भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का सम्मान करें।:प्रधानमंत्री मोदी

देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के सम्मान की बात कह कर मोदी ने खींची नई लकीर….
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने देश में सकारात्मक राजनीति की बहाली के सुखद संकेत दिए हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सांसदों से कहा है कि वे भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का सम्मान करें। इस नाते कि वे किन्हीं पार्टियों के नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। राजनीति के घुटन भरे घटाटोप में नरेंद्र मोदी के इस बयान का स्वागत होना चाहिए।
देश का सियासी वातावरण बेहद तल्ख़ होता जा रहा है। इसके कुछ सीधे से कारण समझ में आते हैं। एक सीधा सा कारण तो यही है कि आज़ादी के बाद से क़रीब साढ़े पांच दशक तक केंद्र और राज्यों में रसूख और धमक रखने वाली कांग्रेस ने विचार और आचार की जो राह चुनी थी, उसका अंतिम छोर बहुत क़रीब आ पहुंचा है। कांग्रेस के सिमटने की वजह से जो राजनैतिक निर्वात बन रहा है, उसकी भरपाई के लिए कुछ राजनैतिक बवंडर अगले एक-दो दशक तक चलें, तो उन पर आश्यर्च नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने देश में सकारात्मक राजनीति की बहाली के सुखद संकेत दिए हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के सांसदों से कहा है कि वे भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का सम्मान करें। इस नाते कि वे किन्हीं पार्टियों के नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। राजनीति के घुटन भरे घटाटोप में नरेंद्र मोदी के इस बयान का स्वागत होना चाहिए। इस पर चर्चा होनी ही चाहिए। गत 29 मार्च को मोदी ने बीजेपी संसदीय दल की बैठक में दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में बन रहे पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय के महत्व को रेखांकित करते हुए यह अपना विचार रखा। पूर्व प्रधानमंत्री संग्रहालय 14 अप्रैल से खुल रहा है।
तीन मूर्ति भवन में पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी स्मृतियों को ही संजो कर रखा गया था। प्रधानमंत्री के तौर पर वे तीन मूर्ति भवन में ही रहते थे। बाद में मोदी सरकार ने इसे सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की स्मृतियों से जोड़ने का फ़ैसला किया। जब यह निर्णय किया गया, तब कांग्रेस नेताओं ने इसकी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि बीजेपी नेहरू-गांधी परिवार का महत्व कम करना चाहती है। यह तर्क समझ से परे है। यदि एक ही जगह पर देश के सभी प्रधानमंत्रियों से जुड़े इतिहास के दर्शन की व्यवस्था हुई है, तो यह उनके महत्व को कम करने का नहीं, बल्कि बढ़ाने की बात है।
सकारात्मक सूझ-बूझ की ज़रूरत
असल में राजनैतिक सूझ-बूझ के अभाव में कांग्रेस के कर्णधारों को कुछ सकारात्मक सूझ नहीं रहा है। नजीता यह है कि राहुल गांधी समेत कांग्रेस के सभी नेता सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी सरकार के विरोध में ही बयानबाज़ी करने पर उतारू हैं। उन्हें यह तक समझ में नहीं आ रहा है कि इस रवैये की वजह से राजनीति में ब्रैंड मोदी का क़द बढ़ ही रहा है, उसके घटने के आसार कतई नहीं हैं। बिना बौखलाए कांग्रेस अगर चिंतन-मनन करे, तो उसे भी यह समझ में आ सकता है। लेकिन इसकी कोई संभावना हाल-फिलहाल में दिखाई नहीं देती। कांग्रेस अगर नकारात्मक राजनीति पर अड़ी रही, तो वह राजनीति के ब्रैंड मोदी को भारतीय समाज के नायक के तौर पर स्थापित करने में मुख्य मददगार साबित होगी।
नहीं चलेगी विशुद्ध नकारात्मक सोच
हाल के चुनावी परिणामों पर सतर्क दृष्टिपात करें, तो पता चलता है कि कांग्रेस के मुख्यधारा से फिसलने के बाद के माहौल में कुछ राज्यों में व्यक्तिवादी या कहें कि वंशवादी राजनीति के बरगदों की जड़ें भी कमज़ोर होती दिखाई दे रही हैं। ऐसे में देश के राजनैतिक वातावरण की धुरी में कुछ न कुछ स्थाई परिवर्तन के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। विशुद्ध नकारात्मक राजनीति बहुत दिन तक और बहुत दूर तक नहीं चल सकती। आप अपने बारे में अच्छी बातें लोगों को सामने रखिए, तो बात कुछ बन भी सकती है। आप उन नेताओं और व्यवस्थाओं के बारे में कुछ भी नकारात्मक बोलेंगे, तो एक स्तर के बाद लोग आपसे खीझ जाएंगे। वह इसलिए कि लोग काम होते हुए ख़ुद देख-सुन रहे हैं। जो सही हो रहा है, उसकी आलोचना आप किसी रंग का चश्मा पहन कर करेंगे, तो वह ग़लत नहीं हो जाता है। पब्लिक सब जानती है। डिजिटल दौर की पब्लिक को अब सब ज़्यादा जानती है।
