गुजरात

गिरफ्तार हुए पूर्व डीजीपी, गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ दी थी कई रिपोर्ट्स, जानिए आरबी श्रीकुमार के बारे में

Gujarat Riots 2002: केरल के तिरुवनंतपुरम से आने वाले आरबी श्रीकुमार 1971 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। अप्रैल 2002 में गुजरात सरकार की ओर से उन्हें एडिशनल डीजीपी (इंटेलिजेंस) का प्रभार सौंपा गया था।

अहमदाबाद

आरबी श्रीकुमार गुजरात पुलिस के एक आईपीएस पुलिस अधिकारी, जिन्होंने 2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार की शांति के दावों को चुनौती दी। इसके साथ ही दंगों में सरकारी एजेंसियों और दंगाइयों के बीच कथित मिलीभगत की बात की, जिसके कारण उन्हें पद से हटाया और सेवा के दौरान प्रमोशन से भी वंचित कर दिया गया।

अहमदाबाद डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच ने शनिवार को गुजरात पुलिस के 75 वर्षीय पूर्व महानिदेशक (DGP) आरबी श्रीकुमार को जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गांधीनगर में स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया। यह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के ठीक एक दिन हुआ, जिसमें गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ डाली गई एक याचिका में उनकी भूमिका को लेकर कोर्ट ने सवाल उठाए थे। कोर्ट की ओर से यह टिप्पणी तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित की गई एसआईटी की ओर से दी गई क्लीनचिट के आधार पर की है।

केरल के तिरुवनंतपुरम से आने वाले श्रीकुमार 1971 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। अप्रैल 2002 में मोदी की ओर से उन्हें एडिशनल डीजीपी (इंटेलिजेंस) का प्रभार सौंपा गया था, लेकिन उस समय तक 27 फरवरी को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन जलने के बाद गुजरात संप्रदायिक दंगों में गिर चुका था। श्रीकुमार का राज्य सरकार के साथ पहली बार टकराव तब हुआ, जब उन्होंने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया था कि दंगों से गुजरात की 182 विधानसभाओं में से 154 प्रभावित हुई हैं और इसके कारण राज्य में करीब 1 लाख लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उस समय श्री कुमार के इस दावे को राज्य सरकार ने खंडन किया और कहा कि विधानसभा चुनाव कराने के लिए माहौल काफी शांतिपूर्ण है।

श्रीकुमार ने नेशनल कमीशन ऑफ माइनॉरिटी को सितंबर 2002 में एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमें एक यात्रा के दौरान मोदी की ओर से दिए सांप्रदायिक भाषण की ओर इशारा किया गया था। इस रिपोर्ट को भेजने के तुरंत बाद श्री कुमार का सीआईडी (इंटेलिजेंस) के पद से ट्रांसफर कर उन्हें एडीजीपी (पुलिस रिफॉर्म) के पद पर तैनात कर दिया गया और रिटायरमेंट तक वे इसी पद पर बने रहे।

सेवा में रहते हुए श्रीकुमार ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जीटी नानावती और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अक्षय मेहता आयोग के समक्ष अपने नौ हलफनामों में से चार दाखिल किए, जिसे गोधरा कांड की जांच के लिए गुजरात सरकार ने गठित की थी। हलफनामों में उन्होंने “दंगाइयों के साथ सरकारी एजेंसियों की कथित मिलीभगत” का पर्दाफाश करने का दावा किया था।

लेकिन नानावती-मेहता आयोग ने श्रीकुमार और साथी आईपीएस अधिकारियों राहुल शर्मा और संजीव भट्ट द्वारा सबूतों को खारिज करने का फैसला किया। उनकी ओर से पेश किए गए सबूतों को आधारहीन, झूठा या अविश्वसनीय करार दिया गया। शर्मा ने पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अब गुजरात हाई कोर्ट में वकालत करते हैं जबकि भट्ट को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और अब वह 1996 से नशीले पदार्थों के मामले में जेल में हैं।

श्रीकुमार का करियर: श्रीकुमार के कैरियर की शुरूआत गुजरात के मेहसाणा जिले से हुई थी, जहां उन्हें एसपी का पद पर तैनात किया गया था। 1979 में सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (CISF) के साथ जुड़े और 1980-84 के बीच सीआईएसएफ के कमांडेंट के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्हें गुजरात के खेड़ा और कुछ जिलों का एसपी बनाया गया। इसके बाद उन्हें गुजरात के इंटेलिजेंस ब्यूरो में 1987 से 99 तक अलग-अलग पदों पर कार्य किया। 2000 में केशुभाई पटेल के कार्यकाल में गुजरात वापस लौट आए और उन्हें एडिशनल डीजीपी (आर्म्ड यूनिट) बनाया गया।

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