हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें:सुप्रीम कोर्ट

पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत; हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें
नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पुलिस अधिकारियों की मानसिकता में लचीलापन लाने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी से निष्पक्ष रूप से जांच करने की उम्मीद की जाती है और आरोपी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के मामले को हत्या का मामला ”बनाने में अति उत्साही” नहीं होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सजा की भूमिका और गंभीरता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत गैर इरादतन हत्या और हत्या के तहत अपराधों के लिए काफी भिन्न है क्योंकि पहले के मामले में अपराध करने का इरादा गायब है।
शीर्ष अदालत द्वारा जांच अधिकारियों की भूमिका और आपराधिक मामलों से संबंधित जांच से संबंधित टिप्पणियां, एक हत्या के मामले में कई आरोपी व्यक्तियों को बरी करते हुए एक फैसले में की गई हैं। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने एक फैसले में कहा, ”यह उसका (जांच अधिकारी) प्राथमिक कर्तव्य है कि वह संतुष्ट हो कि कोई मामला गैर इरादतन हत्या के अंतर्गत आएगा कि हत्या की श्रेणी में। जब पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हों तो उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए मामला तैयार करने में अति उत्साही नहीं होना चाहिए।”
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने 42 पन्नों के फैसले में कहा कि जांच अधिकारी की मानसिकता में लचीलापन लाने की जरूरत है क्योंकि ऐसा पुलिसकर्मी अदालत का एक अधिकारी भी होता है और उसका कर्तव्य सच्चाई का पता लगाना और अदालत को सही निष्कर्ष पर पहुंचाने में मदद करना है। पीठ ने कहा कि जब भी कोई मौत होती है तो एक पुलिस अधिकारी से सभी पहलुओं को कवर करने की अपेक्षा की जाती है और इस प्रक्रिया में, हमेशा यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि क्या अपराध आईपीसी की धारा 300 या धारा 299 आईपीसी के तहत आएगा।