आत्मनिर्भर भारत का मोदी शाशनमें नया उदाहरण?

कोरोना महामारी से पूरी दुनिया दो साल तक गंभीर रूप से प्रभावित रही। करोड़ों मौतें हुईं और लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े
कोरोना महामारी से पूरी दुनिया दो साल तक गंभीर रूप से प्रभावित रही। करोड़ों मौतें हुईं और लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े। वैज्ञानिक कोरोना की दवा की खोज में दिन-रात शोध में लगे रहे। आखिरकार बचाव के लिए वैक्सीन का निर्माण हुआ। विदेशी कंपनियों के साथ-साथ भारत की भी दो कंपनियों ने कोरोना का टीका तैयार किया। देशी-विदेशी इन टीकों से कोरोना से शत-प्रतिशत बचाव होगा, ऐसी गारंटी अब तक सामने नहीं आई है। हालांकि कुछ डाक्टरों का दावा है कि इन्हें लगवाने से कोरोना से बचने के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। लेकिन इन टीकों से दुष्प्रभाव भी सामने आए। टीके लगवाने के बाद बुखार आना, हाथ-पैर का दर्द, सूजन, त्वचा की लालिमा जैसे मामूली लक्षण दिख सकते हैं, इसकी जानकारी तो लोगों को दी गई।
मगर कुछ लोगों ने अंदेशा जतलाया कि टीके लगने के बाद महिलाओं को मासिक धर्म में अनियमितता का सामना करना पड़ा। कुछ लोगों ने टीकों से हृदयाघात की आशंका जतलाई, हालांकि इनके पीछे कोई पुख्ता तर्क और तथ्य पेश नहीं किए गए। लेकिन टीकाकरण के बाद ऐसी शिकायतें आती रहीं। केंद्र सरकार का कहना है कि 19 नवंबर 2022 तक देश में कुल 219.86 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। इस अवधि में दुष्प्रभाव के कुल 92,114 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 89,332 मामूली मामले हैं और कुल 2,782 मामले गंभीर हैं। केंद्र ने ये भी कहा है कि दुष्प्रभाव वाले मामलों की निगरानी, जांच और विश्लेषण के लिए मौजूदा तंत्र पर्याप्त और पारदर्शी है।
केंद्र ने ये बातें सर्वोच्च अदालत में दर्ज एक हलफनामे में कहीं। दरअसल टीकों के दुष्प्रभाव के कारण दो लड़कियों की मौत के बाद उनके माता-पिता ने अदालत में याचिका दायर की थी। जिसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वह किसी भी कोविड-19 वैक्सीन से संबंधित मौत के मुआवजे के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। यदि किसी को लगता है कि कोविड-19 वैक्सीन के कारण किसी की मौत हुई है तो मुआवजे के लिए सिविल कोर्ट से संपर्क कर सकता है। केंद्र सरकार का यह भी कहना है कि वैक्सीन जैसी दवा के स्वैच्छिक उपयोग के लिए सहमति की ज़रूरत ही नहीं है। भारत सरकार सभी पात्र लोगों को सार्वजनिक हित में टीकाकरण करने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित करती है, इसके लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि वैक्सीन के दुष्प्रभाव के मामले पूरी दुनिया से सामने आए। शुरुआत में जब भारत में ऐसे मामले आए थे तो उन दावों को खारिज किया गया। लेकिन बाद में सरकार ने कहा था कि हर वैक्सीन के कुछ दुष्प्रभाव होते हैं और कोरोना वैक्सीन के मामले में भी ऐसा ही है। उसने यह भी कहा था कि अधिकतर दुष्प्रभाव मामूली थे और गंभीर मामलों की संख्या तो बेहद मामूली थी। सरकार के इस जवाब से पता चलता है कि उसने बड़ी चालाकी से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। ऐसा ही जवाब आक्सीजन की कमी पर उठे सवाल पर भी दिया गया था। तब भी सरकार ने ये मानने से इंकार कर दिया था कि आक्सीजन की कमी के कारण किसी संक्रमित की जान गई है। आक्सीजन सिलेंडर के लिए गरीबों से लेकर बड़े-बड़े ओहदेदार लोग तक परेशान हो गए थे। मगर सरकारी दावे के आगे सारी तकलीफें दब गईं। अब ऐसा ही जवाब वैक्सीन को लेकर सुनने मिला है।
