बिहार के 10 युवकों की टीम ने बना डाली शॉर्ट फिल्म, औरंगाबाद के इस गांव हुई पूरी शूटिंग

देशी अंदाज और देशी भाषा में बनी फिल्म ‘फिक्स्ड रेट’ को बिहार के औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखंड के सोनबरसा गांव में फिल्माया गया है. ‘बनारस वाला इश्क उपन्यास’ के लेखक ने इसे लिखा है.
पटना
. देशी अंदाज और देशी भाषा में बनी फिल्म ‘फिक्स्ड रेट’ को बिहार के औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखंड के सोनबरसा गांव में फिल्माया गया है. सरकारी योजनाओं में बिचौलियों की भूमिका पर प्रहार करती हुई यह फिल्म चर्चित लेखक प्रभात बांधूल्य की पहली शार्ट फिल्म है. यह सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है. सरकार योजना तो बनाती है, पर धरातल पर पहुंचने के पहले ही वह बिचौलियों का शिकार हो जाती है. इसी कहानी के इर्द-गिर्द यह शॉर्ट फिल्म बनी हुई है. आपको बता दें कि यह फिल्म 22 मार्च को बिहार दिवस के अवसर पर पीएफसीसी के यूट्यूब चैनल पर रिलीज होने वाली है. फिलहाल इसका ट्रेलर रिलीज हो गया है और लोग खूब पसंद भी कर रहे हैं.
क्या है ‘फिक्स्ड रेट’ की कहानी
‘फिक्स्ड रेट’, कल्टू भुइयां और मैना देवी की कहानी है. भुइयां बीघा के रहने वाले कल्टू मैना को एक दोस्त की शादी में देखता है. वहीं से इन दोनों का तार ऐसा जुड़ जाता है कि कल्टू और मैना विवाह के बंधन में बंध जाते हैं. फिल्म में जाति, सामाजिक और आर्थिक तानेबाने के बीच जद्दोजहद शौचालय बनाने को लेकर है. मैना देवी अपने पति कल्टू को शौचालय बनवाने के लिए कहती है.
कल्टू इसके लिए काफी प्रयास करता है. पंचायत भवन से लेकर सरकारी महकमे तक दोनों चक्कर लगाते हैं. शौचालय इस लिए नहीं बन पा रहा, क्योंकि वार्ड सदस्य दो हजार रुपये कमीशन के तौर पर मांग रहा है. मैना देवी दो हजार रुपये कमीशन देने का विरोध करती है और बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने की लड़ाई लड़ती है.
छोटी टीम ने बना डाली फिल्म
यह फिल्म पीएफसीसी के बैनर तले बना है. बतौर निर्देशक यह प्रभात बांधुल्य की पहली शॉर्ट फिल्म है. प्रभात ने न केवल इस फिल्म को लिखा है, बल्कि निर्देशन और अभिनय भी किया है. इस फिल्म में मैना की भूमिका में थिएटर आर्टिस्ट प्रगति जायसवाल दिखाई दे रही है. इस फिल्म में स्थानीय भाषा में गीत भी है, जिसको आवाज चंदन तिवारी ने दिया है, तो वहीं लिखा भोलेनाथ गमहरी ने है.
फिल्म के निर्देशक प्रभात बांधुल्य बताते हैं कि हमारी छोटी टीम थी और बजट भी कम था, तो हम सभी दोस्तों ने मिलकर इसे बनाया है. एक व्यक्ति दो या उससे अधिक जिम्मेदारी निभा रहा था.
सच्ची घटना पर आधारित है फिल्म
निर्देशक और लेखक प्रभात बताते हैं कि यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है. मेरे मित्र अभिषेक गौतम ने जब शौचालय निर्माण हेतु अर्जी डाली तब उनको इसका सामना करना पड़ा. दोस्तों के बीच जब इस बात की चर्चा हुई, तो लोगों ने मुझसे कहा इस विषय पर एक फिल्म बनाओ. इसके बाद मैंने इसे लिखा और अपने गृह जिले औरंगाबाद में ही इसे फिल्माया गया.
उन्होंने कहा कि सरकार अगर बिहार के कंटेंट क्रिएटर को मौका दे, तो हमलोग यहां एक बेहतर इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री खड़ा कर सकते हैं. हमारे यहां की कहानी बाहर में बन रही है. अगर हम यहीं बनाएं तो सैकड़ों रोजगार सृजन होंगे.
सच्चिदानंद