दिल्ली

हाथरस कांड के वक्‍त पकड़े गए केरल के पत्रकार को दो साल बाद बेल- सुप्रीम कोर्ट में जज ने उड़ाईं यूपी सरकार की दलीलों की धज्‍ज‍ियां

नई दिल्ली

Hathras Case: कोर्ट ने कप्पन को अगले 6 सप्ताह तक दिल्ली में ही रहने के लिए कहा है। इसके बाद उसे केरल जाने की इजाजत दी है। इस दौरान कप्पन हर सप्ताह स्थानीय पुलिस स्टेशन और अन्य शर्तों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को जमानत देते हुएउत्तर प्रदेश सरकार की दलीलों को पूरी तरह से नकार दिया है। अब से दो साल पहले यूपी के हाथरस कांड में धार्मिक हिंसा का षड्यंत्र रचने के आरोप में 6 अक्टूबर 2020 को यूपी पुलिस ने कप्पन को गिरफ्तार किया था। जमानत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को अगले 6 सप्ताह तक दिल्ली में ही रहने के लिए कहा है। इसके बाद उन्हें केरल जाने की इजाजत दी है। इस दौरान कप्पन हर सप्ताह स्थानीय पुलिस स्टेशन और अन्य शर्तों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे।

चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ कप्पन की दायर की गई अपील को स्वीकार करते हुए उन्हें जमानत दी। साल 2020 में हाथरस में एक दलित नाबालिग लड़की की सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या हो गई थी। इस घटना के बाद कथित तौर पर दंगा भड़काने की कोशिश करने के लिए कप्पन को यूएपीए की धारा 17/18, धारा 153 ए / 295 ए आईपीसी, 65/72 आईटी अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए हिरासत में रखा गया था।

जानिए सिद्दीकी कप्पन के खिलाफ क्या हैं आरोप

कोर्ट में मामले की सुनवाई करते हुए शुरुआत में सीजेआई ललित की अगुवाई वाली पीठ ने पूछा कि वास्तव में कप्पन के खिलाफ क्या पाया गया था। उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कप्पन के खिलाफ मिली सामग्री को संकलित करते हुए कहा, “कप्पन सितंबर 2020 में पीएफआई की बैठक में शामिल थे। इस बैठक में कहा गया कि फंडिंग रुक गई थी। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि वे देश के संवेदनशील इलाकों में जाएंगे और दंगे भड़काएंगे। 5 अक्टूबर को उन्होंने हाथरस में दंगा भड़काने के लिए जाने का फैसला किया था।”

कप्पन को दंगा भड़काने के लिए पैसे मिले थेः जेठमलानी

जेठमलानी ने आगे बताया, “दंगा भड़काने के लिए कप्पन को 45,000 रुपये भी दिए गए थे। कप्पन ने एक मान्यता प्राप्त अखबार का पत्रकार होने क दावा किया था। जब हमने कप्पन के बारे में जांच की तो हमने पाया कप्पन को पीएफआई के आधिकारिक संगठन से मान्यता प्राप्त थी। पीएफआई को एक आतंकवादी समूह के रूप में नोटिफाइड किया जाना है,झारखंड ने पीएफआई को एक आतंकी समूह के रूप में नोटीफाई कर दिया है। कप्पन दंगे भड़काने के लिए वहां गया था। यह कुछ ऐसा ही है जैसा 1990 में बॉम्बे में जो हुआ था।”

CJI ललित ने पूछा कोई विस्फोटक मिला क्या?

सीजेआई ललित ने आगे पूछताछ की कि कप्पन के पास क्या पाया गया जब उन्हें या उनके साथ के लोगों को हिरासत में लिया गया था। इसके जवाब में सीनियर एडवोकेट जेठमलानी ने कहा कि कप्पन के पास से आईडी कार्ड और कुछ साहित्य की किताबें मिली हैं। चीफ जस्टिस ने पूछा,”एक है आईडी कार्ड, और कुछ साहित्य, कोई विस्फोटक मिला? आपके अनुसार साहित्य उसकी हिरासत में मिला था?”

इस पर जेठमलानी ने नकारात्मक जवाब दिया और कहा कि कोई विस्फोटक नहीं मिला और सीनियर एडवोकेट सिब्बल ने कहा कि साहित्य कार में मिला था। इधर CJI ने नोट किया- सिब्बल ने आगे कहा, “सबसे अच्छा आप कह सकते हैं कि यह आदमी एक कार में यात्रा कर रहा था और उसे तीन अन्य लोगों के साथ पकड़ा गया था, कार में कुछ साहित्य था अन्य तीन पीएफआई से जुड़े हुए हैं … उन पर किस अपराध का आरोप है … 153ए?”

