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राजीव गांधी का बलिदान व्यर्थ गया…इसमें न्याय कहां है? SC के फैसले पर बोलीं श्रीपेरंबुदूर ब्लास्ट की सर्वाइवर

दोषियों को रिहा करने के शीर्ष अदालत के फैसले से निराश सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अर्नेस्ट कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि उस बम विस्फोट में हुईं मौतें व्यर्थ थीं, उन लोगों के जीवन का कोई मोल नहीं था. यह आतंकवादी वारदात थी और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उन्हें अपने जीवन के अंत तक वहां रहना चाहिए था.’

सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अनुसूया डेजी अर्नेस्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘ब्लैक डे’ बताया है.

श्रीपेरंबुदूर:

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में नलिनी श्रीहरन और 5 अन्य लोगों को 31 साल की जेल के बाद आखिरकार मुक्त होना खुशी का क्षण हो सकता है, लेकिन सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अनुसूया डेजी अर्नेस्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ‘ब्लैक डे’ है. अर्नेस्ट तब पुलिस सब-इंस्पेक्टर थीं, जब उन्होंने राजीव गांधी की हत्या से कुछ सेकंड पहले, लिट्टे के ‘मानव बम’ धनु को पूर्व प्रधानमंत्री के पास आने से रोका ​था, लेकिन दूसरी बार ऐसा नहीं कर सकीं. ‘आराम से…चिंता मत करो’, 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी के अनुसूया से कहे यही अंतिम शब्द थे…इसके तुरंत बाद धनु उनका पैर छूने के लिए झुकी और अपने शरीर में बंधे जैकेट में विस्फोट कर दिया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री और 15 अन्य की मौत हो गई.

दोषियों को रिहा करने के शीर्ष अदालत के फैसले से निराश सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अर्नेस्ट कहती हैं, ‘मुझे लगता है कि उस बम विस्फोट में हुईं मौतें व्यर्थ थीं, उन लोगों के जीवन का कोई मोल नहीं था. यह आतंकवादी वारदात थी और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और उन्हें अपने जीवन के अंत तक वहां रहना चाहिए था. उनका जीवन जेल में ही बीतना चाहिए था. इस तरह रिहा नहीं करना चाहिए था. क्या राजीव गांधी का बलिदान, विस्फोट में मारे गए अन्य लोग या मेरे जैसे घायलों द्वारा सहा गया आघात व्यर्थ था?’ उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, ‘इन दोषियों के आतंकवादी कृत्यों के कारण मुझे आजीवन अपंगता का सामना करना पड़ रहा है. मरने वाले पुलिस अधिकारियों के परिवार के सदस्यों के बारे में क्या? सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में न्याय कहां है?’ इंदिरा गांधी की तरह ही, 47 वर्षीय राजीव गांधी की भी हत्या कर दी गई. वह भारत के दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री थे, जिनकी पद पर रहते हुए हत्या कर दी गई. उन्हें लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ने मारा था, जो अब श्रीलंका में एक निष्क्रिय सशस्त्र आतंकवादी समूह है, जिसने उस समय इस द्वीपीय राष्ट्र की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा था. लिट्टे का मुखिया वेलुपिल्लई प्रभाकरण था.

