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रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग में छात्रों की सुरक्षित वतन वापसी के मुद्दे में भी मोदी सरकार की प्रचारलिप्सा

युद्ध हो या शांति, किसी भी माहौल में, किसी भी घटना को अपने प्रचार के लिए भुनाने की कला मौजूदा केंद्र सरकार में कूट-कूट कर भरी है। ऐसा लगता है मानो सात सालों तक इसी बात का अभ्यास किया गया है कि कैसे हर बात पर अपनी वाहवाही करवाई जाए।

युद्ध हो या शांति, किसी भी माहौल में, किसी भी घटना को अपने प्रचार के लिए भुनाने की कला मौजूदा केंद्र सरकार में कूट-कूट कर भरी है। ऐसा लगता है मानो सात सालों तक इसी बात का अभ्यास किया गया है कि कैसे हर बात पर अपनी वाहवाही करवाई जाए। फिर चाहे इसके लिए नाटकीयता दिखानी पड़े या झूठ बोलना पड़े। मोदी सरकार की प्रचारलिप्सा का ताजा उदाहरण रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग में भारतीय छात्रों की सुरक्षित वतन वापसी के मुद्दे में देखा जा सकता है।

यूक्रेन में करीब 20 हजार भारतीय छात्र अलग-अलग शहरों में पढ़ रहे थे, जिन्हें युद्ध शुरु होने से पहले ही भारत लौटाने की जिम्मेदारी मोदी सरकार पूरी नहीं कर पाई। जिस तरह की लापरवाही कोरोना की रोकथाम में हुई थी, क्योंकि चुनाव सामने थे, इस बार भी हाल वैसा ही रहा। युद्ध की आशंका के बावजूद सरकार इस ओर से बेपरवाह रही कि अगर जंग छिड़ी तो भारतीय छात्रों का क्या होगा। नतीजा वही हुआ, जिसका डर था। भारतीय छात्रों की जान पर बन आई और सोशल मीडिया भारतीय छात्रों की मदद की गुहार से भर गया। भारतीय दूतावास की ओर से छात्रों के लिए जो दिशानिर्देश जारी हुए, उसमें भी देर हुई।

एडवायजरी की भाषा पर भी लोग हैरानी जता रहे हैं। पहली एडवायजरी 15 फरवरी को जारी की थी, उसकी भाषा भी ऐसी थी कि जिनको यूक्रेन में रुकने की जरूरत ना हो वो भारत वापस आ जाएं। इस भाषा से हालात की गंभीरता का अनुमान लोग नहीं लगा पाए। जबकि दूसरी एडवायजरी 2 मार्च को जारी हुई, उसमें खारकीव शहर में रहने वाले लोगों को तुरंत शहर छोड़ने की सलाह देते हुए कहा गया कि वे रेल या बस लेकर 11 किमी दूर पिसोचिन, 12 किमी दूर बाबई या 16 किमी दूर बेजल्यूदविका पहुंच जाएं और कोई साधन न मिले तो पैदल ही चले जाएं।

अपने छात्रों या नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए इस तरह की सलाह देने के लिए भारत सरकार पर हंसा जाए या रोया जाए, तय करना कठिन है। हालात इतने गंभीर हैं कि हंसी दुश्वार है और रोने से किसी समस्या का हल होने नहीं वाला। जिस जगह लगातार बमों, मिसाइलों और गोलियों से हमले हो रहे हों, वहां साधारण नागरिक शून्य से चार-पांच डिग्री नीचे के तापमान में किस तरह एक शहर से दूसरे शहर पहुंचे, यह गंभीर सवाल है। लेकिन इस सवाल को हल करने की जगह मोदी सरकार ने एडवायजरी जारी कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी है। जो छात्र यूक्रेन की सीमा पार कर पोलैंड या रोमानिया पहुंच रहे हैं, वहां से उन्हें विमानों में वापस भेज कर सरकार अपने लिए तालियों का इंतजाम कर रही है।

