देशवासियों की पीठ पर मोदी शाशन में महंगाई का चाबुक !

पहले तक यानी 2014 से पहले तक हम भारतीयों के लिए महंगाई डायन की तरह होती थी
कुछ साल पहले तक यानी 2014 से पहले तक हम भारतीयों के लिए महंगाई डायन की तरह होती थी। जो डराती थी। कभी राक्षसी सुरसा से महंगाई की तुलना की जाती थी, जिसका आकार हर दिन बढ़ जाता है। लेकिन अब महंगाई देशभक्ति का ही दूसरा नाम बना दी गई है। यानी सरकार आपको रोजगार न दे, तो उसकी मजबूरी समझ कर अपनी देशभक्ति साबित करिए। सरकार आपसे अधिक टैक्स वसूले तो भी विकास के नाम पर अपनी जेब हंसते-हंसते कटवा लीजिए। चाहे जो हो, लेकिन महंगाई के नाम पर उफ्फ न करिए। मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का बयान कम से कम यही समझाइश दे रहा है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि- क्या हम कभी साइकिल से सब्जी मंडी जाते हैं। इससे वायु प्रदूषण भी नहीं होता और स्वस्थ भी रहते हैं। यह बात सही है कि कीमतें ज्यादा हैं, लेकिन इससे मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल गरीब लोगों के हितों के लिए किया जाता है। कितनी चालाकी से मंत्री महोदय ने यह बताने की कोशिश की कि तेल के महंगे दामों का इस्तेमाल गरीब के भले के लिए होता है।
पेट्रोल-डीजल पर भारी-भरकम टैक्स को देश का विकास बताया जा रहा है। जबकि हकीकत ये है कि महंगे तेल से केवल सरकार को मुनाफा हो रहा है। साल 2020-21 वित्तीय वर्ष में पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र सरकार ने 4.51 लाख करोड़ का कर राजस्व कमाया गया है। मध्यप्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने आरटीआई के तहत यह जानकारी हासिल की है। जानकारी के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2020-21 में पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर 37,806.96 करोड़ रुपये की कस्टम्स ड्यूटी वसूली गई। वहीं पेट्रोलियम उत्पादों के विनिर्माण पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी के रूप में 4,13,735.60 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में जमा किए गए हैं। अपना खजाना भरने के लिए सरकार ने एक साल में लगभग साढ़े चार लाख रुपए टैक्स से कमा लिए। पर जब कोरोना से मरने वालों को मुआवजा देने की बारी आई तो सरकार ने हाथ खड़े कर लिए थे कि उसके पास पैसा नहीं है।
कोरोना ने पिछले एक साल में 30 करोड़ से ज़्यादा लोगों को प्रभावित किया है और तक़रीबन चार लाख लोगों की जान ले ली है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। ऐसा कठिन समय में जब सरकार ने सहायता नहीं की, तो लोगों के पास अपनी छोटी-छोटी बचत का इस्तेमाल करने और रोजमर्रा के खर्च के लिए कज़र् लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। घरेलू कर्ज़ पर आरबीआई ने दिसंबर 2020 को समाप्त होने वाली तिमाही तक के आंकड़े जारी किये हैं। जिन से पता चलता है कि मार्च 2020 को समाप्त होने वाली तिमाही यानी जब भारत में कोविड-19 ने ज़ोर पकड़ना शुरू किया था और दिसंबर 2020 यानी जब पहली लहर गिरावट की ओर थी, इन नौ महीनों के बीच घरेलू ऋण 68.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 73.1 लाख करोड़ रुपये हो गया था। यानी उन नौ महीनों में घरेलू कज़र् में 4.25 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। आरबीआई के आंकड़े ये भी बताते हैं कि 2020 की जुलाई-सितंबर तिमाही में बैंक जमा 3.6 लाख करोड़ रुपये से घटकर अक्टूबर-दिसंबर तिमाही तक 1.7 लाख करोड़ रुपये, यानी आधे से भी कम रह गया था। इससे पता चलता है कि लोगों ने महज़ तीन महीनों में अपने बैंक खातों से तक़रीबन दो लाख करोड़ रुपये निकाल लिये थे, जो कि इतने कम समय में अभी तक की संभवत: सबसे बड़ी निकासी है।
