केंद्र के ‘सीलबंद कवर’ पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते

_, ‘‘प्रेस का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सच बोले और नागरिकों के समक्ष उन कठोर तथ्यों को पेश करे, जिनकी मदद से वे लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने वाले विकल्प चुन सकें।” पीठ ने कहा कि एक मीडिया चैनल को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कदम प्रेस की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करता है
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते। इन्हें साबित करने के लिए ठोस तथ्य होने चाहिए।” पीठ ने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ ‘मीडियावन’ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता-विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है।
नेशनल डेस्कः
सुप्रीम कोर्ट ने एक सीलबंद लिफाफे में सामग्री सौंपे जाने को लेकर केंद्र की आलोचना की और कहा कि सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने के कारणों का खुलासा नहीं करना और सिर्फ अदालत को सीलबंद लिफाफे में इसकी जानकारी देने ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धातों का उल्लंघन किया है। इसने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता को प्रदत्त निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का हनन किया है।
पीठ ने कहा, ‘‘लोकतांत्रिक गणराज्य के बखूबी कामकाज करने के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है। लोकतांत्रिक समाज में इसकी भूमिका अहम है क्योंकि यह सरकार के कामकाज पर प्रकाश डालती है। प्रेस का कर्तव्य सत्ता को सच बताना है और नागरिकों के समक्ष कड़वी सच्चाई को रख कर लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने वाले फैसले लेने में उन्हें सक्षम बनाना है।” शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता पर पाबंदी नागरिकों को उसी तरीके से सोचने के लिए मजबूर करती है।
पीठ ने कहा, ‘‘सामाजिक आर्थिक राजनीति से लेकर राजनीतिक विचारधाराओं तक के मुद्दों पर एक जैसे विचार लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं।” उसने कहा कि सरकार कानून के तहत नागरिकों के लिए किए गए प्रावधानों से उन्हें वंचित करने के वास्ते राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल कर रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार की नीति की आलोचना को कहीं से भी अनुच्छेद 19(2) में प्रदत्त आधारों के दायरे में नहीं लाया जा सकता। पीठ ने कहा कि सरकार नागरिकों को कानून के तहत उपलब्ध उपायों से इनकार करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को गोपनीयता के दावों का आकलन करने और तर्कपूर्ण आदेश देने में अदालत की मदद करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त करना चाहिए। केरल उच्च न्यायालय ने चैनल के प्रसारण पर सुरक्षा आधार पर रोक लगाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था। समाचार चैनल ने केरल उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने जिस सामग्री के आधार पर फैसला सुनाया था, उसे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत को सौंपा और कहा कि सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का मंत्रालय का फैसला विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त खुफिया सूचनाओं पर आधारित था। शीर्ष अदालत ने 134 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार ने लापरवाह तरीके से राष्ट्रीय सुरक्षा का दावा किया था और खुफिया ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट उस सूचना पर आधारित थी जो पहले से लोगों के बीच थी। न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी इस पीठ में शामिल हैं।
पीठ ने कहा कि चैनल के शेयरधारकों का जमात-ए-इस्लामी हिंद से कथित संबंध चैनल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने का वैध आधार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते। इन्हें साबित करने के लिए ठोस तथ्य होने चाहिए।” पीठ ने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ ‘मीडियावन’ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता-विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है।
पीठ ने कहा, ‘‘प्रेस का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सच बोले और नागरिकों के समक्ष उन कठोर तथ्यों को पेश करे, जिनकी मदद से वे लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने वाले विकल्प चुन सकें।” पीठ ने कहा कि एक मीडिया चैनल को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कदम प्रेस की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करता है