निजी स्थान पर शराब का सेवन अपराध नहीं, जब तक कोई शरारत न हुई हो: हाई कोर्ट

कोच्चि
केरल हाई कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करते हुए यह कहा है कि निजी स्थान पर शराब का सेवन तब तक अपराध नहीं है, जब तक कि पीने वाले कोई उपद्रव नहीं करते हैं। हाई कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि केवल शराब की गंध का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति नशे में था या किसी प्रकार के शराब के प्रभाव में था।
जस्टिस सोफी थॉमस ने 38 साल के सलीम कुमार के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि निजी स्थान पर किसी को परेशान किए शराब पीना कोई अपराध नहीं है। कोर्ट ने 10 नवंबर को अपने आदेश में यह बात कही है। दरअसल, सरकारी कर्मचारी के खिलाफ 2013 में पुलिस की ओर से दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी।
पुलिस ने कर्मचारी के खिलाफ केरल पुलिस (केपी) अधिनियम की धारा 118 (ए) के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें कहा गया था कि जब उन्हें एक आरोपी की पहचान करने के लिए स्टेशन बुलाया गया था, तो वह शराब के नशे में था। इसके बाद कुमार नाम के सरकारी कर्मचारी ने अदालत की ओर से रुख किया और कहा कि उसे एक आरोपी की पहचान करने के लिए शाम सात बजे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, जिसके खिलाफ आईपीसी की धारा 353 और केरल नदी तट संरक्षणम की धारा 20 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
कुमार की ओर से कोर्ट को बताया कि चूंकि आरोपी एक अजनबी था, इसलिए वह उसकी पहचान नहीं कर सका, जिसके बाद पुलिस ने उसके खिलाफ केस दर्ज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को एक आरोपी की पहचान करने के लिए पुलिस द्वारा बुलाया गया था। इसके अलावा कोर्ट ने केपी अधिनियम की उक्त धारा की बात करते हुए कहा कि इसके तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए, एक व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर नशे में या दंगा करने की स्थिति में पाया जाना चाहिए, जो खुद की देखभाल करने में असमर्थ हो।