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“यह न्यायिक स्वतंत्रता को समाप्त करने का प्रयास है …”: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर

पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए मौलिक है.

नई दिल्ली: 

न्यायिक नियुक्तियों के विषय पर सरकार के साथ न्यायपालिका के बढ़ते टकराव के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकुर ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के प्रयास काम नहीं करेंगे. उन्होंने न्यायपालिका की आलोचना करने वाले कानून मंत्री किरेन रिजिजू के हाल के बयानों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि वे “पूरी तरह से अकारण” है और इसलिए यह बयान “चौंकाने वाला” है. पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल के आरोप के बारे में पूछे जाने पर न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, “कानून या संवैधानिक संशोधन के माध्यम से सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को किसी भी तरह से वापस नहीं ले सकती है.”

न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए मौलिक है. इसलिए यदि किसी भी तरह से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को छीनने का कोई प्रयास किया जाता है, तो यह लोकतंत्र पर हमला होगा.

गौरतलब है कि इससे पहले सीनियर वकील और समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने एनडीटीवी से बात करते हुए केंद्र सरकार पर “स्वतंत्रता के अंतिम गढ़” न्यायपालिका (Judiciary) को अपने हाथ में लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि अदालतें इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़ी रहेंगी. जजों की नियुक्ति को लेकर जारी खींचतान और केंद्र के साथ तनाव पर कपिल सिब्बल ने यह साफ कर दिया कि वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली में अपनी कमियां हैं, लेकिन सरकार को इसमें पूर्ण स्वतंत्रता देना उपयुक्त तरीका नहीं है.

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में अपने पहले संबोधन में NJAC यानी न्यायिक नियुक्तियों पर रद्द किए गए कानून का मुद्दा उठाया था. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय पर “संसदीय संप्रभुता” से समझौता करने और “लोगों के जनादेश” की अनदेखी करने का आरोप लगाया था. इससे पहले कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भी लंबित मामलों को लेकर सवाल खड़ा किया था.

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