मोदीजी औऱ भाजपा सांसदों की महंगाई पर बेतुकी बातें रवैया संवेदनहीन ?

संसद के इस मानसून सत्र में कुछ कांग्रेसी सांसदों को इसलिए निलंबित किया गया था, क्योंकि वे महंगाई पर चर्चा की मांग सरकार से कर रहे थे और अपनी मांग पूरी न होते देख शोर-शराबे और तख्तियां दिखाने लगे थे। इस सत्र से पहले भी संसद के अन्य सत्रों में विपक्ष की ओर से महंगाई पर चर्चा एक स्थायी मुद्दा रहा है, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि सरकार हर बार इस पर चर्चा से बचना चाहती है।
सदन के बाहर भी बढ़ती महंगाई को लेकर विपक्ष कई बार प्रदर्शन कर चुका है, लेकिन सरकार के लिए वो भी बेमानी है। बहरहाल, इस बार सदन में चर्चा न होने देने के पीछे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का स्वास्थ्य ठीक न होने का हवाला दिया गया। और अब वो संसद आने लगी हैं, तो सदन में महंगाई पर चर्चा भी हुई। इस बीच निलंबित कांग्रेस सांसदों का निलंबन भी खत्म हो गया। सदन में महंगाई पर चर्चा, बहुत देर कर दी, हुजूर आते-आते वाले अंदाज में शुरु तो हुई। लेकिन यहां देर से आए, दुरुस्त आए, वाली बात भी लागू नहीं हो रही। क्योंकि सरकार के कई मंत्रियों का ये मानना है कि देश में महंगाई तो है ही नहीं।
भाजपा के सांसदों और मंत्रियों ने जो तर्क इस बार सदन में पेश किए, उससे देजा वू जैसा भाव जगा। पाठक जानते हैं कि फ्रेंच शब्द देजा वू का अर्थ पहले से देखा हुआ होता है। लेकिन वो एक मनोवैज्ञानिक अहसास होता है। जबकि संसद में जो कुछ हो रहा है, वो सीधे-सीधे भाजपा की इस रणनीति का दोहराव है कि एक ही बात को इस तरह जोर देकर कहो कि वही सच लगने लगे। याद दिला दें कि अक्टूबर 2019 में केन्द्रीय मंत्री रविशंकर सिंह ने देश के आर्थिक हालात पर उठे सवाल पर मुंबई में एक कार्यक्रम में जवाब दिया था कि जब फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं, तो फिर मंदी कहां से है। इस बयान पर आपत्ति उठी तो बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया।
लेकिन इसके दो महीने बाद दिसंबर 2019 को संसद में प्याज की कीमतों से आम आदमी की परेशानी का मुद्दा विपक्ष ने उठाया तो निर्मला सीतारमण ने कहा था कि ‘मैं इतना लहुसन, प्याज नहीं खाती हूं। मैं ऐसे परिवार से आती हूं जहां प्याज से मतलब नहीं रखते। उनके इस जवाब पर सदन में ठहाके भी लगे थे।
हालांकि तब सड़क पर इसी प्याज से आम आदमी के आंसू निकल रहे थे। वो आंसू अब भी न सूखे हैं, न रुके हैं। अब प्याज ही नहीं, सारी सब्जियां, फल, दूध, दही, मांस, अंडे, तेल, गैस सभी महंगे हो चुके हैं। सरकार आंकड़ों के जरिए ये साबित करने की कोशिश कर रही है कि थोक महंगाई दर या खुदरा महंगाई दर 2014 से पहले इतनी थी, अब इतनी है। हर तीन महीने में आंकड़ों में घट-बढ़ हो रही है। लेकिन आम आदमी जब झोला लेकर चंद रुपयों के साथ बाजार पहुंचता है, तब उसे खरीदारी करने में ये आंकड़े मदद नहीं करते। उसे वहां कड़वी हकीकत का सामना करते हुए अपने गुजारे लायक सामान खरीदना होता है। और फिर खाली जेब के साथ हताश घर लौटना होता है।
