सुप्रीम कोर्टकेअहम फ़ैसले से देश की जनता को चखने को मिला सही आजादी का अमृत !

11 मई का दिन अब तक पोखरण में परमाणु विस्फोट के लिए जाना जाता रहा है
11 मई का दिन अब तक पोखरण में परमाणु विस्फोट के लिए जाना जाता रहा है। क्योंकि 1998 में इस दिन देश में दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया गया और दुनिया के सामने भारत ने अपनी मजबूती को प्रदर्शित किया। लेकिन अब एक बार फिर 11 मई का दिन यादगार बन गया है, क्योंकि इस दिन जनता की मजबूती के लिए एक अहम फैसला सुप्रीम कोर्ट से आया है। देशद्रोह या राजद्रोह को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 124ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजद्रोह कानून पर फिलहाल रोक लगा दी है।
शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि पुनर्विचार तक राजद्रोह की धारा 124ए के तहत कोई केस दर्ज नहीं किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जब तक राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार नहीं हो जाता, राज्य और केंद्र सरकारें राजद्रोह कानून के तहत मुकदमा दर्ज नहीं करेंगी। भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य आईपीसी की धारा 124 ए के तहत नए केस दर्ज करने से परहेज करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिनके खिलाफ राजद्रोह के मामले चल रहे हैं और वे जेल में बंद हैं, वे जमानत के लिए अदालत जा सकते हैं।
गौरतलब है कि देश में एक अरसे से राजद्रोह कानून को खारिज करने की मांग की जाती रही है। इस कानून का विरोध करने वालों का तर्क है कि जब ब्रिटिश राज ही नहीं है, उसका काला कानून क्यों बरकरार है। गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन में ही साल 1870 में ये कानून बनाया गया था। तब इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर किया जाता था। कई लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई थी। देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर राजद्रोह लगाया गया था, वो ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों और बाल विवाह के खिलाफ बनाए गए कानून का विरोध कर रहे थे। इसके बाद लोकमान्य तिलक से लेकर महात्मा गांधी तक कई स्वाधीनता सेनानियों को राजद्रोह के आरोपों का सामना करना पड़ा। अब देश आजाद है और आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन इस आजादी में राजद्रोह कानून जैसे दाग भी हैं, जो लोकतांत्रिक आजादी में बाधा बनते हैं।
मौजूदा सरकार अपनी आलोचना और विरोध को बर्दाश्त नहीं करती, ये आरोप विपक्ष बार-बार लगाता है। विपक्ष ये भी कहता आया है कि विरोध को कुचलने के लिए राजद्रोह कानून का बेजा इस्तेमाल सरकार करती रही है। मगर सरकार ने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया। वैसे आंकड़े बताते हैं कि 2014-17 के बीच चार साल में राजद्रोह के कुल 163 केस दर्ज किए थे, वहीं अगले तीन साल यानी 2018-2020 तक ये बढ़कर 236 पहुंच गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2015 से 2020 तक राजद्रोह के तहत कुल 356 केस दर्ज हुए और 548 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इसमें 12 लोगों को सजा हुई। इसका मतलब ये है कि सत्ता के विरोधियों को कुचलने के लिए राजद्रोह कानून का डर तो दिखाया गया, लेकिन उसे अदालत में साबित नहीं किया गया। यही कारण है कि इसमें कम लोगों को सजा हुई।
आपको बता दें कि 124 ए के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर या इशारों से या फिर चिह्नों के जरिए या किसी और तरीके से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने की कोशिश करता है या असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वो राजद्रोह का आरोपी है। बेशक देश का माहौल खराब करने वाले ऐसे लोग अब भी मौजूद हैं और उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
लेकिन पिछले बरसों में ये देखा गया है कि असंतोष भड़काने या घृणा फैलाने की श्रेणी में सरकार की आलोचना, उसकी गलत नीतियों और फैसलों का विरोध भी अलिखित तौर पर जोड़ लिया गया और फिर मनमाने तरीके से समाज की कई जानी-मानी हस्तियों पर राजद्रोह का इस्तेमाल हुआ। इस कानून की जरूरत पर पिछले साल मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण ने भी सवाल उठाए थे कि ये अंग्रेजों का बनाया कानून है, जिसे स्वतंत्रता की लड़ाई को दबाने के लिए लाया गया था। तब अटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि इस कानून को निरस्त करने की बजाय गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए, ताकि इसका कानूनी मकसद पूरा हो सके। अब इसकी वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई, हालांकि केंद्र सरकार इस कानून पर पुनर्विचार की बात कर रही है, लेकिन अदालत के निर्देश के मुताबिक अब इसमें नए मुकदमे दर्ज नहीं होंगे। लोकतंत्र के लिए यही बड़ी जीत है कि उसके विरोध के अधिकार को सुरक्षित रखा गया है।
राजद्रोह क़ानून को निलंबित करने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है। कांग्रेस ने कहा है कि शीर्ष अदालत के ताज़ा फ़ैसले का साफ़ संदेश है कि बोलने की आज़ादी का गला नहीं घोंटने दिया जाएगा। कांग्रेस ने भाजपा का जिक्र नहीं किया, लेकिन उसका इशारा समझा जा सकता है।
बहरहाल, भाजपा को भी अब वक्त का इशारा समझना चाहिए और सत्ता का इस्तेमाल लोकतंत्र की मजबूती के लिए करना चाहिए। आजादी का सही अमृत जनता तभी चख पाएगी।