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श्रीलंका की आर्थिक संकट में चीन का बड़ा हाथ, समझिए ड्रैगन ने कैसे किया बर्बाद!

आजादी के बाद से ही श्रीलंका अपने सबसे खराब आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। महीनों से लोग सड़क पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। देश में पेट्रोल-डीजल, दवाई और भोजन तक की दिक्कत हो गई है।

नई दिल्ली

आजादी के बाद से श्रीलंका अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। महीनों से लोग सड़क पर विरोध कर रहे हैं। देश में पेट्रोल-डीजल, दवाई और भोजन तक की दिक्कत हो गई है। सरकार के खिलाफ हिंसक विरोध हो रहा है। इमरजेंसी जैसे हालात हैं। श्रीलंका के पीएम महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा है। लेकिन श्रीलंका इस स्थिति में कैसे पहुंचा, आइए जानने की कोशिश करते हैं।

श्रीलंका की राजनीति में पिछले दो दशकों से राजपक्षे परिवार का दबदबा रहा है और इस दौरान श्रीलंका ने कर्ज से बेहिसाब कर्ज लिया है। 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे चुनाव में हार गए थे। उन पर भ्रष्टाचार सहित कई आरोप लगे थे। फिर 2019 में उनके भाई गोताबाया राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने 2019 ईस्टर संडे पर हुए आतंकी हमले को लेकर सख्त कार्रवाई का वादा किया।

कर्ज सरकार के नियंत्रण से बाहर होता गया

राष्ट्रपति बनने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने भाई महिंदा को पीएम बन दिया। गोताबाया ने श्रीलंका के इतिहास में सबसे बड़ी टैक्स कटौती किया जिससे पुराने बजट घाटे में बढ़ोतरी हुई। चीन ने श्रीलंका में जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का काम हुआ है, उसे भी चीन ने कर्ज में जोड़ा है। ऐसे में रेटिंग एजेंसियों ने अलर्ट करना शुरू किया कि सावर्जनिक कर्ज सरकार के नियंत्रण से बाहर हो रहा है और ऐसे में सरकार के लिए नए कर्ज को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं।

कोरोना वायरस ने श्रीलंका को तोड़कर रख दिया

श्रीलंका में टैक्स में कटौती बहुत की गलत वक्त पर की गई थी। कुछ ही महीनों बाद कोरोना वायरस दुनिया भर में फैलना शुरू हुआ। श्रीलंका की इकॉनमी में पर्यटन का बड़ा अहम रोल है और कोविड के कारण पर्यटकों का श्रीलंका पहुंचना बंद हो गया। विदेशों में काम करे श्रीलंकाई नागरिक भी पैसे भेजने में असमर्थ दिखे।  विदेशी मुद्रा को देखे बिना गोताबाया सरकार ने कर्ज चुकाने के लिए विदेशी मुद्रा के अपने भंडार का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

तब तक तब तक बहुत देर हो चुकी थी…

श्रीलंका की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं हुई। विदेशी भंडार तेजी से खत्म होने लगे तो 2021 में अधिकारियों ने कई आयातों पर प्रतिबंध लगा दिया। इसमें उर्वरक सबसे अहम था। श्रीलंका सरकार ने यह कहना शुरू किया वह दुनिया का पहला देश बन गया है जो पूरी तरह से ऑर्गनिक खेती कर रहा है लेकिन प्रभाव विनाशकारी रहे। करीब एक तिहाई खेत परती रह गए। पैदावार में गिरावट हुई तो चाय का उत्पादन सबसे बुरी तरह से प्रभवित हुआ। आखिरकार सरकार ने इस पॉलिसी को बाय-बाय किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

विदेशी भंडार भी श्रीलंका के काम न आया

2021 के आखिर तक श्रीलंका का विदेशी भंडार 7।5 बिलियन डॉलर से 2।7 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका था। व्यापारी माल खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा के स्रोत के लिए संघर्ष करने लगे। इससे हुआ ये कि चावल, दाल, चीनी आदि बाजार से गायब होने लगे। इसके बाद पेट्रोल-डीजल आदि की भी कमी होती गई। बिजली की दिक्कत इतनी बढ़ी कि 24 घंटे में 8-12 घंटे तक बिजली जाने लगी।

आर्थिक पतन की ओर बढ़ता रहेगा श्रीलंका?

हालात को बिगड़ते देखकर गोताबाया राजपक्षे ने अप्रैल में केंद्रीय बैंक का नया प्रमुख नियुक्त किया जिन्होंने पदभार ग्रहण करते ही घोषणा की कि श्रीलंका आवश्यक आयात के लिए पैसे बचाने के लिए अपने $ 51 बिलियन के विदेशी कर्ज को दिवालिया घोषित करेगा। लेकिन इस कदम से भी श्रीलंका के हालात नहीं बदले। श्रीलंका अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद की आस में है। केंद्रीय बैंक के प्रमुख नंदलाल वीरसिंघे ने कहा है कि जब तक एक नया प्रशासन जल्द ही कार्यभार नहीं संभालता देश आर्थिक पतन की ओर बढ़ता रहेगा।

 

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