मोदीजी के गुजरात में शराबबंदी होते हुवे भी जहरीली शराब काड से 41की मौत और 114 हॉस्पिटल में ले रहे है ट्रीटमेंट

भारी बारिश और बाढ़ की वजह से हो रही तकलीफों को गुजरात के लोग झेल ही रहे थे कि वहां से एक और दुखदायी खबर सामने आई है
भारी बारिश और बाढ़ की वजह से हो रही तकलीफों को गुजरात के लोग झेल ही रहे थे कि वहां से एक और दुखदायी खबर सामने आई है। यहां के बोटाद जिले में जहरीली शराब पीने से कम से कम41 लोगों की मौत हो गई है,और 114 हॉस्पिटल में ले रहे है ट्रीटमेंट जबकि 50 और लोग गंभीर रूप से बीमार हैं, जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा है। बताया जा रहा है कि 40-40 रुपए की पोटली में शराब के नाम पर नशीला रासायनिक पदार्थ लोगों को बेचा गया। जांच से पता चला है कि मृतकों ने शराब के नाम पर जिस चीज का सेवन किया था, उसमें 98 प्रतिशत मिथाइल मिला था।
मिथाइल के व्यापार से जुड़ी ईमोस नाम की कंपनी के गोदाम से वहां के मैनेजर ने 60 हजार रुपए में 200 लीटर मिथाइल अपने एक रिश्तेदार को बेचा और उसने अपने कुछ साथियों के साथ इस मिथाइल को सीधा छोटी थैलियों में भरकर शराब के नाम पर बेच दिया। जिसे पीने के बाद लोगों की हालत खराब होती गई और वो अकाल मौत का शिकार बने। गौरतलब है कि कच्ची शराब को अधिक नशीला बनाने के लिए उनमें यूरिया और आक्सिटोसीन जैसे रसायन मिलाए जाते हैं और इनके मिश्रण से मिथाइल एल्कोहल बनता है, जो शरीर पर घातक असर करता है। लेकिन यहां तो शराब बनाने की जगह सीधे जानलेवा मिथाइल ही लोगों को बेच दी गई। गनीमत है कि इस गंभीर अपराध पर गुजरात पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की है। सभी आरोपी गिरफ्त में हैं। हालांकि जिनके प्राण असमय निकल गए, वो दुनिया में वापस नहीं लौट सकते। और ये भी नहीं कहा जा सकता कि इस तरह का गंभीर अपराध दोबारा नहीं होगा।
गुजरात से पहले भी देश के कई राज्यों में जहरीली शराब लोगों का जीवन लील चुकी है। बिहार, प.बंगाल, हरियाणा इन राज्यों में पिछले कुछ बरसों में जहरीली शराब से मौत की खबरें सामने आई हैं। हालांकि आरोपियों को पकड़ने के बाद भी कभी किसी अपराधी को गंभीर सजा मिली हो, इसके उदाहरण याद नहीं पड़ते। इसकी एक वजह ये हो सकती है कि कच्ची शराब या देसी दारू का सेवन करने वाले आमतौर पर गरीब, मजदूर तबके के लोग होते हैं। अमीरों के लिए नशे का इंतजाम ड्यूटी फ्री दुकानों से लेकर शराब दुकानों में मिलने वाली महंगी विदेशी शराबों से हो जाता है। अमीर तबके के लोग अमूमन विलासिता के लिए नशा करते हैं। जबकि गरीबों के लिए नशा उन्हें अपने जीवन के कष्टों की वास्तविकताओं से कुछ पल के लिए दूर रहने का साधन है। दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत, या नारकीय परिस्थितियों में गुजर बसर की तकलीफ को नशे से भुलाने की नाकाम कोशिश गरीब लोग करते हैं और कई बार ये कोशिश उनके लिए जानलेवा साबित होती है। गरीबों की तकलीफ, आदत और मजबूरी, इन सबसे वाकिफ लोग अपने मुनाफे के लिए इन्हें कच्ची शराब मुहैया कराते हैं। जिसमें शराब की गुणवत्ता पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि उनके ग्राहक गरीब लोग होते हैं। जिनके न अधिकारों का कोई महत्व माना जाता है, न जीवन का कोई मोल समझा जाता है। नतीजा ये होता है कि 40-50 रुपए के बदले वे अपने लिए मौत खरीद लेते हैं।
बोटाद का मामला अधिक गंभीर इसलिए है क्योंकि यह उस गुजरात राज्य का जिला है, जहां 1960 से ही शराबबंदी लागू कर दी गई थी। 2017 में गुजरात सरकार ने शराबबंदी से जुड़े कानून को और कठोर कर दिया था। इसके तहत अगर कोई गैरकानूनी तरीके से शराब की बिक्री करता है, तो उसे 10 साल कैद और 5 लाख रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है। जिस राज्य में पिछले 60 बरसों से शराबबंदी है, वहां जहरीली शराब से मौत गंभीर मुद्दा है और इसके लिए निश्चित ही राज्य सरकार जिम्मेदार है। इससे पहले गुजरात के बंदरगाह से करोड़ों रुपए की हेरोइन जब्त की गई थी, जो अवैध तरीके से विदेशों से लाकर देश में बेचने के मकसद से लाई गई थी। इस तस्करी पर भले ही सीधी जिम्मेदारी राज्य सरकार की न बने, लेकिन गुजरात के गांवों में अगर शराब बेची जा रही है, तो फिर उस पर सरकार को जवाब देना ही होगा कि आखिर उसका पुलिस प्रशासन इस अवैध काम पर नजर क्यों नहीं रख पाया। अभी कुछ लोगों की मौत हुई है तो मामला सबके सामने आया है। लेकिन अगर यह गंभीर हादसा नहीं हुआ होता, तो क्या अवैध तरीके से शराब बेचने का सिलसिला जारी नहीं रहता।
गांधीजी के आदर्शों पर चलते हुए शराबबंदी की वकालत की जाती है। बहुत से लोगों का ये मत है कि शराब पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि इससे कई परिवार तबाह होते हैं, खासकर महिलाओं के लिए शराबी पतियों के साथ जीवन बिताना कठिन होता है। यह तर्क अपनी जगह सही है, लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि किसी चीज पर सख्त पाबंदी लगा दी जाए तो फिर उस पाबंदी को तोड़ने के गैरकानूनी रास्ते अख्तियार किए जाते हैं और उसमें भी गरीब लोग ही पिसते हैं। बिहार में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब से मौत के कई प्रकरण सामने आ चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से भाजपा नेता उमा भारती मध्यप्रदेश में शराब दुकानों को बंद कराने की मुहिम छेड़ी हुई हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ के भाजपा विधायक और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी ने बयान दिया था कि सरकार को शराब की जगह गांजे और भांग को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि गांजे और भांग का सेवन करने वाले लोग हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम नहीं देते हैं। हालांकि इस तरह की मुहिम या बयानों से न नशे की बुराई समाज से मिट सकती है, न अपराध खत्म हो सकते हैं। बेहतर यही होगा कि नशे की समस्या को राजनीति से दूर रखते हुए उसके निराकरण के बारे में सोचा जाए। लोगों को शिक्षित और जागरुक करके ही इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। पूर्ण शराबबंदी एक आदर्श कल्पना है, जो व्यवहार में खरी नहीं उतरेगी, इस सच को स्वीकार करेंगे, तभी गरीबों की जान बचाने के उपाय निकलेंगे।