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भारत की विश्व नेता की छवि मोदी राज में संकट में ?

नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, उनका पूर्ववर्ती सरकारों के प्रति गहरा दुराग्रह, अहंकार और भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक बढ़ाने के चक्कर में भारत की विदेश नीति आज अपनी पहचान के अभूतपूर्व संकट काल से गुजर रही है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, उनका पूर्ववर्ती सरकारों के प्रति गहरा दुराग्रह, अहंकार और भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक बढ़ाने के चक्कर में भारत की विदेश नीति आज अपनी पहचान के अभूतपूर्व संकट काल से गुजर रही है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर अनेकानेक अदूरदर्शितापूर्ण लिये गये मोदी सरकार के निर्णयों से भारत की एक विश्व नेता की छवि को गहरा धक्का लगा है।

देश के भीतर पार्टी एवं मोदी की छवि जो भी हो, वैश्विक स्तर पर देश की साख लगातार मिट्टी होती जा रही है। भाजपा के दो प्रवक्ताओं के हालिया दिये बयानों से इस्लामी देशों में भारत के प्रति नाराजगी इसी क्रम का ताजा घटनाक्रम है जिसके चलते कभी अपनी धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक, समतावादी और समरस समाज के रूप में एक लोकप्रिय राष्ट्र के रूप में पहचान वाले भारत की छवि अब साम्प्रदायिक, अल्पसंख्यक विरोधी और गैर बराबरी को बढ़ावा देने वाले राष्ट्र के रूप में बन गयी है। 70 वर्षों में अर्जित जो अनेक बातें भारत ने मोदी राज में गंवाई हैं, उनमें अंतरराष्ट्रीय जगत में उसकी गरिमा, सम्मान और साख प्रमुख है।

उल्लेखनीय है कि भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट में मोहम्मद पैगम्बर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की और दूसरे प्रवक्ता नवीन जिंदल ने सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले बयान डाले। इससे मुस्लिम समुदायों में रोष फैलना स्वाभाविक ही था। कानपुर में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए जो हिंसक हो गये। बात यहीं तक नहीं ठहरी बल्कि अनेक इस्लामी देशों में भी नाराजगी हो गई। जो 70 वर्षों में कभी नहीं हुआ वह पहली बार इस रूप में हुआ कि कतर, कुवैत, ईरान आदि देशों ने भारतीय राजनयिकों को तलब कर अपना विरोध दर्ज कराया। अनेक अन्य मुल्कों में भी भारत विरोधी बयान जारी हुए। कतर ने तो भारत देश से ही माफी की मांग कर डाली जो बेहद अपमानजनक है। कई स्टोर्स से भारतीय उत्पाद हटा दिये गये और कूड़ादानों पर मोदी की तस्वीरें चस्पां की गईं।

अपने कारोबारी मित्रों को लाभ दिलाने एवं व्यवसाय के लालच में किसी समय करीब डेढ़ सौ गुटनिरपेक्ष देशों का नेतृत्व करने वाले भारत को मोदी ने देखते ही देखते बड़े मुल्कों का पिछलग्गू बना डाला और अपने तमाम पड़ोसी राष्ट्रों से संबंध खराब कर डाले। जिस कूटनीतिक रणनीति के माध्यम से पहले की सरकारों ने उनसे मैत्री कर रखी थी और अपने दुश्मन पड़ोसियों को एकत्र होने का मौका नहीं दिया था, वे आज भारत के खिलाफ सम्मिलित ताकत बनते दिखाई देते हैं। चूंकि इस वैदेशिक नीति के निर्माता देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू थे, इसलिये कांग्रेस के प्रति पूर्वाग्रह एवं घृणा पालने वाली भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधि मोदी ने इसके ठीक दूसरी ओर जाने वाला मार्ग चुना।

गुटनिरपेक्षता को उन्होंने कायराना नीति समझी और बड़े देशों के हथियार खरीदने और अन्य तरह के व्यापारिक संबंध बढ़ाने को ही विदेश नीति समझ लिया। इसके अलावा मोदी में छिपी वैयक्तिक महत्वाकांक्षा ने भी देश की वैदेशिक नीति को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है। मोदी प्रधानमंत्री इसी शोशेबाजी पर बने थे कि वे पाकिस्तान व चीन के साथ लाल आंखें दिखाकर बातें करेंगे ताकि भारत का दबदबा रहे। कहना न होगा, कि यह सिर्फ वोट बटोरने वाले जुमले थे और पीएम बनने के बाद भारत के खिलाफ ये देश एकत्र होते गये। सबसे खतरनाक गठजोड़ चीन व पाकिस्तान का था। भूटान व नेपाल पर डोरे डालकर चीन उन्हें भी साथ लेने की कोशिश कर रहा है जो हमेशा से भारत के पक्के मित्र रहे हैं।

भाजपा प्रवक्ताओं की बयानबाजी अब देश का आंतरिक मुद्दा न रहकर दुनिया भर में फैल रहा है। इसका कारण यह भी है कि अब पूरे विश्व में देश की छवि एक ऐसे राष्ट्र की बन गई है जो अपने अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति अनुदार एवं असहिष्णु है। खासकर, मुस्लिमों के प्रति पनपती घृणा, हिंसा एवं प्रताड़ना ने भारत को एक इस्लाम विरोधी समाज के रूप में नयी पहचान दिलाई है। यह देश की सदियों से चली आ रही छवि के एकदम खिलाफ है जिस दौरान अनेक धार्मिक समुदाय भारत के अभिन्न अंग बनते चले गये हैं। मुसलमान देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं और करीब 52 देश उनके साथ खड़े दिख रहे हैं। इस्लामी देशों के साथ खराब संबंधों के कारण होने वाले नफा-नुकसान को भौतिक रूप से न देखा जाकर यह सोचना चाहिये कि इससे हमारी छवि कितनी खराब होगी।

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