तू धर्म और राष्ट्रवाद मैं जात-जमात! बिहार चुनाव के लिए म्यान से निकल चुकीं सियासी तलवारें, राजनीति का क्लियर कट संदेश आप भी समझिये

राहुल गांधी बिहार में दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं, जबकि एनडीए विकास की राजनीति के साथ ही धर्म और राष्ट्रवाद पर जोर दे रही है. इस बीच कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट शेयरिंग पर मतभेद उभरे हैं. ऐसे में बिहार की राजनीति का क्लियर कट सीन उभरता चला जा रहा है कि आगामी राजनीतिक दृश्य कैसा दिखने वाला है.
- राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस के रिवाइवल के लिए दलित वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं.
- महागठबंधन के भीतर कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट शेयरिंग पर मतभेद भी उभरे हैं.
- पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवाई में NDA विकास के साथ धर्म और राष्ट्रवाद पर जोर दे रही है..
पटना.
देश में दो तरह की राजनीतिक धारा तय हो चुकी है.एक धर्म और राष्ट्रवाद की राजनीति के रास्ते पर चल रही है तो दूसरी ओर जाति और जमात की राजनीति की राह पर अपनी रणनीति आगे बढ़ा रहा है. बीते 22 अप्रैल को जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ तो देश में राष्ट्रवाद उफान पर था. खास तौर पर जब धर्म पूछ कर निर्दोष पर्यटकों की हत्या की गई तो इसको विशेष धर्म से भी जोड़ा गया और जाहिर तौर पर इसको लेकर धर्म और राष्ट्रवाद की राजनीतिक धारा ने रफ्तार पकड़ी. इस कारण पाकिस्तान से युद्ध जैसा माहौल बन गया और देश-प्रदेश में दोनों ही मुद्दों को लेकर लोगों की भावना रही. पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग ने जोर पकड़ा.स्पष्ट है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों ने इसमें भी अपने लिए मौका ढूंढा. अब जब सीजफायर हुआ तो विरोधी पक्ष भी इस अचूक अस्त्र की काट खोजने में लग गया.एमपी के एक मंत्री के कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी ने आग में घी का काम किया तो समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने सेना में ही जाति ढूंढकर सियासत साधनी शुरू कर दी.वहीं, कांग्रेस ने जात और जमात की राजनीति को बिहार में गर्म कर दिाय.इसी क्रम में राहुल गांधी का बिहार दौरा हुआ और राजनीतिक संघर्ष का भारत पाकिस्तान सीजफायर के बाद देश में नए राजनीतिक संघर्ष का सूत्रपात हुआ. इस कड़ी में राहुल गांधी ने बिहार में हल्ला बोल दिया.
राजनीति के जानकार कहते हैं कि बिहार में दलित राजनीति को परवान चढ़ाने की और आगे बढ़ चली कांग्रेस की ओर से लगातार प्रयास किये जा रहे हैं कि कैसे भी यह वोट बैंक उसके खेमे में आए. यही कारण है कि बीते 5 महीने में ही राहुल गांधी चौथी बार बिहार पहुंचे तो संविधान बचाओ सम्मेलन, दलित स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी की जयंती, डॉक्टर अंबेडकर की जयंती और अब ज्योतिबा फुले के नाम से नई राजनीतिक लकीर खींचने लगे. जातिगत गणना को मुद्दा बनाते प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की मांग उठा दिया और साथ ही यह भी कहा कि रिजर्वेशन की 50 प्रतिशत की सीमा को वह सत्ता में आने पर तोड़ देंगे.केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार पर राहुल गांधी हमलावर हैं और वह इस मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं हैं.
कांग्रेस की मजबूती के लिए राहुल गांधी का बिहार दौरा
राहुल गांधी के बारे में चर्चा यह है कि वह हाल के दिनों में जब भी बिहार दौरे पर पहुंचे हैं तो तेजस्वी यादव से उनकी मुलाकात नहीं हुई .है ऐसे में राजनीति के जानकार यह भी दबी जुबान से चर्चा करने में लगे रहते हैं कि क्या कांग्रेस बिहार में अपने लिए कुछ और भी प्लानिंग कर रही है. हाल के दिनों में कांग्रेस के नेताओं की ओर से कहा गया है कि वह सभी 243 सीटों को लेकर भी अपनी तैयारियां पुख्ता कर रही है. खास बात यह कि कांग्रेस के इस राजनीतिक अभियान के सेंटर में एससी-एसटी समुदाय आ गया है. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की रणनीतिक रूप से राजनीतिक शिफ्ट बिहार में सीधे तौर पर देखा जा रहा है.
