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महंगाई के म पर मौन 56 ईच के सिनेवाले मोदी

विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए भारत के जीडीपी वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है।

 

विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए भारत के जीडीपी वृद्धि के अनुमान को घटा दिया है। जनवरी में उसने अनुमान जताया था कि वित्त वर्ष 2023 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रहेगी लेकिन अब इसे घटाकर आठ प्रतिशत कर दिया गया है। विश्व बैंक का कहना है कि खपत मांग में सुस्ती और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ती अनिश्चितताओं के कारण भारत के जीडीपी वृद्धि अनुमान में कटौती की गई है। घरेलू खपत में कमी और युद्ध के कारण पेश आई समस्याएं तो ताजा कारण हैं, लेकिन इससे पहले पिछले दो सालों में भारत की अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी है, ये सब महसूस कर रहे हैं। कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन का फैसला तात्कालिक तौर पर जितना भी प्रभावशाली लगा हो, मगर उसके घातक परिणाम आज तक देश का आम आदमी भुगत रहा है।

अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का सपना देश को दिखाया था और 2024 तक इसे पूरा करना संभव भी बताया था। मोदीजी के पहले कार्यकाल में हर खाते में 15 लाख रुपए और हर साल 2 करोड़ रोजगार के जुमलों से जल चुके लोगों ने इस सपने में एक बार फिर अपने अरमान झुलसा लिए। जनता को यह भ्रम हो गया था कि मोदीजी प्रधानमंत्री बने रहेंगे तो देश में विकास हो कर रहेगा। 2019 में सरकार लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हो गई थी कि पांच साल पहले भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 1.85 लाख करोड़ डॉलर था, जो 2019 में 2.7 लाख करोड़ डॉलर हो चुका है, तो अगले पांच सालों यानी 2024 तक इसे दोगुना करना संभव होगा।

अर्थव्यवस्था में लगातार बढ़ोतरी केवल बातों से नहीं हुई थी, बल्कि इसके लिए पूर्ववर्ती सरकारों ने सही फैसले लिए थे। मोदीजी ने तो सत्ता में आने के बाद नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले लिए, जिससे अर्थव्यवस्था और रोजगार को बड़ा झटका लगा। इसके बाद कोरोना के आते ही लॉकडाउन का फैसला मोदी सरकार ने ले लिया, जिसकी वजह से करोड़ों रोजगार खत्म हुए, व्यापार चौपट हुए और एक बड़ी आबादी गरीबी की श्रेणी में आ गई। दो साल में कोरोना ने अर्थव्यवस्था की सांसें उखाड़ दी और सरकार ने राहत पैकेज का आक्सीजन बड़े उद्योगपतियों को दिया, आम जनता के लिए पांच किलो अनाज जीने के लिए काफी मान लिया गया। इन हालात में घरेलू खपत पर असर पड़ना ही था और उसी का नतीजा आज नजर आ रहा है। लोगों की जेब में जब पैसे ही नहीं रहेंगे तो वे खरीदारी किस तरह करेंगे। बाजार का चक्र पूरी तरह टूट चुका है। उस पर हर रोज बढ़ती महंगाई से हालात और बेकाबू हो चुके हैं।

विधानसभा चुनावों तक महंगाई पर लगाम लगाकर बैठी सरकार ने अब उसके सारे बंधन तोड़ दिए हैं। पेट्रोल-डीजल, गैस, सब्जी, दूध हर चीज की कीमत बेतहाशा बढ़ गई है। मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर 6.95 प्रतिशत रही है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। लेकिन मौजूदा महंगाई की दर लगातार तीसरे महीने ख़तरे के निशान के पार है और लगातार बढ़ रही है। जनवरी महीने में खुदरा महंगाई दर 6.01 प्रतिशत, फरवरी में 6.07 प्रतिशत और अब 6.95 प्रतिशत हो गई है। कोई आश्चर्य नहीं कि अगले महीने हम इसे 7 प्रतिशत के पार जाते देखें।

मार्च में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 7.68 प्रतिशत हो गई है, जबकि फरवरी 2022 में यह 5.85 प्रतिशत थी। लगभग दो प्रतिशत की इस वृद्धि को आम आदमी बहुत पीड़ा के साथ महसूस कर रहा है। इस महीने सब्जियों की कीमतों में 11.64 प्रतिशत की तेजी देखी गई, जबकि मांस और मछली में 9.63 प्रतिशत और मसालों में 8.50 प्रतिशत की तेजी देखी गई। इसके अलावा ईंधन और ऊर्जा में 7.52 प्रतिशत, कपड़े और जूते में 9.40 प्रतिशत की तेजी आई है। मतलब रोजमर्रा के इस्तेमाल की हर चीज आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है और जिंदा रहने के लिए उसे इस महंगाई को सहन करना पड़ रहा है। कई घरों में अब सस्ती गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ खरीदे जा रहे हैं, ताकि पेट भी भरे और खर्च थोड़ा कम हो।

महंगाई की मार उपभोक्ताओं पर ही नहीं व्यापार पर भी पड़ रही है। अमूमन त्योहारों के मौके पर बाजार में रौनक बढ़ जाया करती थी। लोग जरूरत के अलावा शौक में भी सामान खरीद लेते थे, लेकिन अब इन सारे खर्चों में कटौती हो रही है। कोरोना के बाद संभले हालात में लोगों को उम्मीद थी कि अब व्यापार पटरी पर आएगा, लेकिन महंगाई ने सब कुछ बेपटरी कर दिया है।

इन हालात में देश की अर्थव्यवस्था किस तरह 5 ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है, ये कोई अनूठा अर्थशास्त्री ही समझा सकता है। हालात विपरीत हैं और अर्थव्यवस्था में अभी हिचकोले खाने पड़ेंगे, इस बात का ऐलान भी प्रधानमंत्री मोदी नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे बाकी जरूरी मुद्दों की तरह यहां भी चुप्पी साध कर बैठे हैं। महंगाई का म उनके मुंह से नहीं निकल रहा। लेकिन विश्वबैंक के बोलने पर तो कोई रोक नहीं है। सो उसने बता दिया है कि अभी भारत में जीडीपी और घटेगी। ये भारत के लिए काफी निराशाजनक है, मगर आश्चर्य इस बात का है कि राजनैतिक अस्थिरता से गुजरे पाकिस्तान और आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुके श्रीलंका के लिए विश्वबैंक ने जीडीपी बढ़ने का अनुमान जताया है। भारत में पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद अगर आर्थिक वृद्धि के आसार नहीं दिख रहे, महंगाई कम होने की सूरत नजर नहीं आ रही, तो फिर लोगों को अपने फैसले पर विचार करना चाहिए कि आखिर मोदी सरकार कहां चूक रही है, क्यों चूक रही है और इसकी जिम्मेदारी किसकी है।

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