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नेहरूजी के आगे खड़े होने की कोशिश करती मोदी सरकार ?

देश में इस वक्त आजादी की 75वीं वर्षगांठ का शोर है। देशभक्ति और राष्ट्रवाद से भरे ओजपूर्ण गीत लाउड स्पीकर पर जोर-जोर से बजाए जा रहे हैं

 

देश में इस वक्त आजादी की 75वीं वर्षगांठ का शोर है। देशभक्ति और राष्ट्रवाद से भरे ओजपूर्ण गीत लाउड स्पीकर पर जोर-जोर से बजाए जा रहे हैं। एक तरह की होड़ है कि शहर के किस नुक्कड़, गांव की किस गली से कितने जोर से गाने बज सकते हैं। देशभक्ति साबित करने के लिए अब तिरंगा लहराने का काम भी दे दिया गया है। देश से प्यार, आजादी की खुशी अब मन में मनाने से काम नहीं चलेगा, नए भारत में हर चीज दिखावे की हो गई है। देशभक्ति भी इसी श्रेणी में शुमार है।

1947 में जब देश को आजादी मिली थी, उस वक्त लोगों में नए भारत की, अपने शासन की, लोकतंत्र की ढेर सारी उम्मीदें थीं। कई डर भी थे कि कैसे भारत अपने पैरों पर खड़ा होगा, नयी सरकार किस दिशा में देश को आगे लेकर जाएगी, कैसे गुटों में बंटी हुई दुनिया में भारत अपना स्थान सुरक्षित करेगा, बंटवारे के जख्म से कराहते लोगों को सरकार कैसे संभालेगी, हिंदू-मुसलमान के बीच की खाई कैसे भरी जाएगी, खेती, उद्योग, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान ऐसे तमाम क्षेत्रों में देश किस नजरिए के साथ आगे बढ़ेगा, ऐसे ढेरों सवाल उस वक्त के नेताओं और लोगों के मन में थे। गनीमत थी कि नेहरू जी जैसे दूरदृष्टा नेता के हाथ में भारत की कमान गयी, जिन्होंने उदार सोच और व्यापक नजरिए के साथ देश को संभाला। उनकी बात हिंदू भी सुनते थे और मुसलमान भी। और वे इतने बेखौफ थे कि खुली जीप में घूमते थे, भीड़ के बीच अकेले घुस जाते थे, कोई विरोध करे या नाराज हो तो उसकी बात गौर से सुनते थे।

देश के भीतर वो लोगों के प्रिय नेता थे और दुनिया के लिए वो शांतिदूत थे, जो अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए देशों के लिए मिसाल थे। 1947 से नेहरूजी ने देश को इस तरह संभाला कि देश कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन गया। और उनके बाद भी आने वाली सरकारों ने उनकी नीतियों पर देश को चलाया और आगे बढ़ाया। कई सार्वजनिक निकाय स्थापित हुए, एम्स, आईआईटी, इसरो जैसी संस्थाएं बनीं, देश में स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय। इन सबके साथ लोगों में देशभक्ति की भावना भी विकसित हुई। कारखानों, उद्योगों, बांधों, सड़कों, रेल लाइनों, में लोगों को देश का विकास दिख रहा था और इसके लिए प्यार जाग रहा था। अपने प्यार को दिखाने के लिए लोग 15 अगस्त और 26 जनवरी को बड़े उत्साह के साथ तिरंगा फहराते थे, प्रभात फेरियां निकालते थे, देशभक्ति के गीत गाते थे। तब तिरंगा फहराने की कोई जबरदस्ती नहीं थी। लेकिन अब सरकार अपने ही लोगों से देशभक्ति का सबूत मांग रही है।

जब सरकार आपसे कहे कि आपको अपनी आजादी का उत्सव इस ढंग से मनाना है, तो फिर यह सवाल ये उठता है कि क्या हम वाकई आजाद हैं। हमें देशभक्ति साबित करने के लिए तिरंगा फहराकर उसकी फोटो पोस्ट करने की जरूरत क्यों पड़ रही है। अगर हम ईमानदारी से अपना काम करें, संविधान के खिलाफ कोई कदम न उठाएं, समय पर अपने करों का भुगतान करें, रिश्वत, धोखाधड़ी, बैंकों से कर्ज लेकर वापस न करना, ऐसे गलत काम न करें, समाज और देश को तोड़ने वाले काम न करें, सभी धर्मों की इज्जत करें और सौहार्द्र को कायम रखें तो क्या ये सब देशभक्ति नहीं कहलाएगी। जाहिर है मौजूदा वक्त में देश से प्यार के ये पैमाने बदल गए हैं और अब इसके साथ स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बदलने की चालाकी भी सरेआम की जा रही है।

खासकर नेहरूजी का नाम किसी भी तरह से धूमिल हो, इसकी कोशिश हो रही है। जैसे कर्नाटक सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान को लेकर एक विज्ञापन अखबारों में दिया है, जिसमें गांधीजी से लेकर वी डी सावरकर तक की तस्वीर है, साथ में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री बोम्मई की भी तस्वीर है, लेकिन नेहरूजी की तस्वीर इस विज्ञापन में नहीं है। कर्नाटक सरकार ने स्वाधीनता सेनानियों की तस्वीरों में नेहरूजी का चित्र शामिल करना जरूरी नहीं समझा और देश के सबसे तेज समाचार चैनल की तेज तर्रार एंकर ने आजादी के दौरान के एक वीडियो को अपने कार्यक्रम में दिखाते हुए अपने पीछे नेहरू जी को छिपाने की कोशिश की। इस वीडियो में एंकर खुद सफेद-काली साड़ी में पुराने जमाने की नायिकाओं की तरह तैयार हुई 15 अगस्त 1947 की उन घड़ियों का वर्णन कर रही हैं, जब देश को आजादी मिली थी। इस वीडियो में तकनीकी के कमाल से एंकर ने इस तरह अपना स्थान बनाया है कि जहां नेहरू जी खड़े होकर उत्साही जनता का अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं, ठीक उनके सामने एंकर आ कर खड़ी हो जाती है। ये सरासर नेहरूजी को पार्श्व में धकेलने की नापाक साजिश दिख रही है। वीडियो बनाने वाले चाहते तो एंकर का स्थान कहीं और बना सकते थे, लेकिन नेहरूजी को किन के इशारे पर दबाया जा रहा है, यह समझना कठिन नहीं है।

75 बरस पहले जब आजादी मिली थी, देश में तब भी वैचारिक मतभेद कायम थे और जब तक लोकतंत्र रहेगा, ये मतभेद बने रहेंगे। लेकिन उस वक्त विरोधियों को मात देने के लिए खुद इतना नीचे नहीं गिरा जाता था। अब तो नैतिकता, मर्यादा, शिष्टाचार के तमाम तकाजों को कैद कर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। तय है कि इस अमृत पर उन्हीं लोगों का हक होगा, जिन्होंने खुद को बाकियों से ऊंचा मान लिया है। समाज के आम लोग, निचले पायदान के लोग एक बार फिर अमृत की आस में कटोरा लिए ठगे जाएंगे या अमृत पाने के लिए ऊंची जमात में शामिल होने की कोशिश में दंडित किए जाएंगे।

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