देश में इससे पहले हजार रुपए का गैस सिलेंडर, 2 सौ रुपए का खाने का तेल और सौ रुपए का पेट्रोल-डीजल कभी नहीं हुए। इन जरूरी चीजों के लिए इतने दाम चुकाने पर तकलीफ होती ही है, लेकिन सरकार संसद में ये ऐलान कर रही है कि महंगाई नहीं है। भाजपा सांसद जयंत सिन्हा ने सदन में विपक्ष को ललकारते हुए कहा, ”आप महंगाई खोज रहे हैं, लेकिन महंगाई मिल नहीं रही है, क्योंकि महंगाई कहीं है ही नहीं।” उन्होंने दावा किया कि ”आम जनता के नजरिये से देखें तो पता चलेगा कि सरकार ने उनकी थाली भर दी है। न सिर्फ थाली भर दी है, बल्कि गरीब के घर में बैंक का खाता पहुंचा दिया है, बिजली पहुंचा दी है, शौचालय पहुंचा दिया है। 5 लाख रुपये का आयुष्मान बीमा भी दे दिया है तो फिर कौन सी महंगाई?” श्री सिन्हा का ये बयान सत्ता के अहंकार से उपजा लगता है, जो अपनी जिम्मेदारियों को अहसानों की तरह गिना रहे हैं।
गरीबों का बैंक खाता खोलना हो या गांवों तक बिजली पहुंचाना हो या आवास और चिकित्सा की सुविधाएं मुहैया कराना हो, ये सब सरकार के दायित्वों में शामिल हैं और उन्हें इस तरह संसद में गिनाना सही रवैया नहीं है। इसी तरह भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी सदन में कहा कि आज हमारे प्रधानमंत्री 80 करोड़ गरीब लोगों को फ्री का खाना दे रहे हैं तो क्या हमें उन्हें बधाई नहीं देना चाहिए। अपने बयान में उन्होंने फ्री फंड शब्द का इस्तेमाल किया था। जिससे कुछ ऐसा महसूस हुआ मानो 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त भोजन की भीख दी जा रही है। जबकि यह सरकार की भारी विफलता है कि देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन देने की नौबत आ रही है, क्योंकि उन 80 करोड़ लोगों का जीवन स्तर इतना ऊंचा नहीं हो पाया है कि वे खुद कमा-खा सकें। लोगों के पास रोजगार या आय के साधन न होना, और भोजन जैसी जरूरी चीज उनकी खरीद की पहुंच से बाहर होना, असल में सरकार की नाकामी का दस्तावेज है।
लेकिन इस नाकामी पर शर्मिंदा होने के बजाए लोगों को संदेश भेजा जा रहा है कि वे प्रधानमंत्री का धन्यवाद करें। और मुफ्त या फ्री फंड जैसा जुमला ही गलत है, क्योंकि इन 80 करोड़ लोगों तक कुछ किलो अनाज करोड़ों करदाताओं की दी गई राशि से पहुंचाया जा रहा है। अब तो सरकार ने दूध, दही, पनीर जैसी चीजों पर भी जीएसटी लगा दिया है। जब सरकार हर चीज की कीमत वसूल रही है, तो फिर उस आय का उपयोग देश की ही जनता पर खर्च करने में किस बात का धन्यवाद दिया जाए।
2019 से 2022 तक देश में आर्थिक हालात सुधरे नहीं बल्कि बदतर हुए हैं, कोरोना के कारण महंगाई की चोट कुछ और अधिक महसूस हो रही है। लेकिन भाजपा सांसदों का रवैया तब भी संवेदनहीन था और अब भी वैसा ही है।
मोदीजी जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे तब कॉग्रेस को और मनमोहन सींगसरकारको कोशते थे आज वोही उनके वो वीडियो देशमे वायरल है मोदीजी का दोहरा चहेरा देश की जनताके सामने आईने की तरह सामने है देश की आम जनताकी मोदीजीने चारोओर से कमर तोड़दी है और मोदीजी खामोश है और देश की आम जनता रोज रोज मर मर कर जी रही है आज दो वक्त का खाना नसीब नहीं है फिरभी मोदीजी रोज रोज देश की जनताको गुमराह कर चोट पर चोट दे रहे है ये केशा देश है जहां देशकी आम जनता की मोदी सरकारको कोई फिकरही नहीं है फिरभी मेरा भारत देश मोदीजीके राजमे महान है