दोहरे अर्थ वाले 3 सुपरहिट गाने, जिन्हें गुनगुनाने में भी आती है शर्म, सेंसर बोर्ड के वजूद पर उठ गए थे सवाल

90 के दौर में हिंदी सिनेमा जब बदलाव के लिए कसमसा रहा था, तब निर्देशकों, संगीतकारों और गीतकारों के मिजाज में भी काफी खुलापन आया, जो उनकी फिल्मों, गीतों औ संगीत से खूब बयां भी हुआ. कई शानदार फिल्में और गाने रचे गए, हालांकि कुछ गाने सुपरहिट होने के बावजूद काफी विवादों में रहे. लोगों ने तब इन्हें शर्मिंदगी की चादर ओढ़कर खूब सुना, मगर सबके सामने गाने से घबराते रहे. दरअसल, इन गानों के दोहरे अर्थ ने बड़े-बुजुर्गों की नींद उड़ा दी थी. कुछ लोगों ने सेंसर बोर्ड के वजूद पर भी सवाल खड़ कर दिए.
नई दिल्ली: 90 के दौर की हिंदी फिल्मों में दोहरे अर्थ वाले गानों की भरमार थी, हालांकि एक गाने पर इतना विवाद हुआ, जिसकी गूंज संसद तक सुनी गई. फिर भी वह गाना लोगों के बीच सुपरहिट हुआ, जिसकी गिनती आज आइकॉनिक गानों में होती है. इन गानों को सुनकर लोग आज भी आनंदित होते हैं, लेकिन इन्हें न आप किसी के सामने गा सकते हैं और न सुन सकते हैं.
‘चढ़ गया ऊपर रे, अटरिया पे लोटन कबूतर रे’
अगर आप 90 के दशक में जन्मे हैं, तो हो सकता है कि आपने बचपन में इस गाने के दोहरे अर्थ से बेपरवाह होकर इसे कई बार गुनगुनाया हो और फिर घर के बड़ों से फटकार खानी पड़ी हो. गाना साल 1993 में आई फिल्म ‘दलाल’ का है, जिसे मिथुन चक्रवर्ती और आयशा जुल्का पर फिल्माया गया था. अल्का याग्निक, बप्पी लहरी, इला अरुण और कुमार सानू की आवाज में रिकॉर्ड हुए इस गाने को माया गोविंद ने लिखा था और संगीत बप्पी लहरी ने तैयार किया था.
‘चोली के पीछे क्या है’
‘खलनायक’ फिल्म का यह गाना माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया था, जिसने करोड़ों लोगों को दीवाना बना दिया था. गाने की लोकप्रियता के बावजूद लोग इसे सबके सामने गाने से बचते थे, क्योंकि इसका दोहरा अर्थ गाने वाले को शर्मिंदा कर देते हैं. गाने को अल्का याग्निक और इला अरुण ने अपनी मनमोहक आवाज में गाया है. इसे मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने लिखा था और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इसे कंपोज किया था.
‘सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे’
गोविंदा और करिश्मा कपूर पर फिल्माया यह गाना 90 के दौर में खूब लोकप्रिय हुआ. गाने की पंक्तियों के दोहरे अर्थ और सितारों का रोमांस बहुत कुछ बयां कर रहा था. साल 1994 की फिल्म ‘राजा बाबू’ का गाना ‘सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे’ आज भी शादी-पार्टियों में खूब बजाया जाता है, हालांकि गाने की विवादित पंक्तियों ने कई लोगों को नाराज भी किया था. वे सेंसर बोर्ड के वजूद पर सवाल उठाने लगे थे.
पूर्णिमा और कुमार सानू की आवाज में रिकॉर्ड हुआ यह गाना आनंद मिलिंद ने कंपोज किया था. जावेद अख्तर कुछ दिनों पहले जब फिल्म फेस्टिवल में पहुंचे थे, तब किसी ने शिकायत की कि आज के गाने अच्छे नहीं बन रहे हैं, तो गीतकार बोले कि पहले भी दोहरे अर्थों वाले गाने बनते रहे हैं, लेकिन समस्या वह 6-7 लोग नहीं हैं, जो इन्हें मिलकर बनाते हैं. परेशानी की बात यह है कि इन्हें करोड़ों लोगों ने पसंद किया था. यानी जिम्मेदारी भी करोड़ों श्रोताओं की बनती है.