गुजरात

हिन्दू रेप नहीं करते…: गांव लौटे बिलकिस बानो के दोषी ने कहा, डर के साए में रहती है वो

11 आजीवन दोषियों में से एक गोविंद नाई ने तर्क दिया, “हम निर्दोष हैं. क्या आपने एक चाचा और भतीजे को एक-दूसरे के सामने किसी के साथ बलात्कार करते देखा है? क्या यह हिंदू समुदाय में होता है? नहीं, हिंदू ऐसा नहीं करते हैं.” 2002 के गुजरात दंगों के मामले में इन्हें भाजपा की राज्य और केंद्र सरकारों ने समय से पहले रिहा कर दिया है.

एनडीटीवी ने पाया है कि गोविंद नाई और इन लोगों में से कुछ अन्य लोगों ने पैरोल पर बाहर होने पर गवाहों को कथित तौर पर धमकाया था. फिर भी उन्हें ‘अच्छे व्यवहार’ के लिए रिहा कर दिया गया. इस साल स्वतंत्रता दिवस पर पूरी तरह से रिहा होने से पहले उन्होंने इस तरह के पैरोल पर लगभग तीन साल बिताए, जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लाल किले के संबोधन में ‘महिलाओं का सम्मान’ करने की बात कही थी.

गोविंद नाई ने कथित तौर पर जुलाई 2017 में बिलकिस बानो मामले में उनके खिलाफ गवाही देने वाले दो लोगों को धमकी दी थी. इस सप्ताह की शुरुआत में जब एनडीटीवी उनके घर गया तो उन्होंने कहा, “बस मेरे गांव से चले जाओ.” उनके पिता भी परिवार के घर पर मौजूद थे, लेकिन उन्होंने बोलने से इनकार कर दिया.

2002 में उस रात के बाद से बिलकिस बानो गांव में रहने के लिए कभी नहीं आई. उसका घर अब एक दुकान है, जिसे उसने अपना परिवार चलाने के लिए कपड़े बेचने वाली एक हिंदू महिला को किराए पर दिया है.

बिलकिस बानो के घर के ठीक सामने एक बहुमंजिला घर है, उसमें रहने वाले राधेश्याम शाह को दोषी ठहराया गया है. उसका छोटा भाई आशीष शाह उसके सामने एक स्टॉल पर पटाखे बेच रहा है. उन्होंने दावा किया, “राधेश्याम अब यहां नहीं रहते.” राधेश्याम शाह और आशीष के अलावा एक अन्य दोषी पर पैरोल पर बाहर रहने के दौरान एक महिला के साथ मारपीट करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई है. आशीष शाह ने कहा कि प्राथमिकी “निराधार” है. वह आगे नहीं बोला.

उस मामले में शिकायतकर्ता, सबराबेन अय्यूब और पिंटू भाई, हिंदू बहुल गांव के मुस्लिम निवासी, अपने आरोपों पर कायम हैं, लेकिन कहते हैं कि वे अब डर में जी रहे हैं. एक अन्य दोषी राजूभाई सोनी अपनी आभूषण की दुकान पर था, लेकिन कैमरे देखते ही वह वहां से चला गया.

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एनडीटीवी ने उन अधिकारियों तक पहुंचने की कोशिश की, जो इन लोगों की जल्द रिहाई को मंजूरी देने वाली प्रक्रिया का हिस्सा थे, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. जिला मजिस्ट्रेट ने उत्तर नहीं दिया, जबकि पुलिस अधीक्षक, जिन्होंने रिहाई को भी मंजूरी दे दी थी, उन्होंने एनडीटीवी से प्रतिक्रिया मांगने के बाद कॉल काट दिया.

बिलकिस बानो, 21 साल की और उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उसकी तीन साल की बेटी भी 14 लोगों में शामिल थी, जिसे 3 मार्च, 2002 को दाहोद में एक भीड़ द्वारा मार डाला गया था. गोधरा में ट्रेन पर हमला किया गया था और 59 यात्रियों, मुख्य रूप से ‘कार सेवकों’ को जला दिया गया था. उस समय पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. तब से भाजपा ने राज्य में सत्ता नहीं खोई है. अगले विधानसभा चुनाव इस साल के अंत तक होने हैं.

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पुरुषों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो ने एक बयान जारी किया था, जिसमें कहा गया था, “पिछले 20 वर्षों के आघात ने मुझे फिर से डराया.. मैं अभी भी सुन्न हूं.”

उसने कहा, “मेरा दुख और मेरा डगमगाता विश्वास अकेले के लिए नहीं है, बल्कि हर उस महिला के लिए है जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है. इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण निर्णय लेने से पहले किसी ने मेरी सुरक्षा और कुशलक्षेम के बारे में नहीं पूछा. मैं गुजरात सरकार से अपील करता हूं, कृपया इसको पहले जैसा करें.” तब से सुप्रीम कोर्ट में रिहाई के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं.

 

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