क्या सेहत पर मोदीजी द्वारा हो रही हैं राजनीति ?

उत्तरप्रदेश के लिए आज का दिन काफी सेहतमंद रहा। प्रधानमंत्री मोदी आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे और इससे पहले सिद्धार्थ नगर से एक साथ नौ मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया
उत्तरप्रदेश के लिए आज का दिन काफी सेहतमंद रहा। प्रधानमंत्री मोदी आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे और इससे पहले सिद्धार्थ नगर से एक साथ नौ मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया। इस मौके पर मोदीजी ने कहा कि जिस पूर्वांचल की छवि पिछली सरकारों ने खराब कर दी थी, जिस पूर्वांचल को दिमागी बुखार से हुई दुखद मौतों की वजह से बदनाम कर दिया गया था, वही पूर्वांचल, वही उत्तर प्रदेश, पूर्वी भारत को सेहत का नया उजाला देने वाला है। योगीजी की पीठ एक बार फिर थपथपाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार जब संवेदनशील हो, गरीब का दर्द समझने के लिए मन में करुणा का भाव हो तो इसी तरह काम होता है। उन्होंने कहा कि योगीजी के कारण इस क्षेत्र के हजारों बच्चों का जीवन बचा है। पिछली सरकारों को कोसने की आदत का एक बार फिर परिचय देते हुए मोदीजी ने कहा कि क्या कभी किसी को याद पड़ता है कि उत्तर प्रदेश के इतिहास में कभी एक साथ इतने मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण हुआ हो? बताइए, क्या कभी ऐसा हुआ है?
पहले ऐसा क्यों नहीं होता था और अब ऐसा क्यों हो रहा है, इसका एक ही कारण है- राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक प्राथमिकता।
इस तरह की बातों से तालियां तो खूब बजेंगी ही और अगर याददाश्त कमजोर हो तो फिर इन दावों पर यकीन भी किया जाएगा। लेकिन बहुत पहले की बातों को याद न करके 2017 के अगस्त महीने को ही याद कर लें, जब योगीजी के इलाके गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में पांच दिनों में 60 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी और मौत का कारण था ऑक्सीजन की कमी। इस मामले में राजनीति भी बहुत हुई, लेकिन उससे जिन बच्चों की जान चली गई, वो वापस नहीं आ पाई।
गोरखपुर का मामला बेहद गंभीर था, लेकिन इसमें दोषियों को सजा देने की जगह राजनैतिक माइलेज के अवसर ढूंढे गए। इसके बाद कोरोना की दूसरी लहर ने बाकी राज्यों की तरह उत्तरप्रदेश में भी तबाही मचाई। यहां के कई भाजपा नेताओं ने अपनी सरकार पर कुप्रबंधन का आरोप लगाया। वाराणसी में मोदीजी के प्रस्तावकों में से एक पं. छन्नू महाराज की बेटी कोरोना काल में चल बसी और उन्होंने इस पर उस अस्पताल पर उंगली उठाई, जहां उनका इलाज चल रहा था। पं. छन्नू महाराज ने योगीजी और मोदीजी दोनों से न्याय की गुहार लगाई थी। जब बड़ी हस्तियों के साथ ऐसा सलूक हो सकता है, तो आम आदमी की बिसात ही क्या है। इसलिए जब मोदीजी संवेदनशीलता, गरीबों के दर्द और राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात करते हैं, तो अब इन बातों से ऊब होती है।
