बिलकिस बानो केस में गुजरात सरकार की सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है किरकिरी, जानें क्या हैं पहले के फैसले

सुप्रीम कोर्ट एक मामले में कह चुका है कि अप्रिय घटनाओं को रोकने और अपराध को रोकना राज्यों की जिम्मेदारी है।
नई दिल्ली
गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों की गुजरात सरकार द्वारा समय से पहले रिहाई की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास पिछले फैसलों के रूप में पर्याप्त दलीलें हैं। 23 अप्रैल 2019 को अदालत ने बानो मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये का पुरस्कार देते हुए कहा कि कैसे “क्रूर, शैतानी, भीषण हिंसा के कृत्य” ने उसके दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है जो उसे सताते रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तत्कालीन 21 वर्षीय और गर्भवती बिलकिस का बार-बार सामूहिक बलात्कार किया गया था। वह अपनी साढ़े तीन साल की बेटी को मौत के घाट उतारने वाली घटना की मूक और असहाय गवाह थी। 2002 के दंगों की तबाही और हिंसा से भागते हुए उसने अपने परिवार के सभी सदस्यों को खो दिया था। अदालत ने कहा कि उसने एक खानाबदोश, एक अनाथ का जीवन जिया है।
11 दोषियों की सजा माफ करने के राज्य सरकार के फैसले ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है। नागरिक अधिकार समूहों ने सुप्रीम कोर्ट से छूट को रद्द करने का आग्रह किया है। बिलकिस के परिवार ने मीडिया से कहा है कि उन्हें डर है कि भविष्य में उनके साथ कुछ भी हो सकता है।
तमिलनाडु में गृह सचिव बनाम राजन मामले में शीर्ष अदालत ने माना था कि समय से पहले रिहाई देना विशेषाधिकार का मामला नहीं है, लेकिन यह उचित सरकार को प्रदत्त कर्तव्य के साथ शक्ति है। अदालत ने कहा था कि “छूट अपराध की प्रकृति को कम नहीं करना है।
कोर्ट ने लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार ने पाँच प्रश्न रखे थे जो छूट पर निर्णय लेने से पहले राज्य सरकार के दिमाग में आने चाहिए। वे हैं कि क्या अपराध अपराधी का एक व्यक्तिगत कार्य है जो समाज को प्रभावित नहीं करता है। दूसरा- क्या भविष्य में अपराध के दोहराए जाने की संभावना है। तीसरा- क्या अपराधी ने अपराध करने की क्षमता खो दी है। चौथा- क्या दोषी को जेल में रखने का कोई उद्देश्य पूरा हो रहा है और पांचवा दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है।
सुप्रीम कोर्ट ने नंदिनी सुंदर बनामछत्तीसगढ़ मामले में कहा था कि अप्रिय घटनाओं को रोकने और अपराध को रोकना राज्यों की जिम्मेदारी है।