नहीं चले छह हज़ार बनाम 72 हज़ार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह हज़ार रुपये सालाना किसान सम्मान निधि योजना लागू की। हमें पता है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार के छह हज़ार रुपये के मुक़ाबले 72 हज़ार रुपये सालाना का पासा फेंका। लेकिन हश्र क्या हुआ? बीजेपी को 2014 में मुक़ाबले और बड़ी जीत मिली। किसानों ने मोदी सरकार के छह हज़ार रुपये पर और बढ़-चढ़ कर भरोसा किया। कांग्रेस की 12 गुना रक़म को उन्होंने नकार दिया। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी बताते हैं कि 300 यूनिट मुफ़्त बिजली के समाजवादी पार्टी के वादे पर लोगों ने यक़ीन नहीं किया। अखिलेश यादव ने बीजेपी के सभी विकास कार्यों को अपने कार्यकाल में शुरू किए गए बताते हुए योगी सरकार पर तीखे वार किए थे, लेकिन हार गए।
लगातार चुनाव कटुता की बड़ी वजह
नकारात्मक राजनीति की लपटें ज़्यादा तेज़ होने की एक बड़ी वजह हर साल होने वाले चुनाव भी हैं। वर्ष 1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे। उसके बाद कांग्रेस से लोगों का मोहभंग होने के बाद कमज़ोर सरकारों का दौर आया। नतीजा यह हुआ कि आर्टिकल 356 का दुरुपयोग बहुत होने लगा। बहुत सी बाग़ी राज्य सरकारें असमय गिराई जाने लगीं। मध्यावधि चुनावों का सिलसिला चल निकला और आज स्थिति यह है कि हर साल कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव होते हैं। हम कह सकते हैं कि राजनैतिक पकड़ रखने वाली सभी पार्टियों के स्टार प्रचारक साल भर चुनावी मोड में ही रहते हैं। चुनाव प्रचार में पक्ष-विपक्ष के बीच तीखी बयानबाज़ी का सिलसिला लगातार चलता रहता है। इसलिए राजनीति में नकारात्मक विचारों का स्थाई सिलसिला चल निकला है। पहले पक्ष-विपक्ष के नेताओं में वैचारिक आधार पर मतभेद होते थे, लेकिन वे गले में हाथ डाले मिल जाते थे। आज वैचारिक मतभेद की जगह व्यक्तिगत कटुता ने ले ली है।
एक देश – एक चुनाव हो
केंद्र में नरेंद्र मोदी सराकर बनने के बाद हालांकि एक देश – एक चुनाव पर बात शुरू हुई है, लेकिन इसके अंजाम तक पहुंचने के आसार अभी दिखाई नहीं देते। इतना तय है कि अगर ऐसा हो गया, तो न केवल विकास के लिए काफ़ी पैसा और श्रम शक्ति बचेगी, बल्कि राजनैतिक गलियारों में भी कटुता के स्वर मंद पड़ेंगे। पांच साल में एक बात टकराव होगा, जो अभी हर साल, हर महीने और हर दिन हो रहा है। देश की परिस्थितियों में सुधार की ज़िम्मेदारी अकेले सरकारों की नहीं होती। विपक्ष की उसमें महती भूमिका होती है। ज़ाहिर है कि सकारात्मक मुद्दों पर सकारात्मक चिंतन में विपक्ष अपनी प्रत्यक्ष ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता।
सभी महान नेताओं को मिले सम्मान
केंद्र में नए राजनैतिक युग के शुरू होने के बाद भारतीय जनता पार्टी अगर देश के सभी कद्दावर नेताओं को उचित सम्मान दे रही है, तो कांग्रेस को इस पर कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर हों या फिर वल्लभ भाई पटेल या फिर दूसरे बहुत से नेताओं के देश के प्रति योगदान का गुणगान उतना नहीं किया गया, जितना नेहरू परिवार का। ऐसे में मोदी सरकार यदि यह प्रयास विभिन्न स्तरों पर कर रही है कि देश की नींव रहे नेताओं को उचित सम्मान दिया जाए, तो यह स्वागत योग्य क़दम है। आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की यादों को संजोने वाले संग्रहालय का लोकार्पण बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती के अवसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, तो कांग्रेस को भी दिल खोलकर इसका स्वागत करना चाहिए.
रवि पाराशर
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए CRIME CAP NEWS किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)