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गुजरात में एक सरकारी कार्यक्रम में भाजपा शाशनमें मंच पर बलात्कारी !

2002 में गोधरा कांड के बाद सामूहिक बलात्कार की शिकार बिलकिस बानो 20 साल बाद भी इंसाफ के इंतजार में हैं

2002 में गोधरा कांड के बाद सामूहिक बलात्कार की शिकार बिलकिस बानो 20 साल बाद भी इंसाफ के इंतजार में हैं, ये अमृतकाल के भारत की हकीकत है। उनके दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और अदालत ने इस पर सरकार से जवाब मांगा है। सरकार क्या जवाब देती है, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन इस बीच उनके दोषियों में से एक शैलेश भट्ट को गुजरात में एक सरकारी कार्यक्रम में भाजपा के दाहोद सांसद जसवंतसिंह भाभोर और लिमखेड़ा से भाजपा विधायक उनके भाई शैलेश भाभोर के साथ मंच पर देखा गया। दाहोद जिले में गुजरात जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड परियोजना के शिलान्यास समारोह में शैलेश भट्ट बाकायदा बाकी अतिथियों के साथ मंच पर विराजमान था। खुद सांसद जसवंत सिंह ने इस सरकारी कार्यक्रम की तस्वीरें ट्विटर पर साझा कीं।

बलात्कार और हत्या के एक दोषी की सरकारी आयोजन में उपस्थिति पर सवाल उठे, तो इस पर सांसद महोदय ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके भाई शैलेश भाभोर ने कहा कि विधायक होने के नाते मैं इस कार्यक्रम में इतना व्यस्त था कि मैंने यह नहीं देखा कि मंच पर और कौन बैठा है। वहीं दाहोद जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि उन्हें जानकारी नहीं है कि भट्ट को कार्यक्रम में किसने आमंत्रित किया था।

कमाल का सरकारी आयोजन रहा होगा, जिसमें आमंत्रितों की जानकारी आयोजकों को नहींथी। शैलेश भट्ट अगर मंच पर उपस्थित था, तो निश्चित ही उसका स्वागत भी हुआ होगा, क्योंकि अमूमन सरकारी कार्यक्रमों में ऐसा ही होता है। उसका नाम भी पुकारा ही गया होगा, और अगर नाम न भी लिया गया हो, तो क्या मंच पर उसे देखकर किसी ने वहां से उसे हटाने की जहमत नहीं उठाई। या फिर हमारा समाज और जनप्रतिनिधि सब इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि अपने बीच किसी बलात्कारी को बैठा देखकर भी कोई असहजता महसूस नहीं होती, एक अपराधी के साथ मंच साझा करने पर अपना अपमान महसूस नहीं होता।

शैलेश भट्ट और बाकी अपराधियों को भले जेल से पहले रिहा कर दिया गया हो, लेकिन इससे ये तथ्य तो नहीं बदल जाता कि इन लोगों ने धार्मिक नफरत के कारण एक 19 बरस की गर्भवती बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार किया, उसकी छोटी बच्ची समेत 7 परिजनों की हत्या कर दी थी। 3 मार्च 2002 को हुए इस भयावह अपराध में 11 लोगों को 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन 15 अगस्त को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार ने सभी 11 दोषियों को माफी दे दी और 16 अगस्त को सामूहिक बलात्कार और हत्या करने वाले लोग गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिए गए।

ये रिहाई बिलकिस बानो के जख्म कुरेद कर उसमें नमक छिड़कने जैसी थी। लेकिन इतना दर्द देना ही काफी नहीं था, सो इन दोषियों के जेल से बाहर आने के इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया। इसके वीडियो सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं। सोशल मीडिया पर क्रूरता और हिंसा से भरे कई वीडियो बिना किसी सेंसर के आते ही रहते हैं। लोग अपने मोबाइल में कहीं भी बैठे-लेटे बड़े आराम से देखते हैं कि चार-पांच ऊंची जाति के लोग किसी दलित या मुसलमान को पीट रहे हैं, कहीं पुलिसवाले बेरहमी से छात्रों पर डंडे चलाते दिखते हैं, कहीं गुंडे-मवाली किसी लड़की से सरेआम छेड़छाड़ करते हैं, कहीं कोई कुत्ते या बकरी जैसे मूक प्राणियों पर अत्याचार करता है। ऐसी तमाम घटनाओं को समाज अब वैसी ही सहजता से देख लेता है, जैसे किसी फिल्म का दृश्य चल रहा है।

आज से 20-30 साल पहले बहुत से लोग ऐसे होते थे, जो फिल्मों में ऐसी क्रूरता देखकर आंख मूंद लिया करते थे, हिंसा देखकर दिल कांप जाता था। लेकिन अब ऐसी भावुकता के लिए जगह कम होती जा रही है। दिल तो अब भी धड़कता है, लेकिन भावनाओं की जगह व्यावहारिकता ने ले ली है। इसलिए व्यापक समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपने मोबाइल पर जिस हिंसा को वो प्रत्यक्ष देख रहे हैं, वह उसी समाज का हिस्सा है, जिसमें वो रहते हैं। इसलिए बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई पर बहुत से लोगों को फर्क ही नहीं पड़ा, न ही उनका स्वागत देखकर यह विचार उठा कि क्या हमारे यही संस्कार रह गए हैं कि अब बलात्कार करने वालों का स्वागत हो। वैसे इन लोगों को भाजपा के एक विधायक ने संस्कारी बताया था और भाजपा ने उन्हें फिर से इन चुनावों में टिकट दी थी।

वैसे बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई पर बहुत से लोगों ने आक्रोश भी जाहिर किया था। कम से कम 6,000 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी। खुद बिलकिस बानो ने अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी। और अब सुप्रीम कोर्ट फिर से इस पर सुनवाई कर रहा है। बिलकिस बानो का यह संघर्ष कब और किस मुकाम पर जाकर खत्म होगा, यह देखना होगा। उनकी और उनके परिजनों की हिम्मत की जितनी तारीफ की जाए, कम है। क्योंकि कमजोर लोग तो शाब्दिक प्रहारों से ही ऐसे आहत हो जाते हैं कि उन्हें अपनी मानहानि लगने लगती है।

बिलकिस बानो ने तो शाब्दिक ही नहीं, मानसिक और शारीरिक प्रताड़नाएं भी सहन की हैं। कल मन की बात के 99वें एपिसोड में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज, भारत का जो सामर्थ्य नए सिरे से निखरकर सामने आ रहा है, उसमें बहुत बड़ी भूमिका हमारी नारी शक्ति की है। नारी शक्ति की ऊर्जा ही विकसित भारत की प्राणवायु है। उन्होंने आस्कर के मंच से लेकर खेल के मैदान और सेना से लेकर राजनीति तक महिलाओं की उपलब्धियों का जिक्र किया। उन्हें बिलकिस जैसी तमाम महिलाओं का भी जिक्र कभी करना चाहिए, जो 20-22 साल बाद भी इंसाफ की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करती हैं।

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