भ्रष्टाचार की दीमक पूरे देश में लग ही चुकी है ईमानदार लोगों पर मँडरा रहा खतरा

नदियों-पहाड़ों-जंगलों का गैरकानूनी तरीके से उत्खनन पर्यावरण के लिहाज से तो घातक है ही, यह अपराध अब देश की कानून व्यवस्था के लिए भी खतरनाक चुनौती बनता जा रहा है
नदियों-पहाड़ों-जंगलों का गैरकानूनी तरीके से उत्खनन पर्यावरण के लिहाज से तो घातक है ही, यह अपराध अब देश की कानून व्यवस्था के लिए भी खतरनाक चुनौती बनता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण हरियाणा से सामने आया है। गुरुग्राम से सटे नूह जिले के तावडू थाना क्षेत्र में डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई मंगलवार की दोपहर दो पुलिसकर्मी, एक ड्राइवर और एक गनमैन के साथ अवैध खनन की शिकायत पर छापा मारने गए थे। उन्हें अरावली पहाड़ी पर अवैध रूप से खनन किए जाने की सूचना मिली थी। डीएसपी ने पत्थरों से लदे हुए डंपर को रुकने के लिए कहा लेकिन ड्राइवर ने रफ्तार बढ़ा दी और उन्हें कुचल दिया। डीएसपी सुरेंद्र सिंह बिश्नोई की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना के बाद से इस इलाके में तनाव की स्थिति बनी हुई है।
गांव वाले डरे हुए हैं, क्योंकि उन्हें पुलिस और अपराधियों दोनों के बीच पिसने का खतरा है। अरावली की पहाड़ियों में अवैध उत्खनन कोई नया मामला नहीं है। लेकिन इस अवैध धंधे को रोकने की ईमानदार कोशिश एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी के लिए जानलेवा साबित हुई है। इस घटना पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि डीएसपी सुरेंद्र सिंह को शहीद को दर्जा दिया जाएगा। मृत डीएसपी के परिजनों को 1 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए हरियाणा पुलिस ने ट्वीट किया है कि दोषियों को सज़ा दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। सरकार और पुलिस के तल्ख तेवर स्वाभाविक बात है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर दोषियों तक हाथ किसके पहुंच पाएंगे। डीएसपी जैसी बड़ी रैंक के अधिकारी की हत्या से यह पता चलता है कि हरियाणा में बदमाशों को कानून या पुलिस का कतई कोई खौफ नहीं है। और ये खौफ क्यों नहीं है, इस बात की तह तक जाने की जरूरत है।
पुलिसकर्मियों पर अक्सर ये आरोप लगता है कि वे नेताओं-मंत्रियों की चाकरी और चापलूसी में लगे रहते हैं, जबकि उनकी जिम्मेदारी जनता के प्रति है। इस आरोप का दूसरा पहलू ये है कि राजनेता पुलिसकर्मियों पर अपने लिए काम करने का दबाव बनाते हैं। ऐसे अनेक प्रकरण देखे गए हैं जब किसी पुलिस अधिकारी ने राजनेता का गलत फरमान मानने से इन्कार कर दिया तो उन्हें तबादला या निलंबन सजा के तौर पर मिले।
राजनेताओं, व्यापारियों और अफसरों की दुरभिसंधि ईमानदार लोगों के लिए काम करना कठिन ही नहीं बना देती, बल्कि उनके लिए कई बार जानलेवा साबित होती है। यह महज संयोग नहीं है कि मंगलवार की दोपहर को हरियाणा में एक अधिकारी को कुचल कर मार दिया गया, और उसी रात झारखंड में एक महिला पुलिस अधिकारी की इसी तरह हत्या की गई। रांची में महिला सब इंस्पेक्टर संध्या टोपनो मंगलवार की रात को वाहन चेकिंग कर रहीं थीं कि इस दौरान उन्होंने एक पिक-अप वैन को रुकने के लिए कहा। लेकिन ड्राइवर ने रुकने की जगह टोपनो पर गाड़ी चढ़ा दी। इन दोनों घटनाओं में प्रत्यक्ष तौर पर अपराधी वाहन चालक दिखाई दे रहे हैं, लेकिन किसकी सरपरस्ती में इनके हौसले इतने बढ़ गए कि पुलिस अधिकारियों को कुचलने का दुस्साहस इन्होंने किया, इसकी पड़ताल भी जरूरी है।
रेत, पत्थर या अन्य प्राकृतिक संसाधनों का अवैध खनन एक गंभीर समस्या है और यह पूरे देश में व्याप्त है। देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य होगा जहां अवैध खनन माफिया कानून व्यवस्था को मुंह न चिढ़ाता हो। हर बार चुनाव में अवैध खनन पर रोक लगाने का मुद्दा भी राजनैतिक दलों की सूची में रहता है। लेकिन फिर सत्ता में बैठे लोग हों या विपक्ष के लोग, सभी के कारोबारी हित आपस में कहीं न कहीं जुड़े होते हैं और इस गठजोड़ में बलिदान ईमानदार लोगों को देना पड़ता है। पुलिस या जांच अधिकारियों की कुचल कर हत्या एक भयावह चलन बन चुका है।
मध्यप्रदेश के मुरैना में साल 2012 में चंबल नदी से अवैध तरीके से रेत भरकर धौलपुर की ओर ले जा रहे ट्रक को रोकने की कोशिश में लगे राजस्थान पुलिस के हवलदार और सिपाही को कुचल दिया गया। इसी साल होली के दिन आठ मार्च को आईपीएस नरेन्द्र कुमार की कुचल कर नृशंस हत्या की गई, क्योंकि उन्होंने भी अवैध खनन रोकने की कोशिश की थी। इसके बाद 2015 में चंबल के नूराबाद इलाके में अवैध रूप से रेत ले जा रहे एक डंपर को जब सिपाही धर्मेन्द्र चौहान ने रोकने का प्रयास किया तो ड्राइवर ने उसे कुचल दिया। तीन साल बाद 2018 में मुरैना में ही रेत की अवैध ढुलाई में लगी माफिया की ट्रैक्टर ट्रॉली से रेंजर सूबेदार सिंह कुशवाह को कुचल दिया गया। और पिछले साल तो झारखंड के धनबाद में रंजय हत्याकांड की सुनवाई कर रहे जज उत्तम आनंद को उस वक्त ऑटो से कुचल दिया गया, जब वे सुबह की सैर पर निकले थे। इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें साफ नजर आ रहा है कि ऑटो चालक जानबूझ कर जज को टक्कर मार रहा है।
साल दर साल इस तरह अधिकारियों या इंसाफ की आवाज़ उठाने वाले लोगों की हत्याएं किसी एक राज्य सरकार की नहीं, समूचे देश की समस्या है। ऐसी घटनाओं पर दुख व्यक्त करना पर्याप्त नहीं है, न ही मुआवजे की राशि कुचली जा रही ईमानदारी की भरपाई कर सकती है। अगर देश को वाकई मजबूत बनाना है तो सबसे पहले ईमानदार लोगों के आसपास सुरक्षा का मजबूत घेरा बनाना जरूरी है, अन्यथा भ्रष्टाचार की दीमक तो पूरे देश में लग ही चुकी है।