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किसान महापंचायत :मोदी शाशन मेँ देश की आत्मा को पुनः जगाने वाली ये तश्वीरे !

पिछले करीब 7 वर्षों से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार जनविरोधी नीतियों और योजनाओं की पर्याय बन चुकी है

पिछले करीब 7 वर्षों से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार जनविरोधी नीतियों और योजनाओं की पर्याय बन चुकी है। प्रचंड बहुमत के कारण मिली शक्ति से उसमें अहंकार और हठधर्मिता का ऐसा मिश्रण बन गया है जो देश की जनता को तबाह कर रहा है। मोदी द्वारा उठाये जा रहे सनकपूर्ण कदमों से देश को बड़ा नुकसान हो रहा है। अपरिमित शक्ति से लैस मोदी सरकार नागरिकों को आर्थिक दृष्टि से सतत कमजोर कर रही है। ताकत के केन्द्रीकरण एवं पूंजीवादी सिद्धांतों में अगाध विश्वास रखने वाली भाजपा ने देश को एक कुचक्र में फंसा दिया है जिससे निकलने की जद्दोजहद देशवासी कर रहे हैं।

2016 में मोदी द्वारा लाए गए नोटबंदी कानून से देश की समस्याओं की शुरुआत हुई है। इस श्रृंखला की ताजा कड़ी है केन्द्र सरकार द्वारा पिछले साल लाए गए तीन कृषि कानून जिनके माध्यम से मोदी अपने कारपोरेट साथियों के हाथों देश को गिरवी रखने का षड्यंत्र रच चुके हैं। इन तीन कानूनों के माध्यम से मोदी मंडी व्यवस्था व न्यूनतम समर्थन मूल्य को समाप्त करने की योजना बना चुके हैं। कहने को तो ये कानून किसानों को उनकी फसलों की अधिक कीमत दिलाने और उनकी आय बढ़ाने की बात कहते हैं परन्तु अब यह कोई राज नहीं रह गया है कि इनसे देश का किसान कारोबारियों का गुलाम बन जायेगा।

किसानों के उत्पादों को औने-पौने भाव में खरीदकर खाद्यान्नों की जमाखोरी करने और बाद में मनचाही कीमतों में उपभोक्ताओं को बेचने की कुत्सित योजना इन तीन काले कानूनों में छिपी हुई है। वैसे तो मोदी अपने कार्यकाल में ज्यादातर जनविरोधी योजनाएं ही लाए हैं या जनहित के नाम पर गरीबों को लूटकर अपने मित्रों को अमीर बनाने के उपक्रम किये हैं, लेकिन उनके खिलाफ व्यापक विरोध नहीं हो पाए। हुए भी तो शाहीन बाग आदि जैसे जिन्हें दबा दिया गया; लेकिन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रारम्भ हुआ किसान आंदोलन लगातार व्यापक और मजबूत होता जा रहा है। इन कानूनों के खिलाफ 26 नवम्बर, 2020 से देश भर के किसान आंदोलनरत हैं। दिल्ली को उन्होंने घेर रखा है।

किसानों के साथ सरकार बातचीत का दिखावा कर रही है। वार्ता के 11 दौर हो चुके हैं पर सारे बेनतीजा निकले हैं। सरकार ने इन 9 महीनों में किसानों पर कई जुल्म ढाये हैं। इनमें लाठी चार्ज, ठंडे पानी की बौछारें, आंसू गैस, सड़कों पर गड्ढे खोदना व कीलें लगाना, झूठे मुकदमे दायर करना, आंदोलन को हिंसक बनाने या धार्मिक रंग देने के प्रयास आदि शामिल है।

फिर भी किसान आंदोलन जारी रखे हुए हैं। यह दुनिया का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला अहिंसक आंदोलन है जिसने प्रतिरोध की बेहतरीन मिसाल पेश की है। ऐसे समय में जब पूरा देश निरंकुश मोदी के नियंत्रण में जकड़ा जा रहा है, किसान ऐसी सरकार के सामने सीना तानकर खड़े हैं। लगभग विपक्षविहीन देश, पंगु संसद, सरकार के आगे झुकी न्यायपालिका, गैर जवाबदेह विधायिका, सरकारी आदेशों पर उठ-बैठ करती कार्यपालिका एवं पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया के बावजूद किसान अगर लाखों की संख्या में मुजफ्फरनगर में जुटते हैं जो दर्शाता है कि देश की आत्मा अभी मरी नहीं है। हमारी प्रतिरोध की तासीर जिंदा है। र

विवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आयोजित हुई किसान महापंचायत से सरकार को यह समझ लेना चाहिये कि वह बहुमत के आधार पर मनमानी नहीं कर सकती। यह गांधी का देश है जो जुल्म के खिलाफ बुरी से बुरी से हालत में भी खड़ा होना जानता है। शिक्षक दिवस पर किसानों ने देश को अपने अधिकारों के लिए लड़ना नये सिरे से सिखाया है जो वह पिछले 7 वर्षों से भूलता जा रहा है। किसान महापंचायत देश की आत्मा के फिर से जागने की तस्वीर है।

सरकार अपना अहंकार त्यागकर वह काले कानून तत्काल वापस ले। देशवासियों को चाहिये कि वे किसानों का साथ दें। किसान अगर हारे तो देश को फिर से गुलाम बनने में देर नहीं लगेगी, वह भी अपनी ही चुनी हुई सरकार की।

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