सुप्रीम कोर्ट ने देश की अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे पर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लंबित मामलों को निपटाने, देरी के तरीकों पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है।
, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभर की अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे पर सक्रियता से काम करने की जरूरत है। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट (सेवानिवृत्त) और अरविंद कुमार की पीठ ने लंबित मामलों के तेज निपटारे के संबंध में कई बड़े निर्देश जारी किए हैं। अदालत का आदेश शुक्रवार को सामने आया। कोर्ट ने कहा, सभी स्तरों पर लंबित मामलों को निपटाने के लिए सक्रिय और तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। अदालत ने कहा कि त्वरित न्याय चाहने वाले वादियों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी हितधारकों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
निचली अदालतों के लिए अहम निर्देश
शीर्ष अदालत ने कहा, मामलों को लंबित रखने और कार्यवाही में देरी के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों में कटौती करने की तत्काल जरूरत है। मामलों के तेज निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कई अहम निर्देश जारी किए। कोर्ट ने जिला और तालुका स्तर की सभी अदालतों को समन के निष्पादन, लिखित बयान दाखिल करने, दलीलों को पूरा करने, रिकॉर्डिंग जैसे मामलों पर निर्देश दिए।
समितियों की स्थापना का भी निर्देश
स्वीकारोक्ति और खंडन, मुद्दों का निर्धारण और मामलों के त्वरित निपटान के लिए सुनवाई तय करने पर भी शीर्ष अदालत ने कई अहम बातें कहीं। सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल से अधिक समय से लंबित पुराने मामलों की लगातार निगरानी के लिए संबंधित राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा समितियों की स्थापना का भी निर्देश दिया।
कार्यवाही में देरी के तरीकों पर अंकुश
अदालत ने कहा कि न्याय और त्वरित न्याय की उम्मीद में लाखों याचिकाकर्ता मामले दायर करते हैं। ऐसे में सभी हितधारकों पर यह सुनिश्चित करना बड़ी जिम्मेदारी है कि न्याय में देरी के कारण अदालत की प्रणाली में लोगों का विश्वास कम न हो। कोर्ट ने कहा, “त्वरित न्याय चाहने वाली मुकदमेबाज जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कमर कसी जा सके, ऐसी तैयारियों की जरूरत है। कार्यवाही में देरी करने के लिए अपनाए गए तरीकों पर अंकुश लगाना भी जरूरी है। अदालत ने कहा कि देरी करना, मुकदमे में शामिल जनता के केवल कुछ वर्ग के लिए उपयुक्त हो सकते हैं।
देश की आर्थिक वृद्धि भी “मजबूत न्याय वितरण प्रणाली पर निर्भर
कोर्ट ने कहा, यह ध्यान रखना जरूरी है कि भारत में लगभग छह प्रतिशत आबादी मुकदमेबाजी से प्रभावित है, ऐसे परिदृश्य में अदालतें कानून के शासन से शासित देश की जनता के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। पीठ ने अपने विस्तृत आदेश में कहा, प्रभावी न्याय और इसे पाने की प्रणाली के कारण समाज में शांति और नागरिकों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध बनते हैं। कोर्ट ने कहा, किसी देश की आर्थिक वृद्धि भी “मजबूत न्याय वितरण प्रणाली पर निर्भर करती है, जो हमारे देश में है।”
समन का निष्पादन कराने की जिम्मेदारी तय की
शीर्ष अदालत ने जिला और तालुका स्तर पर सभी अदालतों को नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश वी नियम (2) के तहत निर्धारित समयबद्ध तरीके से और समन का उचित निष्पादन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। अदालत के आदेश के मुताबिक समन मामलों की निगरानी प्रमुख जिला न्यायाधीशों द्वारा की जाएगी। आंकड़ों को एकत्रित करने के बाद वे इसे विचार और निगरानी के लिए उच्च न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष रखने के लिए अग्रेषित करेंगे।
लिखित बयान 30 दिनों के भीतर हो, समय बढ़ाने का कारण बताना होगा
“जिला और तालुका स्तर पर सभी अदालतें यह सुनिश्चित करेंगी कि लिखित बयान आदेश VIII नियम 1 के तहत निर्धारित सीमा के भीतर और अधिमानतः 30 दिनों के भीतर दायर किया जाए। समय सीमा 30 दिनों से अधिक बढ़ाने की सूरत में लिखित रूप में कारण बताना होगा। सीपीसी के आदेश VIII के उप-नियम (1) के प्रावधान के तहत इसका उल्लेख है।
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