दिल्ली

बच्चों का यौन शोषण छिपी हुई समस्या, मामला दर्ज कराए, भले ही अपराधी परिवार का सदस्य ही क्यों न हो: CJI

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि बच्चों का यौन शोषण एक छिपी हुई समस्या है क्योंकि चुप्पी की संस्कृति है, इसलिए सरकार द्वारा परिवारों को दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, भले ही अपराधी…

नई दिल्ली:

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि बच्चों का यौन शोषण एक छिपी हुई समस्या है क्योंकि चुप्पी की संस्कृति है, इसलिए सरकार द्वारा परिवारों को दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, भले ही अपराधी परिवार का सदस्य ही क्यों न हो।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि आपराधिक न्याय प्रणाली इस तरह से कार्य करती है जिससे कभी-कभी पीड़ितों का आघात बढ़ जाता है, इसलिए कार्यपालिका को ऐसा होने से रोकने के लिए न्यायपालिका से हाथ मिलाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बाल यौन शोषण के लंबित मामलों के मद्देनजर राज्य और अन्य हितधारकों के लिए बाल यौन शोषण की रोकथाम और इसकी समय पर पहचान तथा कानून में उपलब्ध उपचार के बारे में जागरूकता पैदा करना अनिवार्य बनाते हैं। बच्चों को सुरक्षित स्पर्श और असुरक्षित स्पर्श के बीच का अंतर सिखाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पहले इसे अच्छा स्पर्श और बुरा स्पर्श माना जाता था। बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने माता-पिता से आग्रह किया है कि वे सुरक्षित और असुरक्षित शब्द का उपयोग करें क्योंकि अच्छे और बुरे शब्द का नैतिक प्रभाव पड़ता है और वे दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने से रोक सकते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इन सबसे ऊपर, यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है कि परिवार के तथाकथित सम्मान को बच्चे के सर्वोत्तम हित से ऊपर प्राथमिकता न दी जाए।

उन्होंने कहा कि सरकार को परिवारों को दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, भले ही अपराधी परिवार का सदस्य ही क्यों न हो। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि जिस तरह से आपराधिक न्याय प्रणाली काम करती है, वह कभी-कभी पीड़ितों के आघात को बढ़ा देती है। इसलिए कार्यपालिका को न्यायपालिका से हाथ मिलाना चाहिए ताकि ऐसा होने से रोका जा सके।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने विधायिका से पॉक्सो कानून के तहत सहमति की उम्र को लेकर बढ़ती चिंता पर भी विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आप जानते हैं कि पॉक्सो कानून 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच सभी यौन कृत्यों को आपराधिक बनाता है, भले ही नाबालिगों के बीच सहमति का तथ्य मौजूद हो, क्योंकि कानून की धारणा यह है कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच कोई सहमति नहीं होती है।

उन्होंने कहा कि किशोर स्वास्थ्य देखभाल के विशेषज्ञों द्वारा विश्वसनीय शोध के मद्देनजर इस मुद्दे को लेकर चिंता बढ़ रही है जिस पर विधायिका द्वारा विचार किया जाना चाहिए। मुझे इस विषय को यहीं छोड़ देना चाहिए क्योंकि यह विषय बहुत ही पेचीदा है जैसा कि हम हर रोज अदालतों में देखते हैं।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीड़ितों के परिवार पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने में बेहद हिचकिचाते हैं, इसलिए पुलिस को अत्यधिक शक्तियां सौंपने के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली की धीमी गति निस्संदेह इसके कारणों में से एक है। लेकिन अन्य कारक भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चों के यौन शोषण से संबंधित मुद्दों को लेकर बदनामी का डर रहता है।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों को यह याद रखना चाहिए कि बच्चों के पास वयस्कों की तरह शब्दावली नहीं हो सकती है और वयस्कों की तरह दुर्व्यवहार के विवरण पर चर्चा नहीं कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने एक प्रेस बयान में कहा कि 2012 के पॉक्सो कानून पर राष्ट्रीय परामर्श यूनिसेफ के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।

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