धर्म

कुंडली में ऐसे योग, जो नहीं बनने देते धनवान

मनुष्य की जन्मकुंडली में अनेक ऐसे ग्रह योग होते हैं जिनके कारण वह धनवान नहीं बन पाता है। यदि समय रहते और सही विश्लेषण से उन दरिद्र योगों का पता लगा लिया जाए तो उन दोषों को दूर करने के सटीक उपाय किए जा सकते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जो जो ग्रहण नवमेश और पंचमेश से युत व दृष्ट नहीं होते वे अनेक प्रकार के दुख देते हैं। इसी तरह जो जो ग्रह अष्टमेश, षष्ठेश, व्ययेश और मारकेश से युत होते हैं वे भी अशुभप्रद होते हैं।
लग्नेश व्ययभाव में, व्ययेश लग्न में मारकेश द्वितीय-सप्तम का स्वामी से युत या दृष्ट हो तो जातक को निर्धन समझना चाहिए। लग्नेश छठे भाव में अथवा षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो, लग्नेश मारकेश से दृष्ट हो तो जातक निर्धन होता है। लग्न या चंद्र केतु से युत हो, लग्नेश अष्टम भाव में मारकेश से युत हो अथवा दृष्ट हो तो इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य निर्धन होता है। त्रिक 6, 8, 12 भाव में स्थित लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त हो और मारकेश से युत या दृष्ट हो तो राजवंश में उत्पन्न जातक भी निर्धन हो जाता है।

सूर्य के साथ व्ययेश से युक्त पाप दृष्ट लग्नेश यदि शनि से युत-दृष्ट हो लेकिन शुभ दृष्टि रहित हो तो जातक दरिद्र होता है। पंचमेश और नवमेश क्रम से छठे अथवा दसवें भाव में स्थित हो, यदि मारकेश से दृष्ट हो तो इस योग में जन्म लेने वाला जातक निर्धन होता है। पाप ग्रह लग्न में हो और वह पाप ग्रह नवमेश या दशमेश भी न हो, मारकेश से दृष्ट अथवा युत हो तो जातक निर्धन होता है। चंद्र और मंगल धनभाव में हो तो धन नाशक कहे गए हैं। यदि धन भावस्थ चंद्र मंगल-बुध से दृष्ट हो तो जातक महावित्तवान होता है। धन गत शनि भी बहुत धन देता है। धन भावस्थ सूर्य यदि शनि से दृष्ट हो तो दरिद्र बनाता है। शनि की दृष्टि न हो तो महाधनी और ख्याति प्राप्त होता है। शुभग्रह धन भावगत होकर बहुत धनी बनाते हैं लेकिन वहां गुरु को बुध देखे तो जातक निर्धन होता है। धन भाव को बुध और चंद्र देखें तो निश्चित ही सारे धन का नाश होता है।

 

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