दिल्ली

केरल हाईकोर्ट में 20 सालों से लंबित याचिकाओं पर बिफरे जस्टिस, बोले- सुधरे नहीं तो लोगों का विश्वास हो जाएगा खत्म

केरल हाईकोर्ट के जस्टिस का कहना था कि वकीलों में भी इस बात को लेकर असंतोष है कि अर्जेंट हियरिंग का मेमो देने के बाद भी केसों की सुनवाई नहीं हो रही।

नई दिल्ली

केरल हाईकोर्ट (Kerala High court) में एक सुनवाई के दौरान सामने आया कि कई याचिकाएं (Plea) ऐसी भी हैं जो बीते 20 सालों से रजिस्ट्री (Registry) के पास पेंडिंग (Pending) हैं। हाईकोर्ट के जस्टिस (Justice of High court) ने रजिस्ट्री को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सुधार नहीं किया तो लोगों का विश्वास न्यायपालिका (Judiciary) से उठ जाएगा। जस्टिस कुन्हीकृष्णन (Justice Kunhikrishnan) का कहना था कि ये याचिकाएं रजिस्ट्री के पास सालों से पड़ी हैं।

चीफ जस्टिस (Chief Justice) के संज्ञान में लाएं लंबित याचिकाएं (Plea)

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) में पेंडिंग मामलों (Pending Cases) के निर्णय में देरी होने पर टिप्पणी करते हुए केरल हाईकोर्ट (Kerala HC) ने हाल ही में कहा कि न्यायपालिका द्वारा इस मामले पर आत्मनिरीक्षण भी जरूरी है। कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General) और रजिस्ट्रार न्यायपालिका ( Registrar Judiciary) को निर्देश दिया कि वे कई अदालतों में लंबित पुरानी रिट याचिकाओं (Rit Plea) को मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के संज्ञान में लाएं और उनके निर्देशों के अनुसार उचित कदम उठाएं।

वकीलों (Lawyers) में भी है असंतोष

हाईकोर्ट (High Court) ने कहा कि ये रजिस्ट्री (Registry) का काम है कि चीफ जस्टिस (Chief Justice) से अनुमति लेकर उन्हें संबंधित कोर्ट (Court) के संज्ञान में लाए। उनका कहना था कि वकीलों (Lawyers) में भी इस बात को लेकर असंतोष है कि अर्जेंट हियरिंग का मेमो (Memo of Urgent Hearing) देने के बाद भी केसों की सुनवाई नहीं हो रही।

सहकारी बैंक कर्मचारी (Co-Operative Bank Employ) का दिया उदाहरण

जस्टिस कुन्हीकृष्णन (Justice Kunhikrishnan) ने सहकारी बैंक कर्मचारी (co-operative bank employee) के मामले से निपटने के दौरान यह टिप्पणी की, जो पिछले 25 सालों से अपनी बेगुनाही दिखाने और अपने योग्य दावों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय संस्थानों के खिलाफ लड़ रहे है। “जब कर्मचारी ने W.P.(C)No.23311/2010 दाखिल किया, तब उसकी उम्र 61 साल थी। संभवत: वह अब तक 70 साल का हो चुका है। यह उस कर्मचारी का दुर्भाग्य है जो अपने जीवन की आजीविका के एक बड़े हिस्से के लिए मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर है।”

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