बिहार में कांग्रेस की नई रणनीति और दलित राजनीति
कुछ महीने पहले ही कांग्रेस के अपने सवर्ण समूह के अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर दलित नेता राजेश राम को यह जिम्मेदारी देने के पीछे कांग्रेस की रणनीतिक योजना है. वहीं, दलित समुदाय के सुशील पासी को बिहार का सह प्रभारी भी बनाया गया है. यह भी कहा तो यही जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस अपने आप को रिवाइव करने के मूड में है. वह दलित, मुस्लिम और सवर्ण वोटों को फिर से एक अभियान के तहत अपने साथ जोड़ने की कवायद कर रही है. दरअसल, राजनीति के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस की यह छटपटाहट राजद के साये से निकलने की भी है. हाल के दिनों में राहुल गांधी पहली बार जब वह 18 जनवरी को आए थे तो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की थी. इसके बाद 5 फरवरी, 7 अप्रैल और 15 मई के बिहार दौरे में वह न तो लालू प्रसाद यादव से मिले हैं और न ही तेजस्वी यादव से.
राजनीति के जानकारी इसके पीछे कांग्रेस की खस्ताहाली को भी बताते हैं और कांग्रेस की छटपटाहट को भी.बता दें कि 1990 के बाद से ही बीते तीन दशकों में बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन बद से बदतर होता गया है.पार्टी का वोट शेयर में लगातार घटोतरी हुई है जिससे यह संकेत मिलता है कि बिहार में कांग्रेस लगभग खत्म ही हो चुकी है. ये बीते विधासनभा चुनावों में वोट प्रतिशत हिस्सेदारी केआंकड़ों के जरिये भी आप समझ सकते हैं.
वर्ष – मत प्रतिशत
1990 – 24.78%
1995 – 16.30%
2000 – 11.06%
2005 – 6.09%
2010 – 8.37%
2015 – 6.7%
2020 – 9.48%
पारंपरिक वोट बैंक को फिर से आकर्षित करने की कवायद
साफ समझा जा सकता है कि लालू यादव के सत्ता में आने के साथ ही कांग्रेस के मत प्रतिशत में गिरावट आती गई है. वर्ष 2005 के बाद जब से नीतीश कुमार सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे तो बिहार की राजनीति में लगभग कांग्रेस राजद के आगे अप्रासंगिक हो गई. इस बार राहुल गांधी दलित समुदाय तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और अपने पारंपरिक वोट बैंक को फिर से आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि जिस तरह से कांग्रेस आक्रामक रूप से दलित और पिछड़ों की राजनीति की वकालत कर रही है ऐसे में उसके रहा-सहा सवर्ण वोट भी बिखर जाएगा और ऐसा न हो कि कांग्रेस को लेने के देने पड़ जाए.
पीएम नरेंद्र मोदी रोहतास की धरती से क्या संदेश देंगे?
वहीं, दूसरी ओर एनडीए ने भी धर्म और राष्ट्रवाद की राजनीति के आसरे अपने चुनावी अभियान को रणनीतिक अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद आगामी 30 में को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के रोहतास पहुंचेंगे तो निश्चित तौर पर राष्ट्रवाद एक बड़ा मुद्दा होगा.पाकिस्तान को धूल चटाने की बात पीएम के संबोधन का प्रमुख हिस्सा तो होगा ही, इसके साथ ही विकास योजनाओं का पिटारा उनके खाते में तो हमेशा ही रहता है. सासाराम बिक्रमगंज से पीएम मोदी पटना एयरपोर्ट के टर्मिनल का उद्घाटन करेंगे तो पटना सासाराम गया फोरलेन रोड और बिहटा एयरपोर्ट का शिलान्यास करेंगे.लेकिन, यह सभी मानते हैं कि इस बार विकास और राष्ट्रवाद का मुद्दा उनके इस अभियान का बड़ा दांव रहेगा.
म्यान से सियासी तलवारें निकल चुकी हैं और अब…
दूसरी ओर कांग्रेस और आरजेडी की दूरी मोटे तौर पर दिख रही है. सीट शेयरिंग में 70 सीटों की दावेदारी के मुद्दे पर कांग्रेस अड़ी हुई है, जबकि आरजेडी 50 से 60 सीटों के बीच ही देने की बात कह रही है. दूसरी ओर बिहार की राजनीति में राहुल गांधी जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं ऐसे में एनडीए से अधिक वह आरजेडी को नुकसान पहुंचाते अधिक दिख रहे हैं. दलित और मुस्लिम मतों पर अब तक आरजेडी की दावेदारी रहती आई है जिस पर कांग्रेस डोरे डाल रही है. हालांकि, राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह दबाव सिर्फ सीटों की हिस्सेदारी तक ही सीमित रहेगा और मगाहठबंधन एक हो जाएगा. बहरहाल, म्यान से सियासी तलवारें बाहर आ चुकी हैं सियासी युद्ध के मुद्दों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है. एक का पक्ष धर्म और राष्ट्रवाद के साथ विकासवाद को लेकर आगे बढ़ रहा है तो दूसरा पक्ष सामाजिक न्याय के नारे के तहत जमातवाद और जातिवाद को लेकर आगे बढ़ चला है.