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देश की ये बेटी अंकिता से अंकिता को इंसाफ का इंतजार

यह बड़े अफसोस की बात है कि देश में आधी आबादी के अधिकारों और सुरक्षा की लचर स्थिति पर हर दूसरे दिन लिखने की जरूरत पड़ती है

यह बड़े अफसोस की बात है कि देश में आधी आबादी के अधिकारों और सुरक्षा की लचर स्थिति पर हर दूसरे दिन लिखने की जरूरत पड़ती है। देश में शारदीय नवरात्र का आगाज़ हो चुका है और अब 9 दिनों तक देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी। मंदिरों में देवी दर्शन के लिए भीड़ उमड़ेगी, श्रद्धालु कठिन व्रत रखेंगे और फिर कन्या पूजा की जाएगी। यह सिलसिला हमेशा से चला आ रहा है।

हालांकि इस देवीपूजक देश में महिलाओं को इज्जत और बराबरी के साथ व्यवहार की तमीज़ बड़े वर्ग में अब तक नहीं आई है। कन्या भ्रूण हत्या से लेकर दहेज और बलात्कार से लेकर वेश्यावृत्ति तक अनेक किस्म के गंभीर अपराधों का शिकार महिलाओं को बनाया जाता है। ऐसे अपराध रोजाना इतनी अधिक संख्या में घटित होते हैं कि समाज में अब इन्हें लेकर कोई हलचल नहीं मचती, केवल सतही प्रतिक्रियाएं आती हैं और उसमें भी अधिकतर लड़कियों का ही दोष ढूंढ लिया जाता है।

पिछले महीने ही झारखंड में अंकिता नाम की लड़की को पेट्रोल डालकर एक लड़के ने इसलिए जिंदा जला दिया था, क्योंकि उसने लड़के की मर्जी और दबाव के बावजूद उससे बात करने और दोस्ती से इंकार कर दिया था। यह इंकार उसे ऐसा नागवार गुजरा कि उसने लड़की को जिंदा जला दिया। अब उत्तराखंड में अंकिता नाम की ही एक और लड़की की पहाड़ी से धक्का देकर हत्या कर दी गई। इस लड़की का कसूर ये था कि उसने अपने कार्यस्थल पर वेश्यावृत्ति के फरमान को मानने से इंकार कर दिया था।

19 बरस की यह पीड़िता अपने घर की खराब आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई छोड़कर एक रिसार्ट में रिसेप्शनिस्ट का काम कर रही थी। यह काम उसे पिछले महीने ही मिला था, जिसमें 10 हजार रुपए के वेतन के अलावा भोजन और आवास की सुविधा भी थी। जिस लड़की के पिता की नौकरी छूट गई हो, मां आंगनबाड़ी में काम करती हों औऱ भाई पढ़ता हो, उसे अपने परिवार को सहारा देने के लिए यह नौकरी ठीक लगी। लेकिन पुलिस के मुताबिक अंकिता और उसकी एक दोस्त के बीच हुई व्हाट्सऐप चैट से पता चला है कि अंकिता को अपने काम के अलावा रिसार्ट में आने वाले ग्राहकों की अतिरिक्त सेवा करने के लिए रिसार्ट के मालिक और मैनेजर दबाव डाल रहे थे।

जबकि अंकिता इस अघोषित वेश्यावृत्ति में बिल्कुल नहीं जाना चाहती थी। अंकिता ने अपने नियोक्ता के फरमान को नहीं माना तो उसे पहाड़ी से धक्का दे दिया गया।लेकिन यह सब एक दिन में पता नहीं चला। अंकिता की लाश मिलने से पहले पांच दिन उसके परिजन उसे ढूंढने के लिए भटकते रहे और वे पुलिस के पास भी गए। लेकिन पुलिस को छठवें दिन नहर में अंकिता की लाश मिली। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पुलिस से इस बात का जवाब मांगे कि एक लड़की की गुमशुदगी की शिकायत के बावजूद उसे ढूंढने में पांच दिन क्यों लग गए। क्या पुलिस इस बात को नहीं जानती कि पांच दिन क्या पांच घंटे अगर किसी लड़की की खबर उसके परिजनों को नहीं मिले, तो कैसी-कैसी आशंकाएं उन्हें सताती हैं।