चार केन्द्रीय मंत्री इस वक्त इस ड्यूटी पर लगा दिए गए हैं। और जो विमान छात्रों को लेकर दिल्ली या मुंबई पहुंच रहे हैं, वहां कैमरों के साथ कुछ केन्द्रीय मंत्री विमान के भीतर जाकर विद्यार्थियों का स्वागत कर रहे हैं। उन्हें बता रहे हैं कि सरकार ने उनकी सुरक्षित वापसी करा दी है। अभी एक वीडियो सामने आया था जिसमें स्मृति ईरानी अलग-अलग प्रांतीय भाषाओं में विद्यार्थियों का स्वागत कर रही हैं।

गुजराती छात्रों का गुजराती में स्वागत, केरल के छात्रों का मलयाली में और महाराष्ट्र के छात्रों का मराठी में। बेशक श्रीमती ईरानी का भाषायी लहजा काफी उम्दा है और उन्होंने काफी अच्छे से अलग-अलग भाषाओं में स्वागत है, कहा। लेकिन ये कोई इंडियाज गॉट टैलेंट का शो नहीं था, जहां इस तरह की अभिनय और वाक क्षमता का प्रदर्शन जरूरी था। अलग-अलग प्रांतों से आए ये विद्यार्थी विदेशी धरती पर प्रांतीय अस्मिता के सवाल को पीछे छोड़कर भारतीय के तौर पर रहते हैं।

इन विद्यार्थियों में से कुछ लौट पाए हैं जबकि उनके कुछ साथी पीछे छूटे हुए हैं। इन विद्यार्थियों के सामने अभी अनिश्चित भविष्य है। क्योंकि जहां वे पढ़ाई कर रहे थे, वो विश्वविद्यालय अब कब खुलेंगे, खुल भी पाएंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। इनके लाखों रुपए बर्बाद हो ही गए। अब आगे की पढ़ाई के लिए भारत सरकार इनके सामने कौन से विकल्प रखती है, इन्हें ये भी नहीं मालूम। क्योंकि सरकार की ओर से भी अभी तक इस संबंध में शायद कोई सलाह सामने नहीं आई है कि वे बची पढ़ाई कैसे पूरी करेंगे। भारत के कौन से संस्थानों में इन विद्यार्थियों की पढ़ाई जारी रह सकेगी और उसकी कीमत क्या होगी, नियम या शर्तें क्या होंगी। सरकार चुनावों से फुर्सत पाकर जब तक इन सवालों पर विचार करेगी, तब तक हजारों बच्चे किस तरह रहेंगे, कुछ नहीं पता।

यूक्रेन से लौटे विद्यार्थियों के सामने भविष्य का संकट खड़ा हो गया है, और मोदी सरकार अभी वर्तमान के संकट को भी ठीक से संभाल नहीं पा रही। यूक्रेन से कुछ वीडियो सामने आए हैं, एक वीडियो में एक छात्र दिखा रहा है कि अरब देशों के छात्रों को सीमा तक पहुंचाने के लिए उनके देशों ने बसों का इंतजाम किया है, जबकि भारत सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की। एक वीडियो में एक छात्रा को रेल में चढ़ने से रोका जा रहा है, जबकि वह मदद की गुहार लगा रही है। बहुत से छात्र सवाल उठा रहे हैं कि सरकार किस तरह छात्रों की वापसी का श्रेय ले रही है, क्योंकि सीमा के पार आकर दूसरे देशों से भारत वापसी तो कोई अपने दम पर भी कर सकता है। रिहाई तो तब होती जब युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंसे बच्चों को निकालने का काम होता। लेकिन सरकार के प्रचार तंत्र की आईटी सेना इन वीडियो को विपक्ष की साजिश की तरह पेश करके, इसके बदले कुछ ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रही है, जिसमें भारत माता की जय के साथ तिरंगा थामे बच्चे मोदी सरकार का शुक्रिया अदा कर रहे हैं।

युद्ध के इस कठिन हालात में सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरु हो गया है, क्योंकि मोदी सरकार ने अपनी जिम्मेदारी निभाने से अधिक प्रचार पर जोर दिया और विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों को सही संदर्भों में लेने की जगह केवल आलोचना की तरह देखा। 1992 से अब तक भारत सरकार ने 30 अलग-अलग देशों से अपने लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है। लेकिन इस तरह का माहौल इससे पहले कभी नहीं बना। पहले की सरकारों ने चुपचाप अपनी जिम्मेदारी निभाई। जबकि मोदी सरकार एक बार फिर पिछली सरकारों से पिछड़ती दिखी।

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