PM मोदी और CJI चंद्रचूड़ बैठे थे सामने, फिर कपिल सिब्बल ने जमानत को लेकर दिया बड़ा बयान

कपिल सिब्बल ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों की पेंशन, उनकी पदोन्नति, प्रौद्योगिकी और न्यायिक सेवाओं में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. उन्होंने निचली अदालतों में जमानत को लेकर भी चिंता जताई.
नई दिल्ली.
वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को ट्रायल कोर्ट, जिला अदालतों और सत्र न्यायालयों को बिना किसी भय या पक्षपात के न्याय देने के लिए सशक्त बनाने के महत्व पर जोर दिया. जिला न्यायपालिका के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए सिब्बल ने जिला न्यायालयों की स्थिति कहा कि कमजोर नींव वाली कोई भी संरचना इमारत को प्रभावित करेगी और अंततः ढह जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रतिभाशाली युवा न्यायाधीशों के काम करने की ‘खराब परिस्थितियों’ के कारण जिला अदालतों में नियुक्तियां नहीं चाहते हैं.
अपने लंबे कानूनी करियर पर विचार करते हुए, सिब्बल ने जिला न्यायालय स्तर पर जमानत दिए जाने की कम संख्या पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, “अपने करियर में, मैंने शायद ही कभी उस स्तर पर जमानत देखी हो. यह केवल मेरा अनुभव नहीं है, बल्कि सीजेआई ने भी ऐसा कहा है क्योंकि हाईकोर्ट पर केसों का बोझ है. आखिरकार, निचली अदालत में जमानत एक अपवाद है.”
सिब्बल ने यह भी कहा कि तथ्य यह है कि निचली अदालत और जिला एवं सत्र अदालत कुछ महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देने से कतराते हैं. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने जिला अदालत के जजों की दयनीय स्थिति का उल्लेख करते हुए शनिवार को कहा कि जब तक उनके वेतन और बुनियादी ढांचे में सुधार नहीं किया जाता, तब तक न्याय वितरण प्रणाली की गुणवत्ता नहीं सुधरेगी.
सिब्बल ने ‘जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन’ में कहा कि स्वतंत्रता एक संपन्न लोकतंत्र की आधारभूत बुनियाद है और इसे बाधित करने का कोई भी प्रयास लोकतंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है. उन्होंने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ का हवाला दिया, जो अक्सर कहते हैं कि उच्चतर न्यायपालिका जमानत के मामलों से दबी है, क्योंकि निचली अदालतों के स्तर पर जमानत एक अपवाद प्रतीत होती है.
उन्होंने हाल ही में दिए गए कुछ अदालती फैसलों के बारे में बात की जो ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ के सिद्धांत का पालन करते हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अब विशेष अधिनियमों के संबंध में भी कई हालिया फैसलों में इस सिद्धांत को दोहराया है, जो दर्शाता है कि इस सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए.
सिब्बल ने कहा, “मैंने इस मुद्दे पर इसलिए जोर दिया है क्योंकि किसी देश का लोकतांत्रिक ढांचा इस बात पर निर्भर करता है कि अदालत हमारी राजनीति के संदर्भ में स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करती है या नहीं. स्वतंत्रता एक संपन्न लोकतंत्र की आधारभूत बुनियाद है. इसे बाधित करने का कोई भी प्रयास हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.”
जिला अदालतों की स्थिति पर उन्होंने कहा कि कमजोर नींव वाली कोई भी संरचना इमारत को प्रभावित करेगी और अंततः ढह जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रतिभाशाली युवा जजों के काम करने की ‘खराब परिस्थितियों’ के कारण जिला अदालतों में नियुक्तियां नहीं चाहते हैं.
सिब्बल ने कहा, “कई जज, कड़ी मेहनत और उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता के साथ राष्ट्र के लिए महान सेवा कर रहे हैं, भले ही वे उचित न्यायालय कक्षों और कार्यालय सुविधाओं, स्टेनोग्राफर एवं सहायक कर्मचारियों के अभाव में काम करते हों अथवा घर पर पुस्तकालय सुविधाओं, उचित आवासीय और आवश्यक परिवहन सुविधाओं से वंचित हों.”
उन्होंने जोर देकर कहा, “राष्ट्र की सेवा करने वाले लोगों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए जो अल्प वेतन मिलता है, उसके बारे में बताने की आवश्यकता नहीं है. जब तक हम वेतन और बुनियादी ढांचे- दोनों के संदर्भ में, उनके काम की स्थितियों में सुधार करने में सक्षम नहीं होते, न्याय वितरण प्रणाली की मात्रा और गुणवत्ता प्रभावित होगी ही.”
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इस अवसर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट लंबे समय से जिला अदालत की चिंताओं को दूर करने में शामिल रहा है और इन चिंताओं को दूर करने के लिए ‘राष्ट्रीय जिला न्यायपालिका क्षमता निर्माण आयोग’ बनाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकार और अदालतों की भागीदारी से इसे संस्थागत रूप दिया जाए.