खबरों के मुताबिक रिसार्ट का मालिक पुलकित आर्य भाजपा नेता और पूर्व मंत्री विनोद आर्य का बेटा है। विनोद आर्य और पुलकित के बड़े भाई अंकित आर्य को भाजपा ने बर्खास्त कर दिया है। अंकित आर्य को उत्तराखंड ओबीसी कमिशन के उपाध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया है। इसके अलावा न्याय के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करते हुए प्रशासन ने रिसार्ट के एक हिस्से को अवैध बताते हुए ढहा भी दिया है। इसमें रिसार्ट के रिसेप्शन का एक हिस्सा और वो कमरा ध्वस्त हो गए हैं, जिसमें अंकिता रहती थी। अब सवाल ये है कि क्या भाजपा अपने नेता की बर्खास्तगी के अलावा जनता को यह आश्वासन दे पाएगी कि अंकिता के गुनहगारों को सजा मिलेगी, फिर चाहे वो किसी के बेटे या भाई हों। क्या पुलिस प्रशासन एक पूर्व मंत्री के बेटे पर सख्ती दिखा पाएगा। दूसरा सवाल ये है कि प्रशासन को अंकिता की लाश मिलने से पहले रिसार्ट के निर्माण में अनियमितता क्यों नजर नहीं आई थी। जिस कमरे में अंकिता रहती थी, उसे ढहा कर क्या उन संभावित सबूतों पर मिट्टी नहीं डाल दी गई, जो इस हत्याकांड के खुलासे में मददगार साबित हो सकते थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि अंकिता को धक्का देने से पहले उसके साथ मारपीट भी हुई थी।

लेकिन जिस लड़की पर वेश्यावृत्ति का दबाव बनाया जा रहा हो, जिसे पुलिस पांच दिनों तक ढूंढ नहीं पाई, क्या उसके साथ कुछ और अनहोनी की आशंका नहीं होती है। आरोपियों पर केवल हत्या का मामला दर्ज होगा या किसी और संगीन अपराध की धाराएं इसमें जुड़ेंगी। एक सवाल ये भी है कि अंकिता ने तो अपने इंकार की कीमत जान देकर चुकाई, लेकिन उस रिसार्ट में क्या इससे पहले किसी और लड़की को ऐसे ही अपराध का शिकार नहीं बनाया गया होगा। देवभूमि उत्तराखंड में बारह महीने देशी-विदेशी पर्यटक मौजूद रहते हैं और उनकी सुविधा के लिए कई बड़े छोटे होटल और रिसार्ट बने हुए हैं, क्या इनमें पुलिस उन रिसार्ट्स की शिनाख्त कर पाएगी, जहां कार्यरत लड़कियों पर ऐसा खतरा मंडरा रहा हो।

एक आखिरी सवाल जनता से है। अंकिता का प्रकरण सामने आने के बाद उसके परिजनों के साथ-साथ आम जनता का गुस्सा भी सरकार और प्रशासन के खिलाफ फूट चुका है। लोगों ने अपनी नाराजगी स्थानीय विधायक की गाड़ी पर हमला करके और रिसार्ट के एक हिस्से में आगजनी से जाहिर की। हालांकि इस तरह अंकिता को न्याय नहीं मिल सकता। जनता के पास जब अपने मत का इस्तेमाल करने का मौका आता है, तो सरकार के पिछले कामकाज, जनप्रतिनिधि की उपलब्धियां, उम्मीदवारों की योग्यता और सबसे बढ़कर विचारधारा के आधार पर अपना फैसला न करके, धर्म या जाति को तवज्जो जनता क्यों देती है। अगर वह सोच विचार कर अपने प्रतिनिधियों और सरकार को चुने तो इस तरह बाद में गुस्सा जतलाने की नौबत नहीं आएगी।

झारखंड की अंकिता न्याय के इंतजार में है, इस बीच देश में कुछ और अंकिताओं के जीवन और अस्मिता से खिलवाड़ हो गया और अब इंसाफ की कतार में उत्तराखंड की अंकिता भी खड़ी हो गई है।

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