ब्लॉग

देश में तिरंगा अभियान से उपजी विसंगतियों पर ध्यान दे मोदी सरकार

आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत भारत सरकार ने देश के 20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया है

आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत भारत सरकार ने देश के 20 करोड़ घरों पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस मकसद को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज संहिता में बदलाव किए गए हैं ताकि इतनी बड़ी तादाद में तिरंगा सबको उपलब्ध करवाया जा सके। पूरी सरकारी मशीनरी जब इस काम में लगी है तो लक्ष्य तो पूरा हो ही जाएगा। लेकिन अच्छा होता अगर इस आपाधापी में उपजी विसंगतियों पर भी सरकार का ध्यान जाता।

मसलन, सोशल मीडिया पर हाथरस के किसी स्कूल का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक अध्यापक छोटे-छोटे बच्चों से तिरंगे के लिए 15-15 रुपए लाने की बात कर रहा है। वे बच्चे जिनके मां-बाप पांच रुपए भी बड़ी मुश्किल से दे पाते होंगे, वे 15 रुपए कहां से और कैसे लेकर आएंगे- अध्यापक इस बात से बेपरवाह नज़र आता है और इससे भी कि सरकारी भाषा में कही जा रही बात को मासूम बच्चे कितना समझ पा रहे होंगे।

इसी तरह की एक ख़बर और है कि फरीदाबाद में एक राशन दुकान संचालक ने झंडा खरीदे बिना राशन न देने का एक संदेश व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजा है। उसने लिखा है कि उसकी दुकान से जुड़े सभी राशन कार्ड धारक 20 रुपए लेकर डिपो पर झंडा लेने पहुंचें। ऐसा न करने वालों को अगस्त महीने का गेहूं नहीं दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि जिले की लगभग 7 सौ राशन दुकानों को खाद्य आपूर्ति विभाग ने झंडा वितरण केंद्र बनाया गया है और हर दुकान को डेढ़-दो सौ झंडे अग्रिम भुगतान पर दिए गए हैं।

ख़बर यह भी है कि रेल कर्मियों के अगस्त के वेतन से 38 रुपए तिरंगे के वास्ते काट लिए जाएंगे। कई बैंक कर्मचारियों ने भी शिकायत की है कि उनकी तनख्वाह से 50-50 रुपए तिरंगे के नाम पर उनसे बिना पूछे काट लिए गए हैं। रेल कर्मियों ने तो इस कटौती पर मज़ेदार सवाल उठाया है। उनका कहना है कि जब भाजपा के दफ़्तर से तिरंगा 20 रुपए में बेचा जा रहा है, तो उनकी तनख्वाह से लगभग दोगुनी राशि क्यों वसूली जा रही है। रेल कर्मियों के संगठन ने इस वसूली पर ऐतराज़ जताया है।
माना कि 15, 20, 38 या 50 रुपए की रकम बहुत मामूली है, लेकिन वसूली का यह तरीका ठीक नहीं है। वसूली के मनमाने तरीकों से कुछ दिक्कतें भी पैदा हो सकती हैं। मान लीजिए कि कोई सरकारी या बैंक कर्मचारी इस कटौती के बाद राशन लेने जाए और वहां फिर उससे तिरंगा लेने पर ही राशन मिलने की बात कही जाए, तो वह क्या करेगा! सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले ग़रीब बच्चों के मां-बाप क्या करेंगे!

आख़िरी बात- सरकार को पूरी पारदर्शिता के साथ बताना चाहिए कि वेतन कटौती से जो राशि इकठ्ठा की जा रही है, वह कुल कितनी होगी और कहां खर्च की जाएगी। जब आयकर चुकाने वाले मुठ्ठी भर लोग कह सकते हैं कि उनके टैक्स का पैसा किसानों की कर्ज माफ़ी या लोगों को मुफ़्त चीज़ें बांटने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, तो सरकारी मुलाजिम भी तो जानें कि उनकी तनख्वाह का हिस्सा- जो ज़रा सा ही क्यों न हो, किस काम में लगने वाला है।

 

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button