सीनियर एडवोकेट जेठमलानी ने बताया किया कि यह 124ए को लागू करने के लिए भी एक उपयुक्त मामला था क्योंकि आरोपी व्यक्ति एक नाबालिग लड़की के बलात्कार का उपयोग करके असंतोष पैदा कर रहे थे। सीजेआई ललित ने पूछा कि क्या मुकदमे के जल्द खत्म होने की कोई संभावना है। इस पर जेठमलानी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि राज्य मुकदमे में तेजी लाने का प्रयास कर रहा है।

कप्पन के साथ मिला साहित्य: क्या यह भड़काऊ था?

पीठ ने पूछा कि क्या आरोपी ने कार में मिले साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ किया है। इस पर जेठमलानी ने कहा कि राज्य के पास इसे साबित करने के लिए सह-आरोपियों के बयान हैं। हालांकि, CJI ने कहा कि सह-आरोपी के बयानों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। जब जेठमलानी ने कहा कि वे एक सरकारी गवाह लाने की कोशिश कर रहे हैं, तो सीजेआई ललित ने टिप्पणी की कि यदि किसी को सरकारी गवाह बनाने का प्रयास किया जा रहा है तो इसका मतलब है कि मामला सुनवाई के लिए तैयार नहीं है।

पीठ ने तब इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या सीनियर एडवोकेट के बाद पाया गया साहित्य भड़काऊ प्रकृति का था। जेठमलानी ने इसे “दंगों के लिए एक टूलकिट” के रूप में संदर्भित किया। इस मौके पर सीनियर एडवोकेट सिब्बल ने हस्तक्षेप किया और कहा कि साहित्य “हाथरस गर्ल के लिए न्याय” के लिए था। पीठ ने राज्य से पूछा कि साहित्य में कौन सी सामग्री संभावित रूप से खतरनाक मानी जाती है।

जेठमलानी ने कहा,”इससे इस बात का संकेत मिलता है कि वे हाथरस जा रहे थे। इस तरह का साहित्य वे दलित समुदाय के बीच बांटने जा रहे थे…” उन्होंने साहित्य की सामग्री को देखा, तो इसमें चर्चा की गई थी कि पुलिस ने पीड़ित के परिवार को बताए बिना शव का अंतिम संस्कार कैसे किया। उन्होंने कहा, “तो भावनाओं को उभारा जाता है। यह एक प्रचार है जो दलित खुद नहीं कर रहे हैं। पीएफआई कर रहा है। ईमेल, सोशल मीडिया कैंपेन कैसे भेजें इस पर इन सब के निर्देश हैं।”

हालांकि, पीठ इन तर्कों से संतुष्ट नहीं थी और इसे भी नोट किया

सीजेआई ललित ने पूछा, “हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। वह यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि पीड़ित को न्याय की जरूरत है और एक आम आवाज उठानी है। क्या यह कानून की नजर में अपराध है?” जस्टिस भट्ट ने निर्भया मामले के दौरान हुए विरोध का जिक्र करते हुए पूछा,”इसी तरह के विरोध 2012 में इंडिया गेट पर हुए थे, जिसके कारण कानून में बदलाव हुआ था। अब तक आपने कुछ भी भड़काऊ नहीं दिखाया है।”

CJI ललित ने पूछा, “क्या कोई दस्तावेज है जिससे साबित होता हो वो दंगों में संलिप्त हैं?”

सीनियर एडवोकेट सिब्बल ने बताया कि कुछ दस्तावेज भारत से संबंधित भी नहीं थे और पूरा मामला अभियोजन का नहीं बल्कि उत्पीड़न का था। इधर जेठमलानी ने अदालत का ध्यान एक टूलकिट की ओर दिलाया इस टूलकिट में दंगों के दौरान सुरक्षा के निर्देश दिए गए थे, जैसे कि क्या पहनना है और क्या नहीं, आंसू गैस से कैसे निपटना है और यदि आप काले लोगों को दौड़ते हुए देखते हैं तो उनके साथ दौड़ें। हालांकि, सीनियर एडवोटकेट सिब्बल ने यह कहते हुए तुरंत बीच में रोक दिया कि टूलकिट संयुक्त राज्य अमेरिका के “ब्लैक लाइव्स मैटर” विरोध से था।

