दिल्ली

दिल्ली सरकार से केसीआर तक, आबकारी नीति के बहाने भाजपा के तेज होते हमले के सियासी मायने क्या?

देश में बदलते सियासी हालात को देखें तो कांग्रेस के बाद भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी एक बड़ी चुनौती बनता जा रही है। खासतौर पर जिस तरह आप ने पंजाब में सत्ता हासिल की है, उसने भाजपा को परेशान किया होगा।

नई दिल्ली

दिल्ली में शराब पॉलिसी को लेकर चल रही सीबीआई जांच के बीच भाजपा आम आदमी पार्टी पर हमलावर है। उसके हमले के केंद्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया तक हैं। वहीं दूसरी तरफ भाजपा के हमलों में रविवार को एक नाम जुड़ गया। भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने आबकारी नीति के घपले में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का नाम भी जोड़ा। प्रवेश वर्मा ने दावा किया कि केसीआर के फैमिली मेंबर्स आबकारी नीति बनाए जाने के लिए दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई मीटिंग्स में शामिल हुए थे। भारतीय जनता पार्टी द्वारा तेज होते इस हमले के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

आम आदमी पार्टी पर इसलिए निशाना
देश में बदलते सियासी हालात को देखें तो कांग्रेस के बाद भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी एक बड़ी चुनौती बनता जा रही है। खासतौर पर जिस तरह से आप ने पंजाब में सत्ता हासिल की है, उसने भाजपा माथे पर चिंता की लकीरें जरूर खींच दी होगी। एक अन्य सियासी पहलू यह है कि अगले कुछ ही महीनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। यहां पर आम आदमी पार्टी खुद को तेजी से मजबूत करने में लगी है। खासतौर पर गुजरात में आम आदमी पार्टी का उभार भाजपा के लिए एक बड़ी चिंता का विषय हो सकता है।

भाजपा नहीं गंवाना चाहेगी अपना गढ़
बता दें कि 2014 से लेकर 2017 के बीच गुजरात में भाजपा नुकसान वाली हालत में पहुंची। जहां 2014 में उसने सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल थी। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में वह पिछले चुनाव के 115 के मुकाबले केवल 99 सीटों पर ही सिमट गई थी। ऐसे में अगर आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां और ज्यादा नुकसान उठाती है तो यह उसके दो बड़े चेहरों गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी एक बड़ा झटका होगा। ऐसे में भाजपा अपने गढ़ को बचाने के लिए तमाम सियासी ताकत झोंक रही है।

केसीआर पर इसलिए तो नहीं निशाना?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के साथ भाजपा और एनडीए के रिश्ते कभी नरम-गरम रहे हैं। हालांकि बीते कुछ वक्त में प्रधानमंत्री मोदी के साथ केसीआर की नाराजगी कई मौकों पर आम हुई है। कुछ समय पहले जब पीएम मोदी तेलंगाना पहुंचे थे तब केसीआर उन्हें रिसीव करने नहीं पहुंचे थे। जबकि प्रोटोकॉल के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री को रिसीव करने पहुंचना होता है। इसके अलावा केसीआर ने नीति आयोग की मीटिंग में भी शामिल होने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि उन्हें इससे कोई फायदा नहीं दिख रहा है। इतना ही नहीं, साल की शुरुआत में उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को बर्खास्त करने की मांग भी की थी। अब जब भाजपा सांसद ने दिल्ली आबाकारी नीति के घपला मामले में उनका नाम घसीटा है तो इसे इन तमाम घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है।

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