‘मैं चिल्लाई थी…मैं जीवित हूं…मुझे बचाओ’
अनुसूया डेजी अर्नेस्ट 1981 में एक कांस्टेबल के रूप में तमिलनाडु पुलिस में शामिल हुई थीं और जब श्रीपेरंबुदूर विस्फोट हुआ था तब वह सब-इंस्पेक्टर के पद पर थीं. बाद में वह मई 2018 में विल्लुपुरम जिले से अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुईं. पूर्व पीएम के साथ बिताए आखिरी कुछ पलों की यादें उनके दिमाग में आज भी ताजा हैं. उन्होंने News से बातचीत में उस घटना को याद करते हुए कहा, ‘कार्यक्रम स्थल की अच्छी तरह से घेराबंदी की गई थी और बड़ी संख्या में आए लोगों को व्यवस्थित तरीके से खड़ा किया गया था. जैसे ही राजीव गांधी पहुंचे, लोग उनका अभिवादन करने के लिए दौड़ पड़े. शोर-शराबे के बीच कोकिला नाम की एक युवा लड़की ने कविता पढ़ी. तभी दो महिलाएं शॉल लेकर उनके पास आईं. मैंने उन्हें दूर धकेलने की कोशिश की क्योंकि वे प्रधानमंत्री के बहुत करीब पहुंच गई थीं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘तभी राजीव गांधी ने मेरा कंधा थपथपाया और मुझे आराम करने के लिए कहा. मैं उन्हें देखकर मुस्कुराई, लेकिन भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मुझे वापस जाना पड़ा. तभी धमाका हुआ और चारों तरह धुएं का गुबार ही गुबार था. मुझे हर तरफ आग दिखाई दे रही थी और मेरे कानों में धमाके की गूंज थी. मुझे लगा कि मैं मरने जा रही हूं और मौत शायद इसी तरह दिखाई देती है.’ अर्नेस्ट ने कहा कि वह भाग्यशाली थीं कि जीवित बच गईं, क्योंकि राजीव गांधी के आसपास इकट्ठा होने वाली भीड़ ने गलती से उन्हें धक्का देकर एक किनारे की ओर कर दिया था. उन्होंने बताया, ‘विस्फोट में मेरे शरीर का बायां हिस्सा बुरी तरह प्रभावित हुआ था और मैं हिल भी नहीं पा रही थी, ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरे पूरे शरीर में आग लग गई है. यह ऐसा था जैसे मेरा शरीर पिघल गया हो; मैं मदद के लिए चिल्ला रही थी, मैं जीवित हूं…मुझे बचाओ. मैं प्रार्थना करती रही और हिलने की कोशिश करती रही, लेकिन विस्फोट की गर्मी ने मेरे कपड़े जला दिए थे और मेरी त्वचा बुरी तरह झुलस गई थी. मुझे जिंदा देख सब-इंस्पेक्टर राघवेंद्र दौड़े-दौड़े मुझे उठाने आए लेकिन मेरी पीठ और धड़ का निचला हिस्सा बुरी तरह जल चुका था.’ महिला अधिकारी ने बताया कि कैसे उन्होंने श्रीपेरंबदूर सरकारी अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष किया, जहां वह तीन महीने तक बिस्तर पर पड़ी रहीं. डॉक्टर उनके शरीर से बम के छर्रों को निकालने के लिए संघर्ष कर रहे थे. अर्नेस्ट ने अपने बाएं हाथ की दो अंगुलियां खो दीं, जिन्हें काटना पड़ा था, जबकि तीसरी अंगुली की प्लास्टिक सर्जरी हुई.

गांधी भाई-बहन ने नलिनी, 5 अन्य दोषियों को ‘पूरी तरह’ माफ कर दिया
नलिनी, जिसे शुक्रवार को रिहा किया गया, ने कहा कि वह ‘आतंकवादी नहीं’ थी, उसे 31 वर्षों तक जेल में पीड़ा झेलनी पड़ी और जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ा. अर्नेस्ट ने नलिनी की बात से असहमति जताई और कहा कि जिस सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का आदेश दिया, उसी ने उन्हें मामले की जांच के आधार पर दोषी ठहराया था. पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा, मैं निराश हूं, क्योंकि न केवल उनकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था, बल्कि अब एक ‘अमानवीय आतंकवादी कृत्य’ के दोषियों को समाज में ‘मुक्त घूमने’ का अवसर मिल रहा है. जेल की सजा के दौरान सभी दोषियों को उनके ‘संतोषजनक व्यवहार’ के आधार सुप्रीम कोर्ट ने रिहा करने का आदेश दिया.

साल 2018 में, तमिलनाडु सरकार ने भी राज्यपाल से दोषियों को मुक्त करने की सिफारिश की थी, जिससे शीर्ष अदालत द्वारा इस अंतिम निर्णय का मार्ग प्रशस्त हुआ. जिन छह दोषियों को रिहा किया गया उनमें नलिनी श्रीहरन, पी रविचंद्रन, जयकुमार, सुथेनथिराजा उर्फ ​​संथान, मुरुगन और रॉबर्ट पायस हैं. सातवें दोषी, एजी पेरारिवलन को मई में रिहा कर दिया गया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उसे जल्दी रिहाई दी थी. तमिलनाडु के प्रमुख राजनीतिक दलों, अन्नाद्रमुक और द्रमुक ने सक्रिय रूप से दोषियों की शीघ्र रिहाई के लिए अभियान चलाया, यह तर्क देते हुए कि वे मोहरे मात्र थे जिन्हें गुमराह कर दिया गया था, और बाद में हत्याकांड के असली अपराधियों ने उनके साथ धोखा कर दिया. राजीव गांधी के बच्चों और कांग्रेस नेताओं, प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी के यह कहने के बाद कि उन्होंने अपने पिता की मौत को स्वीकार कर लिया है और उनके हत्यारों को पूरी तरह माफ कर दिया है, दोषियों ने अदालत में इस बयान को अपनी रिहाई का आधार बनाया.

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