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मोदी राज में भूखा भारत, कुपोषित विकास

भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर साधु-संत की तरह विभिन्न विषयों पर प्रवचन करते नजर आते हैं

भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर साधु-संत की तरह विभिन्न विषयों पर प्रवचन करते नजर आते हैं। ताजा उदाहरण केदारनाथ का है, जहां उन्होंने आदि शंकराचार्य को याद करते हुए इस अंदाज में भाषण दिया, ऐसा लगा मानो देश में लोकतंत्र का शासन नहीं, धार्मिक आय़ोजन चल रहा हो। नरेन्द्र मोदी कभी संन्यासी बन जाते हैं, कभी सैनिक बनकर दुश्मन को ललकारते दिखते हैं, कभी शिक्षक बनकर विद्यार्थियों को परीक्षा की जंग फतह करने की राह सुझाते हैं, कभी डाक्टरों या अंतरिक्ष विज्ञानियों को अपनी विशेषज्ञता से परिचित कराते हैं।

लेकिन जिस काम के लिए देश की जनता ने उन्हें फिर से पांच सालों तक सत्ता की कमान सौंपी है, उस जिम्मेदारी को वे किस तरह से निभा रहे हैं, उसमें कितने सफल हो रहे हैं, या अगर नाकामियां हैं, तो उन्हें पहचान कर, दूर करने की कैसी कोशिशें कर रहे हैं, इस पर नरेन्द्र मोदी मौन साध लेते हैं। महंगाई का म भी मोदीजी अब नहीं बोलते, ये चुटकुला पिछले दिनों खूब चला। लेकिन केवल महंगाई नहीं, प्रधानमंत्री न बेरोजगारी पर बात करते हैं, न गरीबी पर, न भूख पर, न कुपोषण पर।

अभी पिछले महीने ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ था, जिसमें भारत में भूख की स्थिति अलार्मिंग यानी खतरनाक बताई गई थी। 116 देशों की सूची में भारत 101वें नंबर पर आ गया जबकि इसके पहले 2020 की सूची में भारत 94वें नंबर पर था। तब रैंकिंग के लिए इस्तेमाल की गईं पद्धति को सरकार ने अवैज्ञानिक बताया था। रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा था, ‘यह चौंकाने वाला है कि वैश्विक भूख रिपोर्ट 2021 ने कुपोषित आबादी के अनुपात पर एफएओ के अनुमान के आधार पर भारत के रैंक को कम कर दिया है, जो जमीनी वास्तविकता और तथ्यों से रहित और गंभीर कार्यप्रणाली मुद्दों से ग्रस्त पाया जाता है। इस रिपोर्ट की प्रकाशन एजेंसियों, कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगरहिल्फ ने रिपोर्ट जारी करने से पहले उचित मेहनत नहीं की है।’

लेकिन अब एक आरटीआई के जवाब में इसी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बताया है कि इस समय देश में 33 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से 17 लाख से भी ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। ये आंकड़े 34 राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों के हैं। राज्यवार सूची में सबसे ऊपर महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात का नाम है। ये आंकड़े पोषण ट्रैकर ऐप पर डाले गए थे, जो पोषण कार्यक्रम की निगरानी करने के लिए विकसित किया गया एक ऐप है। एक साल पहले की स्थिति से तुलना करने पर ये आंकड़े और ज्यादा चिंताजनक हालत दिखाते हैं। नवंबर 2020 से 14 अक्टूबर 2021 के बीच गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत का उछाल आया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है, या जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है। इससे एक दर्जा नीचे यानी अत्याधिक रूप से कुपोषित (एमएएम) बच्चे वो होते हैं जिनकी बांह की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है। दोनों ही अवस्थाओं का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है। एसएएम अवस्था में बच्चों की लंबाई के हिसाब से उनका वजन बहुत कम होता है। ऐसे बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता भी बहुत कमजोर होती है और किसी गंभीर बीमारी होने पर उनके मृत्यु की संभावना नौ गुना ज्यादा होती है। एमएएम अवस्था वाले बच्चों में भी बीमार होने की और मृत्यु की आशंका ज्यादा रहती है।

क्या मोदीजी के पास कुपोषण के बारे में विस्तृत जानकारी लेने और समझने की फुर्सत है। क्या चुनावी व्यस्तताओं से वक्त निकाल कर वो थोड़ा ध्यान भारत के इस भविष्य पर देंगे, जो गंभीर कुपोषण का शिकार है औऱ ये पता नहीं कि ये बच्चे अपने जीवन के कितने वसंत देख पाएंगे। क्योंकि इनके जीवन में सरकार की नाकामी के कारण पतझड़ का मौसम ही बना हुआ है। जिस गुजरात मॉडल की तारीफें करते मोदीजी थकते नहीं, वहां भी कुपोषण को लेकर समाचार अच्छे नहीं हैं। ऐसे में विकास के सारे दावे, अर्थव्यवस्था की सारी जगमगाहटें, शेयर बाजार का छलांगे मारना, सब कुछ कितना खोखला और बेमानी लगता है। अगर 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 33 लाख बच्चे कुपोषित हैं, तो उस देश का विकास भी क्या कुपोषित नहीं होगा।

बच्चों को जब भरपेट, पौष्टिक खाना दे नहीं सकते, उनकी शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था कर नहीं सकते, उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं करा सकते, तो फिर प्रधानमंत्री को क्या हक बनता है कि वे देश के भविष्य को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करें। 70 साल में क्या-क्या नहीं हुआ, इसे गिना कर तो भाजपा 7 सालों से सत्ता में बनी हुई है। लेकिन जब भाजपा के शासन का मूल्यांकन होगा तो ये सारी बातें दर्ज होंगी कि उसके शासनकाल में भारत में भूख भी बढ़ी और कुपोषण भी।

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