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आजादी का अमृत महोत्सव में इस तथाकथित अमृतकाल में सवाल भी उठ रहे हैं ?

आजादी का अमृत महोत्सव में एंटोनियो गुटेरस की नसीहत

भारत में इस वक्त आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है

भारत में इस वक्त आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। लेकिन इस तथाकथित अमृतकाल में सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या आम भारतीय के पास गरिमामय जीवन के अधिकार हैं, क्या एक सामान्य भारतीय नागरिक को जो अधिकार संविधान से मिले हैं, वे सुरक्षित हैं, क्या अल्पसंख्यकों, दलितों, मजदूरों, आदिवासियों, गरीबों, महिलाओं, बच्चों और समाज के तमाम कमजोर वर्गों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो रहा है। इन सवालों के उठने की वजह ये है कि हर दूसरे दिन कोई न कोई ऐसी खबर आती है जिससे मानवाधिकारों के हनन की गंध मिलती है।

पिछले अगस्त माह से गुजरात दंगों की पीड़ित बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा करने और उनका स्वागत करने पर सवाल उठ रहे हैं। कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र नेताओं और अल्पसंख्यक समुदायों की आवाज़ उठाने वालों को प्रताड़ित करने की घटनाएं बीते महीनों में हुई हैं। दो दिन पहले ही कश्मीर की छायाकार-पत्रकार सना इरशाद मट्टू को अमेरिका जाने से दिल्ली विमानतल पर रोक दिया गया।

सुश्री मट्टू को उनके छायाचित्रों के लिए पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त हुआ है, जिसके लिए उन्हें अमेरिका जाना था। ऐसा उनके साथ लगातार दूसरी बार हुआ है। इस बारे में अमेरिकी सांसद एडम स्किफ ने की कि वह इस खबर से परेशान हैं कि सुश्री मट्टू को पुलित्जर पुरस्कार लेने के लिए अमेरिका से रोका गया। उन्होंने कहा कि कहा कि मीडिया को चुप करने और उसका उत्पीड़न करने की कोशिशें खत्म होनी चाहिए। एडम स्किफ की इस टिप्पणी को भारत के आंतरिक मामलों में दखल की तरह देखा जा रहा है।

भारत सरकार इस बारे में अपनी आपत्ति दर्ज कर सकती है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर हमारे मामलों में दूसरों को उंगली उठाने का मौका मिल कैसे रहा है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जब भारत को अल्पसंख्यकों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां सुननी पड़ी हैं। मीडिया की आजादी, लोकतंत्र, मानवाधिकार आदि की वैश्विक सूची में हमारी स्थिति लगातार गिर रही है। यह चिंता का विषय है औऱ सरकार को इस पर गंभीरता से आत्मावलोकन की जरूरत है। मगर हर बार ऐसी टिप्पणियों को खारिज करने की कोशिशें की जाती हैं, जिससे समस्या सुलझने की जगह और बिगड़ती जाती है।

अब एक बार फिर भारत को ऐसी ही स्थिति से दो-चार होना पड़ा है। आईआईटी बॉम्बे में ”इंडिया एट 75 : यूएन इंडिया पार्टनरशिप साउथ-साउथ कॉपरेशन” विषय पर बोलते हुए संरा महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि जब भारत अपने घर में समावेशी व्यवस्था और मानवाधिकारों को लेकर मज़बूती से प्रतिबद्धता दिखाएगा, तभी उसकी आवाज़ को वैश्विक मंच पर भी गंभीरता से लिया जाएगा। एक ओर सरकार वैश्विक नेतृत्व में भारत की अहम भूमिका को लेकर दावा कर रही है, लेकिन दूसरी ओर यूएन प्रमुख से ऐसी नसीहत सुनने मिलना, एक बड़ा झटका है।

एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि, भारत मानवाधिकार परिषद में निर्वाचित सदस्य है और उसकी यह ज़िम्मेदारी है कि वैश्विक मानवाधिकार को दिशा दे और अल्पसंख्यक समेत सभी व्यक्तियों के मानवाधिकारों की रक्षा करे। भारत की बहुविध संस्कृति के बारे में श्री गुटेरस ने कहा कि विविधता एक तरह की संपन्नता है और इससे आपका देश मज़बूत होता है। जन्मसिद्ध अधिकार सभी भारतीयों के पास है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसे हर दिन और हर समाज में मज़बूत करने की ज़रूरत है। वहीं राष्ट्रपिता को याद करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी के मूल्यों पर चलते हुए सभी के अधिकारों और मानवीय गरिमा का सम्मान होना चाहिए। ख़ास कर उनका जो मुश्किल स्थिति में रह रहे हैं। इसके अलावा नफरत भरे बयानों की निंदा करते हुए संरा महासचिव ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा होना चाहिए।

एंटोनियो गुटेरस की इन बातों पर हलचल मचनी शुरु हो गई है, जो कि स्वाभाविक ही है। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने मानवाधिकारों पर इस तरह नसीहत देने की निंदा करते हुए इसे भारत के लोकतंत्र का अनादर बताया। साथ ही याद दिलाया कि चीन में उइगर मुसलमानों के अधिकारों के हनन पर वे चुप रहते हैं। यह सही बात है कि चीन में उइगर मुसलमानों का शोषण हो रहा है। और इसकी भरपूर आलोचना होनी चाहिए। लेकिन इससे अपने देश में जो गलत हो रहा है, उसे सही नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि सब कुछ ठीक तब होगा, जब हरेक नागरिक के अधिकारों की रक्षा होगी, चाहे वह किसी भी वर्ग, धर्म या संप्रदाय का हो। गौरतलब है कि संरा महासचिव ने केवल भारत की आलोचना नहीं की, बल्कि दुनिया भर में मोदी सरकार की ओर से वैक्सीन पहुंचाने की प्रशंसा भी की। जब हम उनकी प्रशंसा को बिना किसी सवाल के स्वीकार कर सकते हैं। तो फिर उनकी आलोचना को स्वीकार करने का हौसला भी दिखाना होगा।

आजादी का अमृत महोत्सव सही मायने में तभी अपनी छाप छोड़ेगा, जब भारत के नागरिकों को संवैधानिक दायरे में हर तरह की आजादी हासिल होगी। उसके बिना यह उपलब्धि भी समुद्र मंथन के अमृत कलश की तरह हो जाएगी, जिसमें कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ मिलेगा, बाकी प्रतीक्षा करते रह जाएंगे।

 

 

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