क्योंकि पिछले सात सालों से ऐसी ही बातें दोहराई जा रही हैं। न जाने किस राजनीतिक प्राथमिकता और इच्छाशक्ति की बात मोदीजी करते हैं। क्या प्रधानमंत्री उन दृश्यों को भूल चुके हैं, जब लोग अस्पतालों के बाहर लाइन लगा के खड़े रहते थे। बड़े नेताओं और अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई जा रही थी कि किसी को प्लाज्मा मिल जाए, किसी को अस्पताल में दाखिला मिल जाए, किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाए। क्या मोदीजी भूल चुके हैं कि कैसे कीड़े-मकोड़ों की तरह लाखों लोग कोरोना काल में चल बसे और जिनके अंतिम संस्कार के लिए श्मशानों के बाहर लाइन लगानी पड़ी। नदियों के किनारे रेत में शव दफनाने पड़े। तब सरकार की प्राथमिकताएं क्या थीं, सेंट्रल विस्टा बनाना या कुछ और एयरपोर्ट निजी हाथों में देने की योजना बनाना या पेट्रोल-डीजल पर और टैक्स बढ़ाकर उसे महंगा करना।
उत्तरप्रदेश में एक साथ नौ मेडिकल कॉलेज बनाए जा रहे हैं, ये बहुत अच्छी बात है। हमारा तो पहले ही मानना था कि देश को भव्य मंदिरों और मूर्तियों की जगह बड़े अस्पतालों और कॉलेजों की जरूरत है, क्योंकि शिक्षित और सेहतमंद भारत ही विकास कर सकता है। लेकिन सवाल ये है कि चुनाव के ऐन पहले ही ये नौ मेडिकल कॉलेज क्यों उद्घाटित हुए। अगर पिछले साढ़े चार सालों में ये काम हुआ होता तो मुमकिन है कोरोना काल में लाखों जिंदगियां बचाई जा सकती थीं। सिद्धार्थनगर के बाद वाराणसी पहुंचे मोदीजी ने प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना की शुरुआत की। उन्होंने दावा किया कि 64 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली यह योजना स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को आत्मनिर्भर बनाएगी। ऐसा लगने लगा है कि आत्मनिर्भर इस सरकार का नया जुमला बन चुका है।
पहले आत्मनिर्भर भारत अभियान चला, अब इसमें स्वास्थ्य का पहलू जोड़ दिया गया है। वैसे स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा मजबूत करना सरकार की प्राथमकिता होना चाहिए, जिसमें दूर-दराज के गांवों तक अच्छे डाक्टरों और चिकित्सा केंद्रों की उपलब्धता हो। प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी, दवाएं, संसाधन सब आसानी से उपलब्ध हों। गर्भवती स्त्रियों, बूढ़ों, बच्चों और विकलांगों को इलाज के लिए अस्पताल तक आने में न बांस के बने स्ट्रेचर पर ढोने की जरूरत पड़े, न कंधे पर उठाने की। दर्द और शर्मिंदगी से भरी इन तस्वीरों को हमेशा के लिए मिटाना ही स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा मजबूत करने की ओर पहला कदम है। आने वाले कुछ समय में अगर ऐसा होता है, तो इसे सरकार की सफलता मान लिया जाएगा, अभी से उस पर ताली बजाने का कोई अर्थ नहीं।
वाराणसी में मोदीजी ने पिछली सरकारों को कोसते हुए कहा कि हर किसी के जीवन में आरोग्य अवधारणा की आवश्यकता है। हमें शारीरिक और मानसिक कल्याण में अधिकतम निवेश करना चाहिए, लेकिन दुख की बात है कि आजादी के बाद की अवधि में ऐसा नहीं किया गया। उचित ध्यान नहीं दिया गया और जो सत्ता में थे, उन्होंने स्वास्थ्य व्यवस्था को वंचित और अभावग्रस्त रखा। कितनी आसानी से मोदीजी ने उन तमाम शोध और अनुसंधान संस्थानों को भुला दिया जिनके कारण देश में गंभीर बीमारियों से लड़ने के लिए दवाओं को विकसित किया गया, एम्स जैसे अस्पतालों का जिक्र भी मोदीजी भूल गए, जो करोड़ों गरीब भारतीयों के लिए इलाज की आखिरी आस होते हैं।
अगर प्रधानमंत्री अपने सात सालों के कार्यकाल में देश भर में एम्स जैसे अस्पतालों का और विकास करके गरीब से गरीब आदमी के लिए स्वास्थ्य सेवा की पहुंच आसान बनाते, और गणेश की प्लास्टिक सर्जरी वाली सोच की जगह देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ाते तो चुनाव के पहले इस तरह के आत्मनिर्भर अभियानों की जरूरत ही नहीं पड़ती।