इस महीने फिर देशवासियों की पीठ पर महंगाई का चाबुक पड़ा है। पहली जुलाई को सरकारी तेल कंपनियों ने एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में इजाफा किया है। अब एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत राजधानी दिल्ली में 834.50 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई है। नवंबर 2020 से लेकर जुलाई 2021 तक एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत 240.5 रुपये यानी लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। इससे पहले 1 मई को गैस कंपनियों ने एलपीजी सिलेंडर की कीमतें बढ़ाई थीं। उससे पहले फरवरी और मार्च में एलपीजी सिलेंडर महंगा हुआ था। लेकिन तेल कंपनियों ने अप्रैल में गैस सिलेंडर की कीमत 10 रुपये घटाई थी। शायद इसका एक कारण प. बंगाल समेत पांच राज्यों के चुनाव थे। आपको बता दें कि मोदी सरकार के 7 साल में रसोई गैस की कीमत में दोगुने का इजाफा हुआ है।
1 मार्च 2014 को 14.2 किलो के घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 410.5 रुपए थी जो अब 834.50 रुपए है। रसोई गैस की कीमत निर्धारण के फार्मूले को इंपोर्ट पार्टी प्राइस कहते हैं। इस फार्मूले के आधार पर सऊदी अरब की अरामको कंपनी द्वारा तय किए गए एलपीजी के कीमत को बेंचमार्क के तौर पर अपनाया जाता है। इस कीमत में समुद्री भाड़ा, कस्टम ड्यूटी, पोर्ट ड्यूटी सहित वो सारे खर्च जोड़े जाते हैं, जो एलपीजी को दूसरे देश से मंगवाने के लिए खर्च किए जाते हैं। इसके बाद भी सिलेंडर का खर्च, देश के कोने-कोने में पहुंचाने का भाड़ा, केंद्र सरकार द्वारा लगने वाली जीएसटी जैसी लागतें भी इसमें जुड़ जाती हैं। जब भी एलपीजी की कीमत बढ़ती है तो सरकार यह कहकर अपना बचाव करती है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की परिस्थितियों की वजह से कीमतों में इजाफा हो रहा है। लेकिन यहां भी झोल है।
क्योंकि सऊदी अरामको की एलपीजी की मार्च में कीमत 587 यूएस डॉलर प्रति मीट्रिक टन थी, तब भारत में एलपीजी प्रति सिलेंडर कीमत 819 थी। अब यह कीमत घटकर $527 प्रति मीट्रिक टन हो गई है। तब भारत में 834 रुपए में सिलेंडर बेचा जा रहा है। अगर रुपए और डॉलर की विनिमय दर को समायोजित करने के बाद एलपीजी की कीमत तय की जाए तो यह 552 प्रति सिलेंडर होनी चाहिए। लेकिन 834 रुपए के गैस सिलेंडर से यही समझ आता है कि सरकार एलपीजी की कीमत के नाम पर मुनाफाखोरी कर रही है।
आपको याद होगा कि उज्ज्वला योजना पर भाषण देते हुए पीएम मोदी ने एक बार फिर अपनी गरीबी को भुनाया था। चूल्हे से निकलने वाले धुएं पर उन्होंने कहा था कि कभी-कभी तो ऐसा होता था कि मां खाना बनाती थी और धुंए से उसका चेहरा नहीं दिखता था। अब जरा कोई उनसे पूछे कि चूल्हे के धुएं से महिलाओं को मुक्ति का वादा करके उन्होंने महंगी गैस की घुटन क्यों दे दी।