मोदी शाशन में दो तरह का मीडिया, दो तरह के नेता

कर्नाटक में बरसते पानी में अविचलित उन्होंने जो भाषण दिया, वह तस्वीर तो राजनैतिक इतिहास के सुनहरे पन्नों में हमेशा के लिए अंकित हो चुकी है
लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है और सच्चा जनप्रतिनिधि वही हो सकता है, जो जनता तक सीधे पहुंचने की हिम्मत रखे और जिस तक जनता को पहुंचने की आजादी मिले। इस कसौटी पर मौजूदा राजनीति में राहुल गांधी ही ऐसे नेता दिख रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के तहत वे तमिलनाडु और केरल से होते हुए कर्नाटक तक पहुंच चुके हैं। रोजाना कम से कम 25 किलोमीटर पैदल चलते हुए वे लोगों से मिल रहे हैं, बातें कर रहे हैं, उनके साथ खा-पी रहे हैं, सुबह और शाम की पदयात्राओं के बीच का जो खाली वक्त मिल रहा है, उसमें भी वे अलग-अलग वर्गों के लोगों से मिल रहे हैं।
कर्नाटक में बरसते पानी में अविचलित उन्होंने जो भाषण दिया, वह तस्वीर तो राजनैतिक इतिहास के सुनहरे पन्नों में हमेशा के लिए अंकित हो चुकी है। क्योंकि अमूमन आज के नेता खुद को न केवल जनता से बल्कि, बारिश, धूप, गर्मी, धूल और धुएं से भी बचाते नजर आते हैं। बाढ़ हो या सूखा, अकाल हो या महामारी, ये हवाई सर्वेक्षण कर जमीनी हालात का जायजा लेते हैं। जनता के बीच जाकर उसके हाल चाल लें, ऐसी संवेदनशीलता अब सत्ताधारियों में नजर नहीं आती। लेकिन राहुल गांधी लगातार जनता के बीच जा रहे हैं।
भट्टा परसौल से लेकर हाथरस और कोरोना काल में मजदूरों का हाल-चाल लेने से लेकर अभी भारत जोड़ो यात्रा तक हर जगह, हर मौके पर उन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित किया है। कभी वे समुद्र में छलांग लगाते हैं, कभी एक हाथ से कसरती दांव लगाते दिखते हैं, कभी बच्चों के साथ फुटबाल खेलते तो कभी स्कूली बच्चों से संवाद करते दिखते हैं। उनका यह सहज स्वभाव जनता को लुभा रहा है, भले ही मीडिया उस पर कोई खास कवरेज दे या न दे, वे लोगों के दिलों में अपनी जगह तेजी से बनाते जा रहे हैं। यही वजह है कि जब वे बारिश में भीगते हुए भाषण दे रहे थे, तो लोग भी भीगते हुए उन्हें सुनने के लिए खड़े रहे, रैली छोड़कर कहीं गए नहीं।
राहुल गांधी के साथ चलने के लिए किसी को न खास रंग के कपड़ों से परहेज करने की जरूरत है, न ही उनके या कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी का कोई प्रमाणपत्र दिखाने की आवश्यकता। जिसे महसूस हो रहा है कि भारत की एकता में दरार डालने की कोशिशें हुई हैं और उन दरारों को भरने के लिए भारत जोड़ो यात्रा जरूरी है, वह राहुल गांधी का सहयात्री बन रहा है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभाओं में लगातार काले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है।
हर साल उनके किसी न किसी कार्यक्रम में काले कपड़े पहनने वालों को या तो प्रवेश ही नहीं दिया गया या फिर बाहर निकाल दिया गया। अभी पिछले सप्ताह अहमदाबाद में 36वें राष्ट्रीय खेलों की शुरुआत का कार्यक्रम नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में प्रधानमंत्री ने किया था और यहां भी जो दर्शक काले कपड़े पहन कर आए थे, उन्हें कार्यक्रम में आने नहीं दिया गया। काले कपड़े पहनने का यह अर्थ कतई नहीं है कि वह विरोध के लिए ही पहना गया हो। और अगर लोकतंत्र में अपने प्रधानमंत्री का विरोध जनता ने किया भी तो उस विरोध को सहने का माद्दा होना चाहिए।
काले कपड़ों पर प्रतिबंध के बाद अब प्रधानमंत्री की रैली में कवरेज के लिए पत्रकारों को चरित्र प्रमाण पत्र दिखाने का आदेश हिमाचल प्रदेश में दिया गया, बाद में विवाद होने पर इसे वापस लिया गया। गौरतलब है कि इस साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं और प्रधानमंत्री मोदी इस बार कुल्लू दशहरा देखने पहुंचे हैं। उनकी एक रैली 24 सितंबर को भी थी, जो खराब मौसम के कारण टाल दी गई। अब यह रैली मंडी में पांच तारीख को रखी गई।
लेकिन इससे पहले पुलिस ने 29 सितंबर 2022 को एक आधिकारिक अधिसूचना भी जारी कर रैली में आने वाले सभी प्रेस संवाददाताओं, फोटोग्राफरों, वीडियोग्राफरों और दूरदर्शन और आकाशवाणी की टीमों की सूची के साथ-साथ उनके ‘चरित्र सत्यापन का प्रमाण पत्र’ भी देने को कहा था। इस आदेश पर विवाद शुरु हुआ और विपक्षी दलों ने इस फैसले की कड़ी निंदा की। जिसके बाद इस फैसले को वापस लिया गया और हिमाचल प्रदेश के डीजीपी ने कहा कि पत्रकारों का स्वागत है और प्रधानमंत्री की रैली कवर करने में हमारा उन्हें पूरा सहयोग रहेगा, किसी भी असुविधा के लिए खेद है।
अगर इस फैसले पर विवाद नहीं बढ़ता तो संभव है कि रीढ़ की हड्डी गंवा चुके पत्रकार अपना चरित्र प्रमाण पत्र देकर प्रधानमंत्री की रैली का आंखों देखा हाल जनता तक पहुंचाने का महान काम करते, दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए तो यह सरकारी बाध्यता ही होती। हिमाचल प्रदेश में प्रयोग सफल होता तो मुमकिन है कि अन्य राज्यों में भी फिर यही सिलसिला शुरु हो जाता। इस बार विपक्ष के ऐतराज ने पत्रकारों की साख रख ली। सवाल ये है कि पत्रकार अपनी साख खुद बचाना कब शुरु करेंगे।
मीडिया के साथ अब गोदी और राष्ट्रवादी विशेषण लगने लगा है, जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि मीडिया पतन का नया दौर देख रहा है और इसके लिए मीडिया मालिक और वे पत्रकार जिम्मेदार हैं, जो अपने पेशे से गद्दारी कर चाटुकारिता में लगे हुए हैं। जब पत्रकार खुद सत्ता के चरणों में लोटने के लिए लालायित हैं, तो फिर उनसे चरित्र का प्रमाणपत्र मांगा जाए या प्रधानमंत्री की रैली कवर करने के लिए योग्यता की परीक्षा ली जाए, किसी बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सत्ता और मीडिया की जुगलबंदी देखकर अब जनता को विचार करना चाहिए कि वह अपना तंत्र बचाने के लिए किस तरह के नेताओं और किस तरह के मीडिया पर भरोसा करे।