कप्पन को सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत

दलीलों के बाद सीजेआई ललित ने कहा कि पीठ सिद्दीकी कप्पन को जमानत दे रही है। उन्होंने इस तरह से आदेश सुनाया, अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देती है। अपीलकर्ता को 6 अक्टूबर 2020 को हिरासत में लिया गया था और तब से धारा 17/18 यूएपीए, आईपीसी की धारा- 124ए, 153ए, 295ए 65/72 आईटी अधिनियम के संबंध में हिरासत में है। ऐसा लगताा है कि 2 अप्रैल 2021 को चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है लेकिन इस मामले पर विचार नहीं किया गया है कि आरोप तय करने की आवश्यकता है या नहीं।

आदेश में आगे कहा गया, जमानत के लिए दी गई अर्जी को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है तत्काल अपील को प्राथमिकता दी गई है। आवेदन को उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया है तत्काल अपील को प्राथमिकता दी गई है। हमने अपीलकर्ता के लिए कपिल सिब्बल और राज्य के लिए महेश जेठमलानी को सुना। इसके मुताबिक, अपीलकर्ता द्वारा की गई हिरासत की अवधि और मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने ये निर्देश दिये

  1. अपीलकर्ता को 3 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में ले जाया जाएगा और ट्रायल कोर्ट द्वारा उचित समझी जाने वाली शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाएगा।
  2. जमानत की शर्त यह होगी कि अपीलकर्ता दिल्ली में जंगपुरा के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे।
  3. अपीलकर्ता ट्रायल कोर्ट की स्पष्ट अनुमति के बिना दिल्ली के अधिकार क्षेत्र को नहीं छोड़ेंगे।
  4. अपीलकर्ता प्रत्येक सोमवार को स्थानीय पुलिस थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे। यह शर्त पहले 6 सप्ताह के लिए लागू होगी। 6 सप्ताह के बाद, अपीलकर्ता केरल जा सकते हैं, लेकिन स्थानीय पुलिस स्टेशन को उसी तरह से रिपोर्ट करेंगे, जो हर सोमवार को होता है।
  5. अपीलकर्ता या तो व्यक्तिगत रूप से या वकील के माध्यम से प्रत्येक दिन ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होंगे।
  6. अपीलकर्ता को अपना पासपोर्ट जांच तंत्र के पास जमा करवाना होगा। अपीलकर्ता स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगे और विवाद से जुड़े किसी भी व्यक्ति के संपर्क में नहीं आएंगे।

अदालत ने यह भी नोट किया

“वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल बताते हैं कि पीएमएलए के तहत भी अपीलकर्ता के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी गई है, जिसके संबंध में अपीलकर्ता को जमानत के लिए आवेदन करने के लिए कार्यवाही में भाग लेने की आवश्यकता हो सकती है। ऊपर बताई गई शर्तों में उस हद तक ढील दी जाएगी, जिस हद तक अपीलकर्ता को आवश्यक है जमानत की राहत का लाभ उठाएं।”

ये था पूरा मामला

कप्पन लगभग दो साल जेल में बिता चुके हैं, उनको अन्य आरोपियों के साथ अक्टूबर 2020 में यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था, जब वे हाथरस बलात्कार-हत्या अपराध की रिपोर्ट करने के लिए जा रहे थे। शुरू में उन्हें शांति भंग करने की आशंका के तहत गिरफ्तार किया गया था। बाद में कप्पन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह और उनके सह-यात्री हाथरस सामूहिक बलात्कार-हत्या के मद्देनजर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और सामाजिक सद्भाव को बाधित करने की कोशिश कर रहे थे।

कप्पन को हाथरस में कोई काम नहीं था – हाई कोर्ट

उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक स्थानीय अदालत द्वारा पिछले साल जुलाई में उनकी जमानत याचिका खारिज करने के बाद कप्पन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। कप्पन को जमानत देने से इनकार करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि उनके पास हाथरस में कोई काम नहीं था।

कप्पन के सह आरोपी को मिल गई थी जमानत

23 अगस्त को कप्पन के सह-आरोपी कैब चालक मोहम्मद आलम को उच्च न्यायालय ने जमानत पर रिहा कर दिया था। जमानत आदेश में यह देखा गया कि कप्पन के कब्जे से अपमानजनक सामग्री बरामद की गई थी, लेकिन आलम से ऐसी कोई सामग्री बरामद नहीं हुई थी। एडवोकेट पल्लवी प्रताप के द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति याचिका में कप्पन ने बताया था कि उनकी यात्रा का इरादा हाथरस बलात्कार / हत्या के कुख्यात मामले पर रिपोर्टिंग के अपने पेशेवर कर्तव्य की जिम्मेदारी निभाना था।

 

 

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