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देश में चारो तरफ एक धक्का और का मोदी शाशन में खतरनाक शोर जारी है ?

देश को हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने की सनक पर कितनी तेजी से काम हो रहा है, इस बात का अंदाजा जगह-जगह चलते बुलडोजरों से लगाया जा सकता है। मुसलमानों को पहले ही हिंदुत्व से आक्रांत करने की कोशिशें चल रही हैं।
देश को हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने की सनक पर कितनी तेजी से काम हो रहा है, इस बात का अंदाजा जगह-जगह चलते बुलडोजरों से लगाया जा सकता है। मुसलमानों को पहले ही हिंदुत्व से आक्रांत करने की कोशिशें चल रही हैं। हनुमान जयंती, रामनवमी और दुर्गापूजा के मौकों पर जो शोभायात्राएं देश के कई स्थानों में निकाली गईं, उनमें शोभा कितनी थी और धर्मांधता का उत्पात कितना था, यह जागरुक जनता ने देखा है। इन तथाकथित शोभायात्राओं का इस्तेमाल मुसलमानों को डराने-धमकाने के लिए किया गया। जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की गईं ताकि प्रतिवाद हो, हिंसा भड़के और फिर अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का जोर दिखाया जा सके। जब ऐसा हुआ तो फिर उत्पात वाले इलाकों में अचानक प्रशासन को अवैध निर्माण नजर आने लगा, मानो इससे पहले वो सारा निर्माण अदृश्य था, जो प्रशासन को कभी नजर ही नहीं आया। ऐसा नहीं है कि इससे पहले देश में कभी अवैध निर्माण तोड़े नहीं गए। कई प्रशासनिक अधिकारियों ने लोगों की नाराजगी मोल लेते हुए नियम-कायदों के तहत अवैध निर्माण तुड़वाएं हैं। लेकिन उसकी एक प्रक्रिया होती है। लोगों को नोटिस जारी किया जाता है, अपना सामान खाली करने का वक्त दिया जाता है। मगर इस वक्त देश में जो हो रहा है, उसे वैध गुंडागर्दी के अलावा और क्या नाम दिया जाए, ये समझ नहीं आ रहा।
उत्तरप्रदेश से निकाली गई बुलडोजर रथयात्रा अब मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद दिल्ली भी पहुंच चुकी है। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में शनिवार रात हनुमान जयंती के मौके पर हिंसा भड़क गई थी। शोभायात्रा में हथियार लहराए गए, दो समुदायों के बीच भिड़ंत हुई और दिल्ली पुलिस एक बार फिर हिंदी फिल्मों की पुलिस वाला किरदार निभाती नजर आई। दो साल में दो बार दिल्ली दंगों का शिकार होती दिखी और दिल्ली में बैठे देश के बड़े सूरमाओं को इसकी भनक भी नहीं हुई कि आखिर हिंसा भड़की कैसे। सरकार से ये सवाल पूछा जा सकता है कि जब दिल्ली पुलिस आपके अधीन है, तब उससे बार-बार एक जैसी चूक कैसे हो जाती है। हालात बिगड़ जाते हैं और पुलिस को पता ही नहीं चलता कि इसके पीछे जिम्मेदार कौन है। कोई सोता रहे तो उसे उठाया जा सकता है, मगर सोने का नाटक करने वाले को उठाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
इसलिए दिल्ली पुलिस या केंद्र सरकार से हालात संभालने की ईमानदार कोशिशों वाली उम्मीद रखना बेकार है। ऐसा लग रहा है कि सब मोहन भागवत के बताए हुए महान लक्ष्य को पूरा करने में दिन-रात एक किए हुए हैं। श्री भागवत ने कितने प्यार से धमकी दी थी कि हम अहिंसा में यकीन रखते हैं, लेकिन हाथ में लाठी भी लेते हैं। अब वही धमकी चरितार्थ होते दिख रही है। रमजान के मौकों पर मुसलमानों के घरों-दुकानों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें ये संदेश दिया जा रहा है कि भारत में अब संविधान, लोकतंत्र सब हाशिए पर जा चुके हैं, और हिंदू राष्ट्र बनाने की पूरी तैयारी हो चुकी है। जहांगीरपुरी हिंसा में अभी जख्म हरे ही थे कि वहां बुलडोजर पहुंचाकर भाजपा ने उन्हें और कुरेद दिया।
कहने को तो जहांगीरपुरी में अवैध निर्माण तोड़ने की कार्रवाई एमसीडी की थी, लेकिन इसके पीछे सोच किसकी रही होगी, ये समझना कठिन नहीं है। कुछ विपक्षी नेताओं की आपत्ति और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने के बाद अदालत ने इस कार्रवाई को रोकने और यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए, मगर बावजूद इसके बुलडोजर कुछ जगहों पर चल ही गया। माकपा नेता वृंदा करात ने मौके पर पहुंचकर हस्तक्षेप किया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अवैध निर्माण के खिलाफ चल रही एमसीडी की कार्रवाई पर आपत्ति जताई। वृंदा करात की ही तरह अगर विपक्ष के बाकी नेता भी इसी तरह प्रशासनिक दबंगई के खिलाफ पीड़ितों के हक में सड़कों पर उतर जाएं और सरकार से जवाबदेही की मांग करें तो मजबूरन सरकार को झुकना पड़ेगा। अफसोस इस बात का है कि विपक्ष के नेता इस तरह का जज्बा अक्सर चुनावों के वक्त ही दिखलाते हैं। विपक्ष यूं ही कमजोर नहीं हुआ है, अपनी अकर्मण्यता से कमजोर हुआ है।
टूटे-फूटे ढांचे, रोते-बिलखते-चीखते-चिल्लाते मजबूर लोग, सड़क पर औंधा पड़ा महात्मा गांधी की तस्वीर वाला पोस्टर, जिस पर लिखा है मेरा भारत महान, टीआरपी बढ़ाने की गरज से तमाशेबाज एंकरों का जमावड़ा, ये सारी तस्वीरें दिन भर सोशल मीडिया पर छाई रहीं। बुलडोजर संस्कृति से नागरिक समाज विचलित है। ऐसा लग रहा है कि संसद और न्यायपालिका को भी बुलडोजर का डर दिखाया जा चुका है। दुनिया के कई देशों में इस वक्त तबाही का मंजर है। भारत अपने अनूठे संविधान, संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब के कारण ही बचा हुआ था, पर एक धक्का और का नारा अब बुलंद होता जा रहा है।

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