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‘राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख’, सुप्रीम कोर्ट में बोली कर्नाटक सरकार

कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्रवाई से छूट प्रदान करता है, क्योंकि वे कोई कार्यकारी काम नहीं करते हैं।

नई दिल्ली

कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत, राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख हैं और केंद्र तथा राज्य दोनों जगह मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने कर्नाटक सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्रवाई से छूट प्रदान करता है, क्योंकि वे कोई कार्यकारी काम नहीं करते हैं।

 

मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि
पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल हैं। गोपाल सुब्रमण्यम ने सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही राज्यपाल की संतुष्टि होती है। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई कर रहा है और मंगलवार को सुनवाई का आठवां दिन है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट में पूछा है कि क्या न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है?

 

बंगाल सरकार ने दिया ये तर्क
कर्नाटक सरकार ने कहा कि संविधान में राज्य की निर्वाचित सरकार के अलावा किसी अन्य समानांतर प्रशासन का प्रावधान नहीं है। 3 सितंबर को, पश्चिम बंगाल सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया कि विधेयक के रूप में जनता की इच्छा राज्यपालों और राष्ट्रपति की मनमर्जी के अधीन नहीं हो सकती। टीएमसी शासित राज्य सरकार ने दलील दी थी कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते और विधानसभा द्वारा पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच नहीं सकते, यह न्यायालय का अधिकार क्षेत्र है।

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