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किसान आंदोलन : जनवरी में ‘सुप्रीम’ रोक के बाद ही ‘मृत’ हो गए थे तीनों कानून, एक तकनीकी पहलू ये भी

नई दिल्ली

तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की घोषणा  के साथ ही देश के कृषि क्षेत्र में सुधार की बहुप्रतीक्षित उम्मीद फिलहाल क्षीण हो गई है। सरकार ने वैसे तो शुक्रवार को ये कानून वापस लेने का एलान किया है और शीत सत्र में प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ ही कानून रद्द हो जाएंगे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कानूनों पर अमल रोकने के साथ ही इनके लागू होने की प्रक्रिया थम गई थी। अब सभी की नजर इस बात पर होगी कि मोदी सरकार के इस फैसले का सियासी असर क्या होता है।

केंद्र सरकार ने भले ही शुक्रवार को देश के सामने कृषि कानूनों को रद्द करने का एलान किया हो लेकिन असल में इस साल 12 जनवरी को आगामी आदेश तक इनके अमल पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद ही ये मृत हो गए थे।

शीर्ष अदालत ने इन्हें रोकते हुए किसान संगठनों और सरकार का पक्ष जानने के बाद सिफारिशें देने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया था। इस समिति ने 19 मार्च को सील बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट भी सौंपी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर इस मामले पर सुनवाई ही नहीं की। साथ ही मोदी सरकार ने भी कोर्ट की रोक खत्म कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किए।

सरकार ने ही किया ‘ऐतिहासिक’ कानून का उल्लंघन
तकनीकी रूप से रोक के कारण उलटे सरकार को अपने ही कृषि कानून के उल्लंघन का सुविधाजनक बहाना भी मिल गया। ज्यों ही दलहन और खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ने से खाद्य महंगाई बढ़ने लगी तो सरकार ने फौरन ऐसी वस्तुओं पर जुलाई से भंडारण सीमाएं लागू कर दी। ‘ऐतिहासिक’ कृषि कानून लागू करने के नौ महीने बाद ही सरकार के सामने यह स्थिति आन पड़ी।

गौरतलब है कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम के तहत तो असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर कृषि व्यापार के लिए खाद्यान्न, दाल, खाद्य तेल और प्याज जैसी वस्तुओं से स्टॉक लिमिट हटा दी गई थी। यानी खुद सरकार द्वारा भंडारण सीमा लगा देने से साफ हो गया कि ये कानून खत्म हैं, भले ही कागजों में ऐसा नहीं किया गया था। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो कानूनों तो तभी ‘मर’ गए थे पर अब तक उनका ‘भूत’ मंडरा रहा था।

एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीद के बावजूद नहीं सुधरी छवि
पीएम से लेकर उनके मंत्री किसानों को बार-बार यह समझाते रहे कि इन कानूनों से एमएसपी या राज्य नियंत्रित एपीएमसी खत्म नहीं होंगी। इस दौरान भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य एजेंसियों ने एमएसपी पर 894.24 लाख टन धान व 433.44 लाख टन गेहूं की रिकॉर्ड खरीद भी की।

इसके अलावा नाफेड और कॉटन कॉरपोरेशन द्वारा 50 हजार करोड़ रुपये की कपास, दलहन और तिलहन भी खरीदे गए। पर इन प्रयासों के बावजूद सरकार आंदोलनकारी किसानों के शक को दूर नहीं कर पाई। हालांकि, कुछ किसान नेताओं ने एमएसपी को कानूनी अधिकारी बनाने के रूप में समाधान दिया था। लेकिन अब तीनों कानून रद्द कर सरकार इस मांग को टालने में कामयाब रही है।

सरकार कर सकती है इन सुधारों का रुख
वैसे, अब आगे सरकार ज्यादा ठोस कृषि सुधारों को अंजाम दे सकती है। इनमें यूरिया कीमतों को नियंत्रण मुक्त, फर्टिलाइजर, पानी, बिजली पर इनपुट सब्सिडी के बजाय नकद ट्रांसफर, खुली खरीद बंद करने व कीमतों की जगह न्यूनतम आय गारंटी जैसे सुधारात्मक कदम उठा सकती है।

योगेंद्र यादव बोले, ‘डेथ सर्टिफिकेट’ का था इंतजार
अब सरकार का कहना कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों को वापस लेने की सांविधानिक प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी, मुर्दे को दफनाने बराबर ही है। जैसा कि किसान नेता योगेंद्र यादव ने भी कहा कि हम तो इन कानूनों के सिर्फ ‘डेथ सर्टिफिकेट’ का इंतजार कर रहे थे। यह सच है कि किसान आंदोलन मोटे तौर पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा ही किया जा रहा था। लेकिन इन कानूनों की छवि किसान विरोधी बनने से केंद्र सरकार देशभर में रक्षात्मक हो गई थी।

यह रही कृषि कानूनों की पूरी टाइमलाइन
20 सितंबर, 2020: तीनों कृषि विधेयक संसद में पारित
24 सितंबरः पंजाब में किसानों ने तीन दिन रेल रोको आंदोलन की घोषणा की
25 सितंबरः किसान संघर्ष समन्वय समिति ने देश भर में आंदोलन शुरू किया
26 सितंबरः शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ा
27 सितंबरः राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ कृषि कानून लागू
25 नवंबरः पंजाब व हरियाणा में किसानों का दिल्ली चलो आंदोलन शुरू
28 नवंबरः गृहमंत्री अमित शाह का दिल्ली बॉर्डर खाली करने की शर्त पर बातचीत का न्यौता, किसानों ने ठुकराया
3 दिसंबरः किसान प्रतिनिधियों से सरकार की वार्ता बेनतीजा
5 दिसंबरः दूसरे दौर की बात में भी कोई परिणाम नहीं निकला
8 दिसंबरः किसानों का भारत बंद
9 दिसंबरः किसानों ने कानून संशोधन का प्रस्ताव ठुकराया
11 दिसंबरः भारतीय किसान यूनियन ने कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका की
16 दिसंबरः 65 साल के एक सिख धर्मगुरु ने प्रदर्शन स्थल पर आत्महत्या की
12 जनवरी, 2021: सुप्रीम कोर्ट की कानूनों पर रोक
26 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले समेत दिल्ली में हिंसा और तोड़फोड़
29 जनवरी: डेढ़ साल के लिए कानून निलंबित करने का प्रस्ताव किसानों ने खारिज किया
6 मार्च: किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर 100 दिन पूरे किए
26 जून: किसानों ने आंदोलन के सात महीने होने पर दिल्ली मार्च किया
22 जुलाई: संसद के सामने किसान संसद बना मॉनसून सत्र शुरू किया
22 अक्तूबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आंदोलन से अनंत समय तक लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए
29 अक्तूबर: दिल्ली पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर के आंदोलनस्थल से बैरिकेड हटाना शुरू किए
19 नवंबर: पीएम ने कानून वापस लेने की घोषणा की

 

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