भाजपा तथा निर्वाचन आयोग की मिलीभगत ? चुनाव आयोग पर सच- साबित हुए राहुल !

अभी हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नवनिर्मित पार्टी मुख्यालय के उद्घाटन अवसर पर चुनाव आयोग पर उसके पक्षपातपूर्ण रवैये को लेकर निशाना साधा था
अभी हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नवनिर्मित पार्टी मुख्यालय के उद्घाटन अवसर पर चुनाव आयोग पर उसके पक्षपातपूर्ण रवैये को लेकर निशाना साधा था; और चौबीस घंटे बीतते न बीतते उनकी बात साबित होती भी दिख गयी। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने जानकारी दी कि दिल्ली चुनाव अधिकारी (डीईओ) ने ‘एक्स’ पर भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के आधिकारिक हैंडल पर जारी एक पोस्ट को रिपोस्ट कर दिया है। यह पोस्ट भाजपा नेताओं की चुनाव अधिकारियों के साथ हुई बैठक को लेकर थी।
संजय सिंह ने इसका स्क्रीन शॉट शेयर कर एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था तथा राजनीतिक दल के परस्पर सम्बन्धों को उजागर कर दिया है। राहुल गांधी ने अपने भाषण में हरियाणा तथा महाराष्ट्र विधानसभा के कुछ माह पहले हुए चुनावों के हवाले से संकेत दिये थे कि उनमें चुनाव आयोग ने पक्षपात किया था। राहुल का यह बयान इस परिप्रेक्ष्य में था कि वहां माहौल पूरी तरह से कांग्रेस और विपक्षी गठबन्धन इंडिया के पक्ष में था परन्तु परिणाम अप्रत्याशित रूप से भाजपा तथा उसके सहयोगी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के हक में गये थे।
संजय सिंह ने ‘एक्स’ पर की गयी अपनी पोस्ट में तंज कसा कि ‘निर्वाचन अधिकारी औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होकर उसका चुनाव प्रचार करेंगे।’ उन्होंने लिखा- ‘भारत के इतिहास में पहली बार- नयी दिल्ली के चुनाव अधिकारी ने चोरी-छिपे बीजेपी के ट्वीट-रिट्वीट करने शुरु कर दिये हैं। अब नयी दिल्ली विधानसभा के जिला अधिकारी कह रहे हैं ‘जब प्यार किया तो डरना क्या।’ कल सुबह 11 बजे जिला चुनाव अधिकारी बीजेपी ऑफिस में पार्टी ज्वाइन करेंगे।’ हालांकि जिला निर्वाचन अधिकारी की तरफ से इस मुद्दे पर सफाई आई कि सोशल मीडिया हैंडल का संचालन सोशल मीडिया सेल के एक अधिकारी करते हैं। उन्होंने ‘अनजाने में’ रिपोस्ट की थी और अब उन्हें बदल दिया गया है। लेकिन सवाल तो फिर भी उठता ही है कि अनजाने में ही सही, लेकिन भाजपा की पोस्ट को ही रिपोस्ट क्यों किया गया, क्यों चुनाव आयोग के दफ्तर ने किसी और दल के पोस्ट को रिपोस्ट नहीं किया।
संजय सिंह ने भाजपा और चुनाव आयोग के अंतर्संबंधों को इस ट्वीट प्रकरण के सन्दर्भ में उजागर किया है लेकिन देश पिछले एक अर्से से यह देख रहा है कि किस प्रकार भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में विपक्ष को नेस्तनाबूद करने की जो चालें चली जा रही हैं, उनमें निर्वाचन आयोग प्रमुख भूमिका निभा रहा है। निर्वाचन आयोग को जेबी संस्था की तरह बनाने की कोशिशें हो रही हैं, जिसका काम सत्ता के दिशानिर्देशों का पालन करना मात्र रह गया है। सारे चुनावी कार्यक्रम सत्ताधीशों की सुविधानुसार तय किये जाने लगे हैं।
अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिये भाजपा सरकार ने चुनाव आयोग को बेहद कमजोर कर दिया है। पहले जहां मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन प्रधानमंत्री, एक केन्द्रीय मंत्री, विपक्ष के नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मिलकर करते थे, पिछली सरकार ने एक कानून लाकर इस कमेटी से मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया। इस प्रकार से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर पूरी तरह से सरकार का अधिकार हो गया है और विपक्ष की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।
कई राज्यों तथा पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा तथा निर्वाचन आयोग की मिलीभगत के आरोप विपक्ष ने लगाए। हाल के हरियाणा व महाराष्ट्र चुनाव के साथ हुए उपचुनावों में भी देखा गया कि सुबह को रूझान कुछ थे जबकि एक-डेढ़ घंटे के भीतर ही सभी के अनुमान ध्वस्त होते गये और दोपहर होते न होते अंतत: भाजपा की ही विजय हुई थी। यह खेल कई राज्यों में खेला गया था। अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर पाई गयीं या उनमें हेर-फेर के साफ संकेत मिले – खासकर, लम्बे इस्तेमाल के बाद भी कई मशीनों का मतगणना के वक्त 99 फीसदी तक चार्ज रहना यह बताता है कि कहीं कोई गड़बड़ी हुई है। विपक्ष ही नहीं, अनेक प्रबुद्ध लोग तथा स्वयंसेवी संगठन चाहते हैं कि वोटिंग बैलेट पेपर से हो लेकिन उनकी न तो सरकार सुनती है और न ही स्वयं निर्वाचन आयोग। लोकसभा चुनाव के पहले कई विपक्षी दल इस बाबत आयोग से मिलकर अपनी बात कहना चाहते थे तथा डेमो के जरिये यह करके दिखलाना भी चाहते थे कि मशीनें हैक हो सकती हैं, पर निर्वाचन आयुक्त ने उन्हें समय ही नहीं दिया।
हाल ही में निर्वाचन आयोग ने मतगणना के बाबत यह प्रणाली अपना रखी है कि मतदान बन्द होने के कई घंटों के बाद वह संशोधित आंकड़े जारी करता है। दोनों के बीच थोड़ा-मोड़ा नहीं 5-7 प्रतिशत तक का फर्क होता है जो किसी भी परिणाम को पलटने के लिये पर्याप्त है। महाराष्ट्र में तो चार-पांच महीनों में ही वोटरों की संख्या 47 लाख बढ़ गयी थी। देश के कई राज्यों में भाजपा के पक्षधर वोटों के बढ़ने तथा विरोधी समझे जाने वाले मतदाताओं (अल्पसंख्यक, दलित, ओबीसी आदि) के नाम कटने के बड़े पैमाने पर प्रमाण मिले हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि पिछले लोकसभा चुनावों में तकरीबन 80 सीटें इसी तरीके से भाजपा के पक्ष में लाई गईं जिसके कारण आज भाजपा तीसरी बार सत्ता में है। चंडीगढ़ नगर निगम के महापौर के चयन का वाकया भी लोग भूले नहीं हैं जब निर्वाचन अधिकारी ने खुद ही भाजपा के पक्ष में वोट डाले थे।
अक्सर चुनाव के कुछ पहले या परिणाम निकलने के बाद ईवीएम पर बात की जाती है लेकिन राहुल ने दिल्ली चुनाव के ऐन बीच में, यह जानते हुए भी कि चुनाव इसी प्रणाली से होंगे, निर्वाचन आयोग के भाजपा का मददगार होना बताया था। दिल्ली निर्वाचन कार्यालय से भाजपा की पोस्ट को रिपोस्ट करने के प्रकरण ने उसकी पुष्टि कर दी।