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सड़क से संसद तक गरीबों के हक में खड़ी कांग्रेस

देश में बढ़ती महंगाई के खिलाफ आज देश भर में कांग्रेस ने सड़कों पर उतर कर मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया

देश में बढ़ती महंगाई के खिलाफ आज देश भर में कांग्रेस ने सड़कों पर उतर कर मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोल किया। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में गुरुवार को भी 80 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई, जिससे पिछले 10 दिनों में दरों में कुल वृद्धि 6.40 रुपये प्रति लीटर हो गई है। इस बढ़ोतरी का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला है, जिसे ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सांसदों ने दिल्ली के विजय चौक पर ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और इसे वापस लेने की मांग की। लोकसभा और राज्यसभा दोनों के कांग्रेस सांसदों ने तख्तियां लिए सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और पेट्रोल, डीजल और एलपीजी गैस की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ धरने पर बैठ गए। कांग्रेस महंगाई और ईंधन की कीमतों में वृद्धि के खिलाफ एक सप्ताह का देशव्यापी विरोध भी शुरू कर रही है।

इधर सड़क पर सरकार को घेरने का काम कांग्रेस कर रही थी, तो उधर संसद में गरीबों के हक में सोनिया गांधी सरकार के सामने अपनी आवाज उठा रही थीं। सोनिया गांधी ने लोकसभा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) पर मोदी सरकार को जमकर घेरा। दरअसल सरकार ने हाल ही में राज्यों को कहा है कि मनरेगा के बजट का भुगतान तब तक नहीं किया जाएगा, जब तक कि उनका वार्षिक श्रम बजट स्वीकृत नहीं हो जाता। जब तक कि वे सामाजिक लेखा परीक्षा और लोकपाल की नियुक्ति से संबंधित शर्तों को पूरा नहीं करते। विभिन्न राज्यों में मनरेगा के तहत कामगारों के भुगतान का लगभग 5000 करोड़ रुपए बकाया है। संपन्न लोगों को तो बैंकों से लेकर दुकानदार तक आसानी से उधारी दे देते हैं, लेकिन रोज कमा के खाने वालों को कोई उधारी नहीं देता। उनके लिए एक दिन वेतन न मिलने का मतलब भूखे पेट सोना होता है।

लेकिन गरीबों की खैरख्वाह बनने वाली सरकार इस साधारण से गणित को समझ ही नहीं रही है। इसलिए उनकी ओर से एक बार फिर सोनिया गांधी ने ही मोर्चा संभाला। उन्होंने सदन में साफ-साफ कहा कि सोशल ऑडिट को निश्चित रूप से प्रभावित बनाया जाना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने के लिए मनरेगा को आधार बनाकर और उसके पैसे के आबंटन को नहीं रोका जाना चाहिए, यह अनुचित है और अमानवीय भी है। सरकार को इसमें बाधा डालने की बजाय सही समाधान निकालना चाहिए। सोनिया गांधी ने कहा कि ग्राम सभा द्वारा सोशल ऑडिट पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसलिए केंद्र सरकार को मनरेगा के लिए बजट का आबंटन किया जाना चाहिए। कामगारों के काम करने के 15 दिन के भीतर उनकी मजदूरी का भुगतान कर दिया जाए। वहीं देरी की स्थिति में कानूनी तौर पर मुआवजे की भी योजना बनाई जाए। सरकार के इस तरीके से बजट की कटौती में कामगारों के भुगतान में देरी होगी। जोकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले का अपमान है।

गौरतलब है कि मनरेगा की शुरुआत यूपीए कार्यकाल में ही हुई थी और इस एक फैसले से देश के करोड़ों कामगारों को रोजगार के कम से कम सौ दिन तो मिल ही गए थे। हालांकि जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो प्रधानमंत्री ने इसका मजाक उड़ाते हुए इसे कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक बताया था। 2015 में संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि आजादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। ये आपकी विफलताओं का स्मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा।

नरेंद्र मोदी जब ऐसा बोल रहे थे तो सदन में उनके सहयोगी हंस रहे थे और तालियां पीट रहे थे। हालांकि जब कोरोना महामारी की वजह से बेरोजगारी का जो गंभीर संकट देश में खड़ा हुआ तो मोदी सरकार को मनरेगा का बजट बढ़ाना पड़ा, क्योंकि इसी से बेरोजगारी को थोड़ा बहुत कम किया जा रहा था। हालांकि अब फिर मनरेगा के लिए आबंटित बजट में कटौती की गई है। इस साल मनरेगा बजट 2020 की तुलना में 35 प्रतिशत कम है। गुरुवार को सोनिया गांधी ने संसद में इस बात की याद भी सरकार को दिलाई कि जिस मनरेगा का कुछ लोग मजाक उड़ाते थे, उसने कोरोना और लॉकडाउन के दौरान करोड़ों लोगों की मदद की। उन्होंने कहा कि इस योजना ने कोरोना और बाढ़ प्रभावित इलाकों में करोड़ों गरीब परिवारों की मदद की, उनको सहायता प्रदान करने में सरकार के बचाव में अहम भूमिका निभाई। पर सरकार ने मनरेगा के लिए आबंटित बजट में लगातार कटौती की जिस कारण मजदूरों के भुगतान में काफी दिक्कतें आ रही हैं।

कांग्रेस सड़क से लेकर संसद तक एक बार फिर गरीबों के हक में खड़ी हो रही है। केवल जुबानी जमाखर्च नहीं कर रही, सामने आकर संघर्ष का आह्वान कर रही है। 2014 से पहले भाजपा भी इसी तरह महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को लेकर सड़कों पर उतरती थी। नरेन्द्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब चलती हैं, जिसमें याद दिलाया जाता है कि कैसे भाजपा उन्हीं आरोपों को कांग्रेस पर लगाती थी, जिन्हें लेकर आज उस पर उंगलियां उठ रही हैं। फर्क इतना ही है कि तब भी भाजपा की आवाज को मीडिया में भरपूर जगह मिलती थी और आज विरोध के उन्हीं सुरों को मीडिया ज्यादा जगह नहीं दे रहा, क्योंकि वो कांग्रेस के गले से निकले हैं। मीडिया और सरकार दोनों अपनी भूमिकाओं से न्याय नहीं कर रहे हैं। दोनों का मकसद लोककल्याण के उद्देश्यों को पूरा करना होता है, मगर अभी केवल सत्ता और पूंजी के हित साधे जा रहे हैं। ऐसे में किसे परवाह कि जनता के हक की आवाज कौन उठा रहा है।

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