ब्लॉग

भाजपा सत्ता की खातिर चारित्रिक पतन की और बढ़ चूकी हैं ?

सत्ता का मोह किसी शासक को नैतिकता के पैमाने पर कितना गिरा सकता है, इसका कालजयी उदाहरण महाभारत में दिया गया है

सत्ता का मोह किसी शासक को नैतिकता के पैमाने पर कितना गिरा सकता है, इसका कालजयी उदाहरण महाभारत में दिया गया है। कुरु सभा में द्रौपदी के अपमान का प्रसंग संवेदनशील लोगों की रूह आज भी कंपा देता है। लेकिन क्या राजनेताओं में संवेदना खत्म हो चुकी है, नैतिक तौर पर वे खोखले हो चुके हैं या विचारधारा का विरोध उन्हें इतना बाध्य कर देता है कि वे अपने सामने एक स्त्री का अपमान होते देख भी चुप्पी लगा जाते हैं। कम से कम राहुल गांधी के प्रसंग में तो यही नजर आ रहा है। आप जानते हैं कि असम की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वसरमा चुनावी राज्य उत्तराखंड में भाजपा के स्टार प्रचारक बनकर पहुंचे।

यहां एक सभा में उन्होंने सवाल किया कि राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं, क्या हमने पूछा कि आप राजीव गांधी के बेटे हो या नहीं। सारी दुनिया जानती है कि राहुल गांधी सोनिया गांधी और राजीव गांधी के बेटे हैं। कांग्रेस में रहकर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले हिमंत बिस्वसरमा भी इस बात को जानते हैं। फिर भी उन्होंने ये सवाल पूछा। सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा भी जबरन ही उठाया गया है, लेकिन हाल ही में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए जनरल विपिन रावत के नाम को उत्तराखंड में भुनाने की कोशिश भाजपा कर रही है, इसलिए इस मुद्दे पर बात की गई और इसके साथ जबरदस्ती गांधी परिवार पर नीच टिप्पणी की, क्योंकि श्री बिस्वसरमा को भाजपा के लिए वोट बटोरना है।

राहुल गांधी को लेकर दिए इस अमर्यादित बयान पर कायदे से नारी को पूजने वाले इस देश में विरोध की लहर दौड़ जानी चाहिए थी। मगर विरोध का जिम्मा कुछ संवेदनशील नागरिकों और कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने उठा रखा है। अन्य दलों के नेताओं में अखिलेश यादव ने श्री बिस्वसरमा का नाम लिए बिना कहा कि ऊपर वाला जिन्हें तहजीब न दे, उन्हें जीभ न दे। और इसके साथ ही उन्होंने भाजपा को नारी विरोधी बताया। जबकि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इस विवाद की कड़ी निंदा की। उन्होंने भाजपा से सीधे सवाल पूछा कि क्या यही हमारी संस्कृति है। एक भारतीय नागरिक होने के नाते के सी आर ने भाजपा से मांग की कि वो हिमंत बिस्वसरमा को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करे। लेकिन इन दो नेताओं के अलावा इस तरह खुल कर विरोध किसी गैरकांग्रेसी नेता ने किया हो, यह नहीं दिखा।

जो सवाल के सी आर ने भाजपा को लेकर उठाए हैं, वो अन्य लोगों के साथ-साथ भाजपा के लोगों को भी उठाना चाहिए। क्योंकि यहां एक सांसद का अपमान किया गया और उन्हें चोट पहुंचाने के लिए समूची मातृशक्ति को कलंकित करने की कोशिश की गई। जिन लोगों को दिन-रात परंपरा और संस्कृति की दुहाई देने की आदत है। जिनका धर्म इस बात से आहत हो जाता है कि किस स्त्री ने कैसे कपड़े पहन रखे हैं। जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए स्त्री के कपड़ों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते, वे तो ऐसे घटिया बयानों पर ताली बजा सकते हैं। लेकिन क्या सारा हिंदुस्तान नैतिक तौर पर इतना खोखला हो चुका है कि उसे अब ऐसे बयानों से कोई फर्क नहीं पड़ता, जिसमें सरेआम किसी स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। अगर इस वक्त भाजपा को माफी मांगने और हिमंत बिस्वसरमा को पद से हटाने के लिए हम मजबूर नहीं कर पाए, तो यह स्वीकार कर लेना होगा कि हम नैतिक तौर पर जर्जर देश में बदल चुके हैं और इसके साथ ही अच्छे दिनों की आस को तिलांजलि दे देना चाहिए।

भाजपा तो खैर सत्ता की खातिर पहले ही नैतिक और चारित्रिक पतन को स्वीकार कर चुकी है। ऐसा लगता है कि भाजपा में कोई होड़ चल रही है कि कौन कितनी घटिया बातें कह सकता है, कौन नेता, विपक्षियों के लिए अभद्र टिप्पणियां कर सकता है। आजकल ओटीटी प्लेटफार्म्स पर दिखाई जाने वाली फिल्मों और सीरीज में जिस तरह कोई सेंसरशिप नहीं होती और जबरदस्ती अपशब्दों का इस्तेमाल होता है, बस इसलिए ताकि इस गंदगी का इस्तेमाल दर्शकों की संख्या बढ़ाने के लिए किया जाए। कुछ वैसी ही मार्केटिंग और चुनावी रणनीति भाजपा की है। ऊपर से नीचे तक भाजपा के नेता अपने विरोधियों के लिए अपमानजनक बातें करने का सिलसिला चलाए हुए हैं, ताकि जनता के मन में विरोधियों की गलत छवि बने और इसके साथ ही वह असली सवालों की जगह आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझी रहे। दिन-रात सोशल मीडिया के जरिए जहर भरी बातें उस तक पहुंचती रहें और जब वोट देने का वक्त आए, तो वह भाजपा को वोट दे दे।

हालांकि इस बार चुनावों में जो माहौल नजर आ रहा है, वो बता रहा है कि भाजपा चाहे जितना जहर फैलाने की कोशिश कर ले, जनता के पास जो वोट नाम का हथियार है, उसके इस्तेमाल से वो इस जहर को काटने का काम कर देगी। पहले चरण के मतदान के बाद तो यही दिख रहा है कि भाजपा उप्र हार रही है। 14 फरवरी को दूसरे दौर का मतदान उप्र में है और इसके साथ उत्तराखंड और गोवा में भी चुनाव है। जहां भाजपा की हालत इस बार पस्त है। ऐसे में हिमंत बिस्वसरमा की टिप्पणी कहीं, आखिरी कील न साबित हो जाए।

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button