सरकार अदालत में कह रही है कि वैक्सीन लगाने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। लेकिन जमीनी हकीकत तो ऐसी नहीं थी।
पाठकों को याद होगा कि कोरोना टीकाकरण को लेकर दुनिया के कई देशों में बड़े पैमाने पर अभियान चले। कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने वैक्सीन लगवाती हुई अपनी तस्वीरें प्रसारित करवाईं, ताकि जनता इनसे प्रेरित होकर खुद भी वैक्सीन लगवाने के लिए आगे आए। संचार के तमाम माध्यमों से टीकाकरण का प्रचार किया गया। भारत में भी वृहद स्तर पर टीकाकरण अभियान चला। प्रधानमंत्री मोदी ने भी वैक्सीन लेते हुई अपनी तस्वीरें जारी कीं। वैसे तो इससे पहले पोलियो की खुराक भी मुफ्त ही मिलती आ रही है। लेकिन कोरोना के मुफ्त टीकाकरण अभियान को मोदी सरकार ने अपनी अनूठी उपलब्धि की तरह पेश किया। दोनों टीके लगने के बाद जो प्रमाणपत्र जारी किया गया, उसमें प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर छपी हुई है।
ताकि जब भी लोग अपने टीकाकरण प्रमाणपत्र को देखें या दिखाएं तो उन्हें मोदीजी का चेहरा नजर आए। कई भाजपा शासित राज्यों ने मुफ्त टीकाकरण के लिए मोदीजी को धन्यवाद देने के विज्ञापन भी जारी किए। सूचना के आधार के तहत मांगी गई एक जानकारी में पता चला है कि, गुजरात सरकार ने क़रीब दो करोड़ 10 लाख रुपये, उत्तराखंड सरकार ने दो करोड़ 42 लाख रुपये, हरियाणा सरकार ने एक करोड़ 37 लाख रुपये और कर्नाटक सरकार ने दो करोड़ 19 लाख रुपये ख़र्च किए। एक निर्वाचित सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए दूसरी सरकारों द्वारा धन्यवाद देने का नायाब उदाहरण इससे पेश हुआ। टीकाकरण से लेकर उसके लिए धन्यवाद ज्ञापन तक जनता की कमाई से करोड़ों रूपए खर्च हो गए। लेकिन जनता को इन टीकों की वजह से कोई तकलीफ हो तो उसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार नहीं लेगी, यह आत्मनिर्भर भारत का एक बढ़िया नमूना है।
सरकार अदालत में वैक्सीन की अनिवार्यता न होने का दावा कर रही है। लेकिन टीकाकरण शुरु होने के बाद ऐसे कई प्रसंग सामने आए, जब लोगों को वैक्सीन और उसका सर्टिफिकेट लेने के लिए बाध्य किया गया। एयरलाइंस कंपनियां यात्रियों से वैक्सीन के प्रमाणपत्र मांगती थी, कई सरकारी-निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रमाणपत्र दिखाए बिना विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। उत्तरप्रदेश में सहारनपुर जिले के चकवाली गांव को इसलिए सील कर दिया गया था, क्योंकि वहां कुछ लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई थी।
कुछ समय पहले तक असम, हरियाणा, मध्यप्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में बिना वैक्सीन के मॉल, जिम, सरकारी मंडिया, बाज़ार जैसे सार्वजानिक स्थलों पर प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। केंद्र के दावों और राज्य सरकारों के नियमों का यह फर्क जनता के लिए हमेशा परेशानी का सबब बना। फिर भी देश में अधिकतर लोगों ने महामारी के खात्मे और जीवन को फिर से पटरी पर लाने की उम्मीद लिए वैक्सीन की दोनों खुराकें लगवाईं। और अब उन्हें पता चल रहा है कि अपने इस कृत्य की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर है, सरकार इसका हिस्सा नहीं बनेगी।