबके के लिए थी, जो एक साथ हजारों खर्च करने का माद्दा रखते हैं। आज की तारीख में ऐसे ही लोगों के पास काले धन के तौर पर 2 हजार के नोटों के बंडल होंगे। अब सरकार ने इसे भी बंद करने का ऐलान किया है, तो सवाल उठने लगे हैं कि क्या अब फिर से एक हजार के नोट लाए जाएंगे या 2 हजार के नोट किसी नयी शक्ल-सूरत में आएंगे। और अगले चार महीनों में बैंकों के पास 2 हजार के नोट जमा करने से आखिर भ्रष्टाचार कैसे खत्म हो जाएगा। क्योंकि जिन लोगों को गलत काम करने होते हैं, वे कोई न कोई तरीका तलाश ही लेते हैं और ईमानदार लोग ऐसी कवायद में पिस जाते हैं।

अभी आरबीआई के नियमों के मुताबिक एक बार में 20 हजार तक के 2 हजार के नोट जमा किए जा सकते हैं और इसके लिए किसी पहचान प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होगी। मतलब कोई रईस अपने सौ कारिंदों को अलग-अलग 20 हजार के नोट बदलने के लिए बैंकों में भेज दे, तो पता नहीं चल पाएगा कि आखिर यह संपत्ति किसकी है। यह तो काले धन को सफेद करने का सुनहरा मौका नोटबंदी की शक्ल में सरकार ने दौलतमंद लोगों के सामने पेश किया है। गरीब आदमी ने किसी तरह जोड़-जाड़कर दो-चार नोट भी इक_े किए होंगे, तो वो अब इस पूंजी को बैंक में बदलने के लिए परेशान होगा। आम आदमी के लिए कोरोना के बाद से परेशानियां और बढ़ गई हैं, जिनसे बेपरवाह मोदी सरकार ने एक और चाबुक जनता की पीठ पर मारा है। आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास कह रहे हैं कि 30 सितंबर के बाद भी दो हजार रुपये का नोट लीगल टेंडर यानी वैध रहेगा। अगर ऐसा है तो फिर अभी उसे बदलने का फैसला क्यों लिया गया। आखिर सरकार की मंशा क्या है। उसके इरादों पर इतनी धुंध क्यों छाई हुई है। सरकार को साफ-साफ बताना चाहिए कि 30 सितंबर के बाद दो हजार के नोटों का वो क्या करेगी। सरकार की नीयत में यह अस्पष्टता देशहित में नहीं है।

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